ऋचा / भाग-9 / पुष्पा सक्सेना
अगले कुछ दिन भारी व्यस्तता में कटे। इस बीच युवकों के पिताओं ने ऋचा और विशाल पर हर तरह के दबाव डाले। पैसों से लेकर पाँव पड़कर माफी माँगने तक की बात कही गई, पर ऋचा अविचलित रही। शहर में ऋचा की हिम्मत की दाद दी जाती। अखबार-पत्रिकाओं ने ऋचा को उच्च पद देने के प्रस्ताव रखे, पर ऋचा ने निश्चय कर लिया, अब वह अपना खुद का अखबार निकालेगी, जिसमें सच्ची पत्रकारिता को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
विशाल ऋचा के केस की तैयारी में जुटा था, कहीं कोई बात छूट न जाए। सुनीता के केस की तारीख भी आनेवाली थी। अच्छी बात यह हुई कि सुधा के मामले में इन्क्वॅायरी-कमेटी ने सुधा को निर्दोष बताते हुए उसे पुनः नौकरी पर रखने के आदेश दे दिए। सुधा फिर उसी जगह जाने से हिचक रही थी, पर परेश ने हिम्मत दिलाते हुए कहा-
"तुमने अपनी ऋचा दीदी से कोई सीख नहीं ली। उन्होंने किस हिम्मत से अपने बलात्कार की रिपोर्ट न सिर्फ थाने मंक दर्ज कराई बल्कि अखबारों में छपवाई और एक तुम हो जिसे फिर जॅाब आॅफर किया जा रहा है और तुम ज्वाइन करते डर रही हो। याद रखो, तुम्हारी पुनः नियुक्ति के लिए ऋचा जी ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है।"
"ठीक कहते हो, परेश। अगर मैं ड्यूटी ज्वाइन नहीं करती तो यह ऋचा दीदी की हार होगी और मैं किसी भी हालत में उन्हें हारने नहीं दूँगी।"
परेश और सुधा के साथ स्मिता और नीरज भी आए थे। सुधा को बधाई देती ऋचा सचमुच खुश थी। नीरज बेहद शर्मिन्दा था-
"मुझे क्या माफ़ कर सकती हो, ऋचा? उस दिन होश गॅंवा, न जाने क्या-कुछ कह गया। तुमने सुधा के लिए जो किया, एक भाई होकर भी मैं नहीं कर सका।"
"जाने दो, नीरज। उस दिन तुम नहीं, एक परेशान भाई बोल रहा था। लड़की के साथ कुछ ऊॅंच-नीच हो जाने पर घरवालों की मनोदशा मैं समझ सकती हूँ। हमें इस समाज को बदलना होगा, नीरज।"
"उसकी पहल तो हो चुकी है, ऋचा। सारा शहर तुम्हारे मुकदमे के फ़ैेसले के लिए बेचैन है।" नीरज हॅंस रहा था।
"सुना है, वे तीनों तो गूँगे-से हो गए हैं। उनके बाहर निकलते ही लोग उॅंगलियाँ उठाते हैं। सारी हेकड़ी धरी-की-धरी रह गई।" परेश खुश था।
"इसका श्रेय तो ऋचा दीदी को जाता है। अगर उन्होंने डर के कारण अपनी बात छिपा ली होती तो आज भी वे लोग खुले साँड़-से सड़कों पर घूम रहे होते। मेरा तो जी चाहता है, हम सब मिलकर उन्हें सबक सिखाएँ।" सुधा उत्तेजित थी।
"नहीं, सुधा। मुझे पूरी उम्मीद है, कानून उन्हें कड़ी-से-कड़ी सजा दिलवाएगा। वैसे तुमलोग शादी कब कर रहे हो?"
"जिस दिन उन दुष्ट बलात्कारियों को सज़ा दी जाएगी, आप केस जीत जाएँगी, उसके बाद ही हमारा विवाह होगा। यही हमारा निश्चय है।" दृढ़ स्वर में परेश ने बात कही।
"थैंक्स, परेश, पर यह तो तुम्हारे साथ अन्याय ही होगा।" विशाल ने कृतज्ञता जताई।
"हाँ, ऋचा, तुम्हारे प्रशंसकों में प्रकाश जी का नाम भी जुड़ गया है। जल्दी ही वह तुमसे मिलने आने वाले हैं। रागिनी और प्रकाश आज ही आते, पर स्कूल में कुछ काम निकल आया है।" स्मिता ने मुस्कराकर ऋचा की बड़ाई की।
"अच्छा-अच्छा, हम काफ़ी नाम कमा चुके। अब बता, तेरे जॅाब का क्या रहा? इन दिनों तूने तो मुझे भुला ही दिया न, स्मिता?"
"नहीं, ऋचा, तू क्या भुलाई जा सकनेवाली चीज है। असल में हमारा जी अच्छा नहीं रहता, इसलिए अभी जॅाब की बात छोड़ दी है।" कुछ शर्माती स्मिता ने कहा।
"आप जल्दी ही मौसी बननेवाली हैं, ऋचा जी। भाभी उम्मीद से हैं। एक और खुशखबरी, नीरज भइया बैंक-सर्विस के लिए चुन लिए गए हैं।" सुधा ने दो-दो खुशखबरियाँ दे डालीं।
"अरे वाह! तब तो मिठाई के साथ आना चाहिए था।" ऋचा चहक उठी।
"सोचा तो हमने भी था, फिर लगा, तेरे साथ ऐसा हादसा हुआ, उसके बाद क्या मिठाई लाना ठीक होगा?" कुछ संकोच से स्मिता ने कहा।
"ठीक कहती हो, स्मिता। अगर विशाल मेरे साथ न होते तो हिम्मत न हारने पर भी लोगों की नज़रों में मैं बेचारी लड़की भर बनकर रह जाती। अपने खुशहाल जीवन के लिए मैं विशाल की आभारी हूँ। विशाल ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि जो हुआ, वह एक दुर्घटना थी और दुर्घटनाएँ दुःस्वप्नों की तरह भुला दी जानी चाहिए।" कृतज्ञ दृष्टि से ऋचा विशाल को देख, मुस्करा दी।
"अच्छा-अच्छा, अब विशाल-प्रशंसा-पुराण बन्द करो। अपने दोस्तों को बढ़िया-सी कॅाफ़ी पिला दो।"
ऋचा के हटते ही नीरज पूछ बैठा-
"एक बात पूछना चाहता हूँ विशाल, क्या ऋचा के साथ हुए हादसे का तुमपर ज़रा-सा भी असर नहीं हुआ? मेरी बात को अन्यथा मत लेना प्लीज!"
"सच तो यह है, मैं स्तब्ध रह गया था। एक पल को लगा, मेरी दुनिया ही उजड़ गई, सब कुछ ख़त्म हो गया। हाॅस्पिटल में माँ की बेड के पास बैठा जागता रहा। अचानक लगा, ये मैं क्या सोचने लगा। ऋचा को मैंने पूरे मन से चाहा, क्या मात्र शरीर ही सबकुछ हो गया। आखिर लोग विधवा से भी तो विवाह करते हैं। उस स्थिति में तो उसका अपने पति के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी रहता होगा। ऋचा तो उनसे नफ़रत करती है। उसके मन ने तो बस मुझे चाहा है, उस मन को कैसे नकार दूँ? बस सारी दुविधा दूर हो गई।" विशाल गम्भीर हो आया।
"वाह विशाल भाई, आपने तो पूरा नज़रिया ही बदल दिया। काश, दूसरे पुरूष भी आपकी तरह ऐसी स्थिति का विश्लेषण कर पाते।" परेश की आँखों में सच्ची प्रशंसा की चमक थी।
"लीजिए गरमा-गरम कॅाफ़ी हाजिर है।" कॅाफ़ी के साथ बिस्किट लेकर ऋचा आ गई।
सबके जाने के बाद ऋचा विशाल से पूछ बैठी-
"विशाल, क्या तुम पहले जैसा सहज अनुभव करते हो या लोगों के सामने एक्टिंग करना तुम्हारी मजबूरी है?"
"मैं कभी अच्छा एक्टर नहीं रहा, ऋचा। क्या तुम मेरे साथ असहज महसूस करती हो?"
"नहीं, विशाल, पर कभी-कभी दुःस्वप्न मुझे जगा जाते हैं। जी चाहता है, अपने हाथों से उन्हें सज़ा दूँ।"
"वक्त सबसे बड़ा मरहम है, वह बड़े-बड़े दुःख भुला देता है, यह तो बस एक हादसा था।" विश्वास से विशाल ने ऋचा की आँखों में आँखें डालकर देखा।
"अच्छा विशाल, तुम मेरे केस को लेकर बिज़ी हो। सुनीता के केस का क्या हो रहा है? "
"पन्द्रह दिसम्बर को उसकी सुनवाई है। सिस्टर मारिया जैसी चश्मदीद गवाह की वजह से उसका केस काफ़ी मजबूत है। सुनीता ने बताया, राकेश उससे माफ़ी माँगने को तैयार है, पर सुनीता उस नरक में वापस नहीं जाना चाहती।"
"बिल्कुल ठीक निर्णय है। राकेश इन्सान नहीं, राक्षस है।"
"और मेरे बारे में आपका क्या ख्याल है, ऋचा जी?" विशाल ने ऋचा को छेड़ा।
"तुम? बस ठीक-ठाक हो।" ऋचा हॅंस पड़ी।
"तुम्हारे लिए एक और खुशखबरी है, तुम अपना अखबार निकालना चाहती हो, उसके लिए चन्द्रमोहन जी पैसा लगाने को तैयार हैं। उन्हें विश्वास है, तुम जैसी कर्मठ संपादिका के साथ अखबार खूब चलेगा।"
"वाह! यह तो सचमुच अच्छी ख़बर है। मैं कल ही से तैयारी में जुट जाती हूँ।" ऋचा खुश हो गई।
ऋचा के मुकदमे के दिन कोर्ट में तिल रखने की जगह नहीं थी। शहर के सारे पत्रकार, युवा पीढ़ी और दूसरे लोग उमड़ पड़े थे।
अभियुक्तों की ओर से वकील ने ज़ोरदार शब्दों में दलीलें पेश कर ऋचा के बयान को झूठा सिद्ध करना चाहा, पर ऋचा के निर्भीक बयान में सच्चाई थी। डाॅ. निवेदिता और सिस्टर मारिया ने ऋचा के बयान की पुष्टि कर, ऋचा की सच्चाई पर मुहर लगा दी। डाॅ. निवेदिता की घोषणा से तो कोर्ट में सन्नाटा ही छा गया-
"माई लाॅर्ड, मैं बताना चाहॅूंगी, उस रात ऋचा ने जो कपड़े पहन रखे थे, वे कपड़े मेरे पास सुरक्षित रखे हैं, उन कपड़ों की मदद से डी.एन.ए. जाँच कराई जा सकती है।"
विपक्षी वकील ने बात परिहास में टालनी चाही-
"इसका मतलब डाॅ. निवेदिता डाॅक्टरी के साथ साइड-बिजनेस के रूप में वकीलों के लिए सबूत जमा करने का काम भी करती हैं।"
"जी हाँ, जिस दिन सबूत के अभाव में बलात्कार की शिकार मेरी बहन को कोर्ट से न्याय नहीं मिल सका, उसे आत्महत्या करनी पड़ी, उस दिन से हर बलात्कार की शिकार लड़की की मदद करना मेरा फ़र्ज बन गया है। मेरी आपके लिए भी एक सलाह है। बलात्कारियों को बचाने की जगह उन्हें सज़ा दिलाने में मदद करके पुण्य कमाइए। हो सकता है, जिन्हें आप आज बचा रहे हैं, कल आपकी बेटी का बलात्कार कर डालें।"
कोर्ट में उपस्थित जनसमूह ने तालियाँ बजाकर डाॅ. निवेदिता की बात का समर्थन किया। विपक्षी वकील का चेहरा तमतमा आया।
सिस्टर मारिया ने दृढ़ स्वर में अपनी बात कही-
"मैं एक नर्स हूँ। इन्स्पेक्टर कुलकर्णी के साथ मैं भी उस फ़ार्म-हाउस में गई थी, जहाँ वो तीनों अपनी जीत का जश्न मना रहे थे। पलंग की चादर पर पड़े खून के धब्बे, ऋचा के फाड़े गए कपड़ों के टुकड़े सबूत के रूप में ज़ब्त किए गए थे। मुझे उम्मीद है, इंस्पेक्टर कुलकर्णी ने उन सबूतों को सुरक्षित रखा होगा।"
"जी ......ई ........ हाँ-हाँ ...... इन्स्पेक्टर हकला से गए।
"क्या बात हैं, इन्स्पेक्टर आपकी तबीयत तो ठीक है? मैं अदालत में सिस्टर मारिया के बताए गए सबूत पेश करने की इजाज़त चाहता हूँ।" विशाल ने इन्स्पेक्टर की आँखों में आँखें डालकर अपनी बात कही।
इन्स्पेक्टर कुलकर्णी का चेहरा उतर-सा गया। सबूत छिपाने के परिणाम गम्भीर हो सकते हैं। विशाल की धमकी के बाद प्रमाण छिपा सकना असम्भव था। बाजी हारते देख, विपक्षी वकील ने ऋचा से अश्लील प्रश्न पूछकर उसके चरित्र पर उॅंगली उठाने का प्रयास किया-
"सुनते हैं, आप रातों में अक्सर देर तक बाहर रहती थीं। पुरूषों की कम्पनी आप ज्यादा एन्जवाॅय करती थीं, क्या यह सच है?"
"जी हाँ, बिल्कुल सच है। मैं एक पत्रकार हूँ। मेरे कई पुरूष-मित्र हैं, वे मेरा सम्मान करते हैं। हाँ, भेड़ियों से पाला पड़ने का यह मेरा पहला और आख़िरी मौका था।"
"इसे आप आख़िरी मौका कैसे कह सकती हैं। हो सकता है, आप के साथ फिर कोई हादसा हो जाए। देर रात तक बाहर घूमना आपका शौक है।"
"हाँ, अगर भेड़ियों को खुला छोड़ दिया जाए तो वे जरूर फिर शिकार करना चाहेंगे, इसीलिए उन्हें खुला छोड़ना खतरे से खाली नहीं होता। वैसे आपकी तसल्ली के लिए बता दॅूं, अब अगर कभी मुझपर हमला करने की कोशिश की गई तो मैं उसे वहीं ख़त्म कर दूँगी। घायल शेरनी अपना शिकार नहीं छोड़ती।"
जनसमूह ने तालियों के साथ 'हियर-हियर', 'दिस इज दि स्पिरिट' का शोर मचा दिया। अभियुक्तों के नामों के साथ 'शेम-शेम' के नारे लगाए गए। बड़ी मुश्किल से लोगों को शान्त किया जा सका।
मुकदमे की पूरी सुनवाई के बाद मुख्य अभियुक्त जयन्त को दस साल की कैदे बा मशक्कत की सज़ा सुनाई गई। अन्य दो अभियुक्तों को जयन्त का साथ देने तथा दुराचार के लिए सात-सात वर्षो की सज़ा का फ़ैसला दिया गया।
फैसले के बाद विशाल को लोगों ने बधाइयाँ देकर, उसके उज्ज्वल भविष्य की घोषणा कर डाली। ऋचा के चारों ओर पत्रकार घिर आए। वे ऋचा को पत्रकारों की ओर से सम्मानित करने को उत्सुक थे। ढेर सारी फ़ोटो खींच डाली गई।
सीतेश ने कहा-
"ऋचा, आप सचमुच अनुपमा हैं। आपने दिखा दिया, बलात्कार की शिकार लड़की सम्मान की पात्री हो सकती है, बशर्ते वह स्वंय को अपराधिनी मानकर हिम्मत न हार जाए। मुझे आप पर गर्व है।"
घर में मित्रों का जमघट देर रात तक जमा रहा।
नीरज ने पूछा-
"भविष्य के लिए अब तुम दोनों की क्या योजना है? कहीं बाहर हो आओ, मन बदल जाएगा।"
"मेरा मन तो आज ही बदल गया है, नीरज। विशाल मेरा केस तो जीत गए, पर अभी सुनीता को न्याय दिलाना है।" ऋचा गम्भीर थी।
"उसकी चिन्ता मत करो, ऋचा। स्त्रियों को न्याय दिलाने में विशाल को कोई पराजित नहीं कर सकता। मुझे डर है, कहीं यह औरतों के ही वकील बनकर न रह जाएँ।" स्मिता ने चुटकी ली।
"ऐसा न कहो, तब तो ऋचा जी के लिए औरतें खतरा बन जाएँगी।" परेश भी परिहास करने से नहीं चूका।
"अब मज़ाक छोड़ो। बताओ, अपनी शादी में हमें कब बुला रहे हो?" ऋचा ने परेश से पूछा।
"जब बड़े आज्ञा दें, हम तो तैयार बैठे हैं।"
"ठीक है, जल्दी ही तारीख निकलवाते हैं, पर मेहनताना देना होगा।" स्मिता ने परेश को छेड़ा।
"वाह, स्मिता, तू तो बड़ी बातें बनाने लगी है, पर नीरज की नौकरी की दावत भूल ही गई।"
"नहीं, ऋचा। हम कुछ नहीं भूले हैं, पर तेरे केस का इतना टेन्शन था कि खुशी मनाने का जी ही नहीं चाहा। अब जल्दी ही सबको घर बुलाकर दावत दूँगी।" स्मिता का चेहरा चमक रहा था।
"स्मिता के पास एक और खुशखबरी है, ऋचा।" मुस्कराते नीरज ने कहा।
"वाह! क्या बात है, स्मिता! तू तो छुपी-रूस्तम निकली। एक के बाद एक सरप्राइज दे रही है। जल्दी बता कौन-सी खुशखबरी है।"
"मम्मी-पापा ने हमे माफ़ कर दिया, ऋचा!" स्मिता का चेहरा खुशी से जगमगा रहा था।
"सच! यह तो सचमुच खुशी की बात है। लगता है, वे नाना-नानी बनने वाले हैं, यह खबर उन तक पहुँच गई। क्यों ठीक कह रही हूँ न?"
"नहीं, ऋचा! उन्हें तो यह बात बाद में पता लगी, पर उसके पहले उन्हें प्रशान्त की सच्चाई पता लग गई थी।"
"प्रशान्त की सच्चाई? क्या मतलब है, तेरा, स्मिता?" ऋचा विस्मित थी।
"हाँ, ऋचा! पपा को उनके यू.एस.ए. के मित्रों से पता लगा, प्रशान्त ने एक अमेरिकी लड़की से विवाह कर रखा था। बूढ़े माँ-बाप की सेवा के लिए उसे स्मिता जैसी एक सीधी-सादी लड़की चाहिए थी।"
"हे भगवान्! तू बाल-बाल बच गई, स्मिता! अगर मुझे वह प्रशान्त नामधारी जीव मिल जाए तो काले पानी की सज़ा दिलवा दूँ।" ऋचा का आक्रोश देख विशाल हॅंस पड़ा।
"ग़नीमत है, प्रशान्त को फाँसी पर नहीं लटकाओगी।"
"यह हॅंसने की बात नहीं हैं, विशाल! विदेश ख़ासकर अमेरिका का भूत आज की युवा पीढ़ी पर इस कदर हावी है कि आँखें बन्द कर लड़कियाँ अमेरिका में बसे लड़कों को चुन लेती हैं। बाद में भले ही आठ-आठ आँसू रोने पड़े।"
"शुक्र भगवान् का, तुम्हें किसी अमेरिका में बसे लड़के ने प्रोपोज नहीं किया। वैसे स्मिता तो सचमुच समझदार निकली, प्रशान्त के आकर्षण से बिल्कुल अछूती रही। विशाल की बात पर सब हॅंस पड़े।"
"इसके लिए तो क्रेडिट मुझे मिलना चाहिए। भई, मै हूँ ही ऐसा इन्सान जिसके आगे प्रशान्त जैसे लोग पानी भरें।" काॅलर उठा, नीरज ने गर्व से कहा।
"यह तो सच बात है। अरे, हम भारतीय युवक तो होते ही कमाल के हैं।" इस बार परेश ने अप्रत्यक्ष रूप में अपनी तारीफ़ कर डाली।
"अब असली बात तो बता, तेरे ममी-पापा ने क्या कहा, स्मिता?"
"सबकुछ बड़े नाटकीय ढंग से हुआ। दरवाजे की दस्तक पर मैंने ही दरवाजा खोला। मम्मी-पापा को देख, बिल्कुल जड़ रह गई।"
मम्मी ने बड़े प्यार से पूछा- "कैसी है, स्मिता बेटी?"
मेरे मॅंुह से कोई जवाब ही नहीं निकला। पीछे से सासू माँ के आ जाने पर बड़ी मुश्किल से कह सकी, "अम्मा जी, ये हमारे मम्मी-पापा हैं।"
सासू माँ की खुशी का ठिकाना न था। थालों में मिठाइयाँ, बड़े-बड़े कीमती उपहारों ने उनके सारे गिले-शिकवे दूर कर दिए।
"इतने दिनों बाद बेटी की सुध ली, समधिन जी। हमने तो बहू से कई बार कहा, माँ के घर हो आओ। अरे, माँ-बाप से भी भला कोई नाराज़ होता है।"
"असल में ग़लती हमारी ही थी। हमने हीरा पहचानने में देर कर दी। कोयले को हीरा समझ बैठे थे।" मम्मी की आवाज में अपराध-बोध स्पष्ट था।
"नीरज बेटा कहाँ है?" इतनी देर बाद पापा के बोल फूटे थे।
"बस आता ही होगा। बैंक में बड़ा अफ़सर है सो काम में देर हो ही जाती है।" गर्व से सासू माँ का चेहरा चमक उठा।
तभी नीरज स्कूटर से आ पहुँचे। स्मिता की जगह नीरज की माँ ने उमग कर समधी-समधिन का परिचय दे डाला।
गम्भीर नीरज ने बस अभिवादन भर किया।
"बैठो, बेटा! बड़े थके-से लग रहे हो?" स्मिता के पापा ने स्नेहपूर्ण स्वर में कहा।
"जी नहीं! यह तो मेरा रोज़ का काम है। अभी फ्रेश होकर आता हूँ।"
नीरज के जाने के बाद सासू माँ भी पीछे-पीछे नाश्ते-चाय का इन्तजाम करने चली गई।
स्मिता से मम्मी ने पूछा- "खुश तो हो, बेटी?"
"हाँ, मम्मी! यहाँ हमें कोई तकलीफ़ नहीं है। सब हमें बहुत प्यार करते है।"
"हमसे ग़लती हो गई, स्मिता बेटी। हम प्रायश्चित करना चाहते हैं। मैं चाहता हूँ, तुम दोनों मेरे नए फ़ार्म-हाउस में शिफ्ट कर जाओ। वह फ़ार्म-हाउस मैंने नीरज के नाम कर दिया है।" पापा ने स्मिता से कहा।
कमरे में आते नीरज के कानों में पापा के वे शब्द पड़ गए थे। शांतिपूर्ण स्वर में कहा-
"नहीं, पापा! हमें बस आपका आशीर्वाद चाहिए। जल्दी ही मुझे घर मिलनेवाला है, आप परेशान न हों। हमे अपने इस छोटे से घर में कोई तकलीफ़ नहीं है।"
"नीरज बेटा! हमसे भूल हो गई। हमारा सबकुछ अन्ततः स्मिता का ही तो है।"
"मैंने पहले ही कह दिया था, मुझे आपके धन से कोई लेना-देना नहीं है। स्मिता से बड़ा धन और क्या होगा और वह धन मेरे पास है।"
"मैं तुम्हारे विचारों की कद्र करना हूँ, नीरज, पर माँ-बाप का भी बेटी के लिए कोई फ़र्ज होता है।"
"इस बारे में आप स्मिता से बात कर लीजिए, पापा! अगर स्मिता कुछ स्वीकार करना चाहे तो मुझे आपत्ति नहीं होगी।"
"पापा, आपने और मम्मी ने पढ़ा-लिखाकर मुझे इस योग्य बनाया है। आपके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकॅंूगी। आज हमे आशीर्वाद देकर आपने सब कुछ दे दिया। इससे अधिक हमें और कुछ नहीं चाहिए।" स्मिता का गला भर आया।
"मुझे अपनी बेटी पर गर्व है। तुमने सच्चा जीवनसाथी चुना है, स्मिता बेटी! भगवान् तुम दोनों को सदैव सुखी रखें।"