उल्लू बनाने का आइडिया / शशिकांत सिंह शशि

Gadya Kosh से
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स्ंासार में दो प्रकार के उल्लू होते हैं। एक भगवान के बनाये हुये। दूसरे बाजार के। भगवान जिसे बनाता है उसे रात में दिखता है। दिन में नहीं। बाजार के बनाये हुओं को न रात में दिखता है न दिन में। भगवान के उल्लू जन्मजात मूर्ख होते हैं। ऐसा माना जाता है। प्रमाण नहीं है। बाजार के उल्लू जन्मजात विवेकशील होते हैं। इसके प्रमाण हैं। एक विवेकशील प्राणी को उल्लू बनाने की कथा अत्यंत मार्मिक और प्रेरक होती है। आपको मिलवाता हूं एक विज्ञापन लेखक से। एक महानगर में रहने वाला विज्ञापन लेखक। वह लेखक नाम की ही था। मूलतः कथा निर्माण में एजेंट, मैनेजर, प्रोडयुसर, सी ई ओ सबका सराहनीय योगदान होता था। एकबार स्क्रीप्ट तैयार करने में बुद्धिमानों की टीम काम करती थी और अंत में उसे टी वी के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता था। फलस्वरूप बड़ी संख्या में उल्लू निर्मित होते थे। तो हमारे विज्ञापन लेखक से मिलिए।

विज्ञापन लेखक अपनी कहानी लेकर मैनेजर के आॅफिस में पहुंचा। उसकी यह दिनचर्या थी। रोज किसी न किसी दफ्तर में जाना ही पड़ता था। मैनेजर कहानी को पढ़ता और उसका पोस्टमार्टम चालू कर देता। सलाह देने में वह किसी भी महान लेखक के कान काट सकता था। उसने कहानी को सरसरी तौर पर पढ़ी और लेखक को वापस कर दी।

-’यह तो ‘एक्स ड्रिक’की कार्बन काॅपी है। इसमें नया क्या है ? आप को हम पेमेंट करते हैं। इसका यह मतलब तो नहीं है कि आप कुछ भी ले आयेंगे और हम उसे ले लेंगे। ’

-’सर , इसमें हीरो पर्वत से कूद रहा है। हीरोइन नीचे नदी में डूब रही है। उसे बचाने के लिए वह कूदता है। कूदने के पहले वह अपना पसंदीदा पेय पीता है। ’

-’ठीक है ! यह एक्स वाले भी दिखा रहे हैं। हम यदि कुछ अलग नहीं दिखयेंगे तो हमारा प्रभाव मार्केट पर कैसे पड़ेगा ? आप एक काम कीजिये हीरोइन को टू पीस में दिखाइये। हीरो केवल अंडरवियर में हो। हां ..और यह जो नदी है इसे थोड़ा उफनता हुआ दिखाइये। ’

-’सर ये समुद्र नहीं है। नदी इतनी ही उफनती है। आप.........जो.....कहानी में परिवत्र्तन चाहते है। वह वलगर हो जायेगा। ’

-’आप स्टुपिड हैं। टू पिस और अंडरवियर से कोई वलगर हो जाता है ? नदी थोड़ा और उफनेगी और हीरो जब नीचे कूदकर आयेगा और हीरोइन को बाहों में भरेगा तो बस सूखे-सूखे ही...।’

मैनेजर साहब हो हो करके हंसने लगे। लेखक को उम्मीद बंधी कि कहानी ले ली जायेगी। वह भी मुस्कराया। अंदर के लेखक ने एकबार फिर जोर मारा।

-’एक्सक्युज मी सर। लेकिन किसींग के सीन ठंडा पेय के विज्ञपनों में नहीं होते हैं। फैशन प्रोडक्टस में होते हैं। हम ऐसा करेंगे तो...।’

-’वहीं तो...हम कुछ नया करेंगे तो...। ’

-’सर हम पर वलगैरिटी का आरोप आ सकता हैं। हम पर केस हो सकता है। ’

-’वही तो...केस होगा तभी तो प्रोडक्ट मार्केट में हिट होगा न। आप इसकी चिंता छोड़कर स्क्रीप्ट पर ध्यान दीजिये। ड्रिंक केवल कहने भर के लिए ठंडा हो लेकिन उसके विज्ञापन से आग लग जानी चाहिए। ठीक अब सुधार करके आइये। ’

-’सर ...पेमेंट एडवांस ...।’

बदले में मैनेजर ने उसे केवल घूरा। लेखक वहां से निकल कर किसी बार में चला जाता है। वहां उसे नये आइडिये नजर आते हैं। उसके दिमगा में एक नया आइडिया आता है। यदि आयु वर्ग के ंअनुसार पेय को बांट दिया जाये तो ...। बच्चों का ड्रिंक , नौजवानों का ड्रिंक और बुजुर्गों का। वाह ...मेल और फिमेल

ड्रिंक अलग-अलग हो सकते हैं। अभी कुछ दिन पहले उसने यही आइडिया एक प्रख्यात फैशन क्रीम के साथ किया था। मेल और फिमेल के लिए अलग अलग लेप। मामला चमक गया। ब्रांडिग हो गई। एक ही लेप को दो पैक कर दिये गये। गा्रहकों की संख्या दोगुनी हो गई। यदि इसी प्रकार के प्रयोग ठंडा के क्षेत्र में किये जायें तो वारे-न्यारे हो जाये। स्क्रीप्ट इस प्रकार होगा।

कैमरा आॅन होता हैै। एक महिला बाजार में घुम रही है। बार-बार पसीना पोछ रही है। उसके साथ एक बच्चा स्कूल ड्रेस में है। स्कूल से उसे लेकर पैदल आ रही है। (मध्यम वर्ग के दर्शकों के दिल को छू लेगा )बच्चा भी पसीने से तर है। तभी उनकी नजर एक स्टाॅल पर पड़ती है। नाना प्रकार के पेय सजाकर रखे गये हैं। उनमें अपना ब्रांड दूर से दिख रहा है। बाकी सबके केवल बोतल दिख रहे हैं। वह तेज कदमों से दुकान पर जाती है। दुकानदार जो देहाती भेष में है। कंधे पर गमछा, बड़ी-बड़ी मुछें। देखकर खड़ा हो जाता है।

-’जी मैडम जी। ’

-’वो ...वाला ठंडा लाओ। हां .....हां वही। ’

-’मानना पड़ेगा आपके टेस्ट को। ‘हंसता है।

बच्चा अभी बोतल को होठों से लगाने जा ही रहा है कि एक समाज सेविका आ जाती है। (उसके ड्रेस का माडर्न लुक भी दिया जा सकता है। साड़ी में मास्टरनी टाइप लुक देने में भी बुराई नहीं है। मध्यम वर्ग के दर्शक उसे अपना मानेंगे ।)

-’अरे ये क्या बहन जी। इतने छोटे बच्चे को बड़ो वाला पेय। इसे बच्चों वाला ठंडा पिलाना चाहिए। ’

-’क्या ...बच्चों के लिए अलग ठंड आ गया ? ’

-’हां ...केमिकल की मात्रा के आधार पर इसे बांटा गया है। बच्चों वाले ड्रिंक बिल्कुल सादा होते हैं। ’

दुकानदार बच्चों वाला ठंडा निकालकर देता है। उसपर लिखा है। वदसल वित बीपसक लेखक का मन मयूर नाच उठा। यदि कंपनी चाहे तो इसी प्रकार नर और नारी के लिए भी अलग-अलग कोल्ड ड्रिंक दिखाये जा सकते हैं। करना तो कुछ नहीं है। केवल बोतल अलग-अलग किये जायेंगे। लेखक पर जितना अधिक बियर का नशा था। उससे अधिक अपनी कहानी का चढ़ गया। वह भागा-भागा मैनेजर के पास पहुंचा। उसे स्क्रीप्ट की मूल बातें बताईं। मैनेजर प्रभावित तो हुआ लेकिन दिखना जरूरी नहीं समझा। उसने उसे बदल दिया। परिवर्तित स्क्रीप्ट इस प्रकार बना-

कालेज के यूथ एक पिकनिक स्पाट पर गा-बजा रहे हैं। एक यूथ गाते-गाते रुक जाता है। वह गा ही नहीं रहा। सब उसका मजाक उड़ा रहे हैं। वह इशारे से बताता है कि उसका गला सूख रहा है। सभी दौड़ते हुये एक होटल में जाते हैं। (धीरे-धीरे भी जा सकते हैं लेकिन उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा ) होटल वाले से वही लड़का कोल्ड ड्रिंक लेकर पीता है। सारे साथी हंसने लगते हैं। चिल्लाते हैं-

-’बेबी’

-’बेबी’

प्यासे यूथ की समझ में नहीं आ रहा है कि बात क्या है। एक हीरो टाइप यूथ आगे आता है। अपने थैले से निकालता है। यूथ वाला कोल्ड ड्रिंक होठों से लगा लेता है।

-’अबे तू जो पी रहा है। वह बच्चों के लिए बना है। बेबी ।’

लेखक को बुरा तो लगता है कि उसीके आइडिये पर नया स्क्रीप्ट बना लिया गया लेकिन वह बुरा नहीं मानता। बुरा मनाने की उसकी औकात नहीं है। वह मैनेजर की ओर आशा भरी नजरों से देखता है।

-’जी ........मेरा पेमेंट हो जायेगा। ’

-’बिल्कुल हो जायेगा। आप काउंटर पर जाकर अपना चेक ले लीजिये। आपसे उम्मीद है कि इस आइडिये को ऐड शूट होने से पहले किसी और को नहीं देंगे। आपने तो एग्रीमेंट भी किया है। नहीं तो आपपर मुकदमा

हो सकता है।ै आखिर धंधे में ईमानदारी जरूरी है ।’

लेखक खुश है। उसे पेमेंट मिल गया है। वह एकबार फिर से बियर बार में घुस गया है। मैनेजर की बात उसके दिमाग में खलबली मचा रही है।

-’हर धंधे में ईमानदारी जरूरी है। ’

पूरे भारत को बेवकूफ बनाने वाले लोग भी ईमानदारी की बात कर रहे हैं। एड के माध्यम से सत्तु को सोने के भाव बेचे जा रहे हैं। मिट्टी को मूंगा बनाकर बेचा जा रहा है। जेब काटने के नये-नये फंडे खोजे जा रहे हैं। ऐेसे लोग भी ईमानदारी की बातें कर रहे हैं। वह चाहकर भी बेईमानी नहीं कर सकता। उसने एग्रीमेंट पर साइन किया है। लेखक का दुर्भाग्य या सौभाग्य कहिये कि यह खबर छुप नहीं पाई। कंपनियों को पता लगा गया कि कोई नया आइडिया लेखक के हाथ लगा है। एक बड़ी कंपनी के एजेंट ने उससे मुलाकात की। डीनर पर बुलाया। सुरा के सेवन के उपरंात जब लेखक पूरी तरह समाज सेवी हो गया तो उसने सच बोलना चालू किया -

-’भाई जान ! आइडिया वाइडिया कुछ नहीं है। आप देखिये ...............हर आदमी एक गा्रहक है। पहले तो उसे आदमी मानना छोड़ना पड़ेगा। .........आप क्या बेचने वाले हैं। मैं आपको आइडिया देता हूं। मान लीजिये आपको साड़ी बेचनी है तो उसे भी आप लड़की की साड़ी और औरत की साड़ी अलग-अलग करो।

-’साड़ी तो देखने में एक ही तरह की होती है। कोई भी पहन सकती है।

-’यह काम विज्ञापन का है सर जी। उल्लू को उल्लू नहीं बनाना पड़ता। जो नहीं है उसे उल्लू बनाना ही तो कला है। स्क्रीप्ट सुना दूं। ’

-’नहीं ....नहीं हम तो बाॅल बनाते हैं। ’

-’उसे लड़का और लड़की के बाॅल अलग-अलग बनाइये। कौन रोकता है ? लड़की वाले बाॅल पर तितली होगी। चुटकी और कैटरिना कैफ । लड़के वाले बाॅल पर छोट भीम और सलमान खान की फोटुएं दे दो। बन गई बात। हो गई गा्रहक संख्या दुगुनी। स्क्रीप्ट सुनाऊं। बाजार को और प्रेरक बनने दो हिंदू और मुसलमान के लिए भी अलग-अलग प्रोडक्ट होंगे। आप बाॅल बेचते हैं तो........मान लो ..... एक बाॅल हरे रंग की है। उस पर चांद की फोटो है। हो गया बाॅल मुसलमान का। ईद पर बाजार में उतार दो। मुसलमान बच्चे खरीद लेंगे। बच्चों को क्या पता चांद क्या है ? बाजार बतायेगा। विज्ञापन सिखायेगा। हिंदू वाले बाॅल को केसरिया से रंग दो उस पर बना देा सूरज। बेच दो होली पर। बच्चों को क्या पता ? बाजार बतायेगा। राज करने के लिए बांटना होता है। बाजार पर राज करना है तो गा्रहकों को बांट दो। देश पर राज करना है तो वोटरों को। ’

एजेंट समझ गया कि लेखक को चढ़ गई है। वह दूसरे दिन मिलने का वायदा करके भागा। हो सकता है कि लेखक की भविष्यवाणी एक दिन बाजार सुन ले। सही सिद्ध हो जाये। राॅयल्टी बेचारे लेखक को मिलनी ही चाहिए। पेट के कारण बुद्धि बेचता है।