उसका फोन / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
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उसने कहा-'आपने फोन नहीं किया।'

मैंने कहा-'मैं एग्जाम की तैयारी में लगी थी। कल पेपर है मेरा। तुम कर लेते।'

उसने कहा-'एग्जाम हैं न आपके. जब करना था तब कर लिया। मेरी शुभकामनाएं और सब कैसे? पढ़ाई तो ठीक हो रही है?'

मैंने कहा- 'हाँ' ।

उसने कहा-'आवाज कुछ भारी-भारी लग रही है।'

मैंने कहा-'कुछ खास नहीं।'

उसने कहा-'बादल कब से भरे हुए हैं पर बरस नहीं रहे हैं। हवा का नामोनिशान नहीं है। मौसम घुटा-घुटा हो रहा है। बस दो-बार बूंदाबांदी होकर रह गयी। एक बार जमकर बारिश हो जाए. बादल छंट जाएँ तो घुटन से कुछ तो मुक्ति मिले। उमस भी कितनी है।'

मैंने कहा-'उमस? घुटन? कहाँ हैं। कहाँ है घुटा हुआ मौसम? यह तो ठंडा सुहाता-सुहाता-सा है। अब तक की जो गर्मी थी शायद आप भूल गए.'

उसने कहा-'उमस नहीं है? कितनी गर्मी थी और है भी।'

मैंने कहा-'हाँ है। पर कुल मिलाकर पहले से अच्छा लग रहा है।'

उसने कहा-'जिस दिन बादल खुलकर बरसेंगे, जिस दिन सूखी-प्यासी धरती की आत्मा तर होगी, जिस दिन धरती पर हरियाली छाएगी, उस दिन देखना मौसम और इसके बदलते रंग, बादल और इंद्रधनुष। तब पूछूंगा आपसे कि अब कैसा लग रहा है।'

मैंने कहा-'पर ये सब होगा कब?'

उसने कहा-'जब तुम चाहोगी तब।'

मैं फोन बंद करना चाह रही हूँ। पर कर नहीं पा रही हूँ।