ऊँचाई / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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उदघाट्न समारोह में बहुत से रंगबिंरगे, खुबसूरत, गोल–मटोल गुब्बारों के बीच एक काला, बदसूरत गुब्बारा भी था, जिसकी सभी हँसी उड़ा रहे थे। ‘‘देखो, कितना बदसूरत है,’’ गोरे चिट्टे गुब्ब्बारे ने मुँह बनाते हुए कहा, ‘‘देखते ही उल्टी आती है।’’
‘‘अबे, मरियल!’’ सेब जैसा लाल गुब्बारा बोला, ‘‘तू तो दो कदम में ही टें बाल जाएगा, फूट यहाँ से!’’
‘‘भाइयों! ज़रा इसकी शक्ल तो देखो,’’ हरे–भरे गुब्बारे ने हँसते हुए कहा, ‘‘पैदाइशी भुक्खड़ लगता है।’’
सब हँसने लगे, पर बदसूरत गुब्बारा कुछ नहीं बोला। उसे पता था ऊँचा उठना उसकी रंगत पर नहीं बल्कि उसके भीतर क्या है, इस पर निर्भर है।
जब गुब्बारे छोड़े गए तो काला, बदसूरत गुब्बारा सबसे आगे था।
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