ऊंट तू किस करवट बैठेगा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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ऊंट का नाम तो सभी ने सुना होगा| जिन्होंने न सुना हो उनकी जानकारी के लिये बता दूं कि यह एक चार पैरों वाला ऊंचा सा जानवर होता है जिसकी एक पूंछ और लंबी सी गरदन होती है| इसे मरुस्थल का जहाज़ कहते हैं| सैकड़ों मील गरम रेत में चलता रहता है और थकता नहीं| इसके गले में एक थैली होती है जिसको वह पानी पीते समय फुल टेंक कर लेता है और जब प्यास लगती है तो धीरे से पानी उसी तरह अंदर पेट में डाल लेता है जैसे कि भारतीय नेता जनता का माल निगल जाते हैं| इस जानवर में एक ही अवगुण है कि कमव‌ख्त बैठते बैठते भी यह आभास नहीं देता कि किस करवट बैठेगा| इसी अवगुण के कारण ही भारत के मनीषियों ने एक मुहावरे का निर्माण कर दिया था कि ऊंट किस करवट बैठेगा| लोग तो कहते हैं कि इंसान तो क्या ऊंट को खुद ही नहीं मालूम रहता कि वह किस करवट बैठेगा| वैसे मुझे ठीक से नहीं मालूम क्योंकि मैंने आज तक किसी ऊंट से पूंछतांछ नहीं की है| वैसे जांच पड़ताल से मालूम ये पड़ा है कि आजकल के ऊंट बहुत समझदार हो गये हैं| वैश्वीकरण जमाना है तो ऊंट भी आप जैसा चाहते उसी करवट बैठ सकता है , बस थोड़ा टेकिल करना पड़ेगा| ले देके मामला सुलट जाता है|

ऊंट पूंछ लेता है कि भाई साहिब किस करवट बिठाना है, बस आपको मेरी छोटी डिमांड पूरी करना होगी| जैसे कि किसी रेगिस्तान के बदले हरी भरी झाड़ी का मालकाना हक देना होगा| हां झाड़ी की च्वाइस वह अपने हिसाब से मांगता है| भाई अब मांगता है तो मांगने दो| इतना बलिदान तो करना ही होगा न| इतना सा देकर आप ऊंट को अपनी ओर करवट लेकर बैठाने में सफल हो जाते हैं तो सौदा घाटे का नहीं है| आजकल तो ऊंटों की चांदी है, करवटों के दाम बहुत हाई हो गये हैं| साधारण ऊंट हों तो रेट भले कम हो जायें पर जहां हाई प्रोफाइल ऊंटों की बात हो वहां तो ऊंटों के मज़े ही मज़े हैं, पांचों अंगुलियां घी में और सिर बोरे बोरे भर नोटों में|

वैसे यह घी वाला मुहावरा कुछ जमता नहीं क्योंकि एक तो शुद्ध घी अब मिलता नहीं है दूसरे ऊंट अपनी करवट सड़े से और पांच सौ रुपट्टी किलो वाले घी में थोड़े बेचेगा| अच्छा बड़ा चारागाह लेगा, बड़े बड़े जंगल लेगा, पीपल बरगद आम अमरूद जैसे बड़े बड़े पेड़ धरा लेगा तब तो मानेगा| आजकल ऊंट बहुत समझदार हो गये हैं | मौका देखते ही पल्टी मार देते हैं| मुझे एक पल्टी मार बाबा की याद आ रही है| बाबा कार मे थे| बड़ी स्पीड में दौड़ती कार के सामने एक बुढ़िया आ गई| ब्रेक लगते लगते वह गाड़ी के सामनॆ गिरकर ढेर हो गई| बाबाजी का गुस्सा आठवें आसमान पर चला गया, थर्मामीटर फोड़कर लावा बाहराअ गया “क्यों री बुढ़िया यहीं आकर मरना था और को जगह नहीं मिली तुझे” बाबाजी के मुंह से गालियां झर रहीं थीं| गनिमत थी कि बुढ़िया को गाड़ी की ठोकर नहीं लगी थी}वह डर‌ के मारे गिरी थी| अचानक बाबाजी ने दॆखा कि पीछे आने वाले वाहन से कुछ फोटो ग्राफर दौड़े चले आ रहे हैं| अब तो बाबा गिरगिट बन गये फौरन रंग बदल गया| ‘अरे यार देखो तो बेचारी कार के नीचे आते आते बच गई भगवान का लाख लाख शुक्र है कि कोई अनहोनी नहीं हुई’ इतना कहकर बाबाजी ने दौड़कर बुढ़िया का सिर अपनी गोद में रख लिया और ड्राइवर को पानी लाने के लिये आवाज़ लगाने लगे| केमरामेनों अपने अपने कॆमरे चमका दिये| हे भगवान कहाँ वह प्रवचन और कहाँ यह दयालु भगवान का अवतार| पल्टी ऐसे ही मारी जाती है|

तो हे प्यारे प्यारे ऊंटो अच्छे अच्छे अवसर आपको उपलब्ध हो रहे हैं मौका मत गवांना, जिस करवट यार लोग बिठाना चाहें बैठ जाना परंतु सौदेबाजी में जरासी भी कोताही मत करना| ऐसे मौके कब कब आते हैं| ऊंटनियाँ भी ऐसे शुभ अवसरों की तलाश में है| ईश्वर उनका भी भला करे|