उरदू बीबी की पूँजी / प्रताप नारायण मिश्र
यदि आप किसी साधारण वेश्या के घर पर कभी गए होंगे या किसी जाने वाले से बातचीत की होगी तो आपको भली भाँति ज्ञात होगा कि यद्यपि कभी-कभी विद्वान, धनवान और प्रतिष्ठावान लोग भी उसके यहाँ जा रहते हैं, और जो जाता है वह कुछ दे ही के आता है। एवं उन्हें बाहर से देखिए तो तेल, फूलेल, हार, पान, हुक्का, पीकदान, सच्चा वा झूठा गहना एवं देखने में सुंदर कपड़े से सुसज्जित है। कमरा भी दो एक चित्र तथा गद्दी-तकिया आदि से सजा हुआ है। उनकी बोली बानी हाव भाव भी एक प्रकार की चित्तोल्लसिनी सभ्यता से भरी है। दस-पाँच गीत गजल भी जानती है। पर उनकी असली पूँजी देखिए दो चार रंगीन गोटे पट्टे के कपड़े तथा दो ही चार सच्चे झूठे गहने अथच एक वा दो पलंग और पीतल, टीन, मट्टी आदि की गुड़गुड़ी उड़गुड़ी समेत दस पाँच बरतन के सिवा और कुछ नहीं है। रुपया शायद सब असबाब मिलाके सौ के घर-घाट निकलें, चाहे न भी निकलें। गुण उनमें केवल हाथ मटका के कुछ गाना मात्र, विद्या अशुद्ध फशुद्ध दस ही बारह हिंदी उरदू के गीत मात्र एवं मिष्टभाष्ण केवल इतना जिस्से आप कुछ दे आवें। बस, इसके सिवा अल्लामियाँ का नाम ही है। उनमे प्रेमी या यों कहिए, अपनी बुरी आदत के गुलाम उनको चाहे जैसा लक्ष्मी, सरस्वती, रंभा, तिलोत्तमा, लैली, शीरीं समझते हों, पर वास्तव में उनके पास पूरी जमा जथा उतनी ही मात्र होगी जितनी हम कह चुके। बरंच उससे भी नयून ही होगी। कभी-कभी वे कह देती हैं कि हम फकीर हैं या हम आपके भिच्छुक हैं। यह बात उनकी शिष्टता से नहीं बरंच सच ही है, क्योंकि सबसे लेती हैं तौ भी कुछ जुड़ नहीं सकता। यदि पंद्रह बीस दिन कोई न जाए तौ उन्हें वह नगर छोड़ देना पड़े जहाँ वे कई वर्ष रही हैं। प्रिय पाठक! ठीक वही हाल उर्दू जान का भी है। यद्यपि कुछ-कुछ संस्कृत, अंग्रेजी, अरबी की भी सहाय है, और उसके चाहने वाले उसे सारे जगत की भाषाओं से उत्तम माने बैठे हैं, पर उस्की वास्तविक पूँजी यदि विचार के देखिए तो आशिक अर्थात किसी को चाहने वाला, माशूक अर्थात कोई रूपवान व्यक्ति जिसे आशिक चाहता हो, बाग अर्थात बाटिका गुल अर्थात फूल, बुलबुल अर्थात एक अच्छी बोली बोलने वाला और फूलों में प्रसन्न रहने वाला पक्षी, बागवान अर्थात माली, सैयाद अर्थात चिड़ीमार, चाँदनी रात औ मेघाच्छन्न दिन, खिलवत अर्थात एकांत स्थान, जिलवत या मजलिस कई एक सुंदर व्यक्तियों का समाज, शराब अर्थात मदिरा, कबाब अर्थात मांस, साकी अर्थात मद्य पिलाने वाला, मुतरिब अर्थात गवैया, रकीब दुश्मन, गैर अर्थात जिसे तुम चाहते हो उसका दूसरा चाहने वाला, नासिह अर्थात मद्य और वेश्यादि के संसर्ग से रोकने वाला, बायज अर्थात उपदेशक, परनिंदा, खुशामद, उलहना, आसमान अर्थात भाग्यवश, इतनी ही बातें हैं जिन्हें उलट फेर के वर्णन किया करो आप बड़े अच्छे उरदूदाँ हो जाएँगे! माशूक के रूप, मुख, नेत्र केशादि की प्रशंसा, अपनी सर्वज्ञता का घमंड, उसे गुल और शमअ अर्थात मोमबत्ती एवं अपने को बुलबुल और पर्वाना अर्थात पतंग से उपमा दे दिया करो, रकीब इत्यादि पर जल-जल के गाली दिया करो, बस उरदू का सर्वस्व आपको मिल जाएगा। चाहे गद्य हो चाहे पद्य हो, चाहे कविता तो चाहे नाटक हो, चाहे अखबार हो, चाहे उपदेश हो, सब में यही बातें भरी हैं। यदि और कोई विद्या का विषय लिखना हो तो संस्कृत, बँगला, नागरी, अरबी, फारसी, अंगरेजी की शरण लीजिए। इन बीबी के यहाँ अधिक गुजांइश नहीं है। और लिखना तो दरकिनार मुख्य-मुख्य शब्द ही लिखके किसी मौलवी से पढ़ा लीजिए, अरे म्याँ मजा ही न आवेगा! हमारे एक मित्र का यह वाक्य कितना सच्चा है कि और सब विद्या हैं यह अविद्या है। जंतम भर पढ़ा कीजिए, तेली के बैल की तरह एक ही जगह घूमते रहोगे। सत्य बिद्या के बतलाइए तौ कै ग्रंथ हैं? हाय न जाने देश का दुर्भाग्य कब मिटैगा कि राजा-प्रजा दोनों इस मुलम्मे को फेंक के सच्चे सोने को पहिचानेंगे। जानते सब हैं कि पूँजी इतनी मात्र है, पर प्रजा का अभाग्य, राजा की रीझ बूझ! और क्या कहा जाए।