उसने कहा / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
पहले जब मैं एक अनार के दिल में रहता था मैंने एक बीज को कहते सुना, "किसी दिन मैं वृक्ष बन जाऊँगा, हवा मेरी शाखाओं के साथ झूम-झूम कर गाएगी, सूर्य की किरणें पत्तियों पर थिरकेंगी। तब मैं बारहों मास स्वस्थ और सुन्दर दिखूँगा।"
तब दूसरे बीज ने कहा, "तुम्हारी उम्र में मैं भी ऐसा ही सोचता था लेकिन अब मैं वस्तुओं का सही-सही आंकलन करना जान गया हूँ। मेरी सारी आशाएँ व्यर्थ थीं।"
तीसरे बीज ने कहा, "हमारा कोई भविष्य ही नहीं है।"
चैथे बीज ने कहा, "बिना उज्ज्वल भविष्य के हमारा जीवन एक मजाक बनकर रह जाएगा।"
पाँचवाँ बोला, "जब हमें अपने वर्तमान के बारे में ही नहीं पता तो भविष्य की बात करना बेकार है।"
छठे ने कहा, "हमारी तो ऐसी ही कट जाएगी।"
सातवें ने कहा, "मुझे अच्छी तरह पता है कि भविष्य में हमारा क्या होगा, पर मैं इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ।"
इसके बाद आठवाँ बोला-फिर नवाँ-दसवाँ और फिर सभी इस वाद-विवाद में जुट गए. शोर के कारण मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।
मैं उसी दिन अनार के दिल से निकलकर सख्त पीले बेल के दिल में बैठ गया। यहाँ के बीज पीले और कमजोर हैं, पर निराशावादी नहीं। यही वजह है कि वे संख्या में थोड़े हैं और ज्यादातर शान्त ही रहते हैं।