उसके हिस्से की धूप / मृदुला गर्ग / सामान्य परिचय
मृदुला गर्ग पहला उपन्यास ’उसके हिस्से की धूप’ 1975 में छपा था। यह लीक से हटकर था क्योंकि उन दिनों विवाहेत्तर संबधों में अपराधबोध होना जरूरी माना जाता था।
’उसके हिस्से की धूप’ की नायिका अनपे पति को छोड़ कर प्रेमी के पास चली जाती है। मगर अंत में वह महसूस करती है कि आदमियों के पीछे भागने का कोई अर्थ नहीं है और अपना रास्ता खुद ही तलाशना होगा... वह पति से तलाक लेकर दुसरे आदमी से शादी कर लेती है। जब वह अपने पूर्व पति से मिलती है तो उसे अहसास होता है कि जिस बात को वह उसकी उदासीनता समझती थी दरअसल वह उसकी उदारता थी। पहले वह रोमांटिक और अधिकारपूर्ण प्रेम की तलाश में थी, मगर वह हद से ज्यादा हो तो ऊबा देता है। दूसरी बात यह कि अधिकारपूर्ण प्रेम में औरत को आजादी नहीं होती जबकि उसके पूर्व पति ने उसको हर तरह की आजादी दे रखी थी। मगर उसके पास वह लौटती नहीं है क्योंकि वह जानती है कि अब भी वह अपने काम के आगे किसी को अहमियत नहीं देता है। उपन्यास का मूल विचार यह है कि एक के बाद दूसरे आदमी के पीछे भागने से कोई फायदा नहीं है। अपनी खुशी किसी और के माध्यम से प्राप्त नहीं की जा सकती। अपने कार्यों से ही खुशी मिल सकती है। कोई भी आदमी संपूर्ण नहीं है। शुरू शुरू में वह रोमांटिक और बेवकूफी भरे प्रेम में विष्वास करती है। चार सालों में वह इसके विभिन्न पहलुओं को देखती है और परिपक्व हो जाती है। दोस्ती, आपसी समझदारी, एकात्मकता और सहानुभूति प्रेम में महत्वपूर्ण होते हैं। वह जान लेती है कि प्रेम करना अद्भुत है मगर पूर्णता की भावना औरों से नहीं आती। वह अपने कर्मों से ही आती है। वह निर्णय लेती है कि वह खूब लिखेगी। पुस्तक का अंत यहीं होता है। उसे कोई अपराधबोध नहीं है। उसे नहीं लगता कि पति को छोड़कर अन्य पुरूष के साथ जाने के कारण ही वह अनैतिक हो गई है। 35 साल बाद अब इस कहानी पर धारावाहिक का निर्माण हुआ है। कइयों को अब यह समसामयिक लगता है। मगर उस समय यह चौंकाने वाला था। मृदुला गर्ग लगता है अगर आप वही लिखते हैं जो बाकी सब लिख रहे हैं तो लिखने को कोई लाभ नहीं है। जब औरत अपने लिए सोचना शुरू करती है तो उसके तार्किक परिणाम होते हैं। आज यही हो रहा है।