ऋतिक कंगना विवाद के कुछ पहलू / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :11 अप्रैल 2016
ऋतिक रोशनऔर कंगना रनोट का आपसी विवाद चौपाल के धोबीघाट से रेंगकर अदालत के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। दोनों पक्षों के वकीलों के अच्छे दिन गए हैं। लोकप्रिय सितारों का मुकदमा लड़ने वालों के साक्षात्कार छोटे परदे पर दिखाए जा रहे हैं। यह उनके लिए अनपेक्षित ख्याति और आर्थिक लाभ का समय है। अवाम भी चटखारे लेकर आनंद प्राप्त कर रहा है। अनचाहे अनावश्यक युद्ध ने दोनों सितारों और परिवार की नींद उड़ा दी है। सुजैन से अपने तलाक के बाद ऋतिक जुहू की एक इमारत के तीसरे माले पर किरायेदार के रूप में रह रहा है और इसी इमारत में अक्षय कुमार की निर्माण संस्था का दफ्तर भी है और वे यहां अन्य माले पर रहते भी हैं। कुछ माह पूर्व साजिद नाडियाडवाला ने भी एक माला किराये पर लिया है, क्योंकि उनके पुराने घर को तोड़कर वहां नया निर्माण हो रहा है। यह इमारत डिम्पल कपाड़िया के निवास के निकट है। आजकल रोज देर रात किसी एक के निवास पर सारे पड़ोसी इकट्ठा हो जाते हैं। इस अड्डेबाजी में शराबनोशी के साथ सतत ठहाके लगाए जाते हैं।
कल्पना कीजिए कि इसी फिल्मी अड्डे पर एक रात बिंदास कंगना रनोट अपनी फिल्म 'क्वीन' के एक दृश्य की तर्ज पर एक बोतल हाथ में लिए जाए और सारे लोग अलसुबह तक पीते रहंे और ठिठोली करते रहंे तथा अल्कोहल और अलसुबह के संयुक्त नशे में ऋतिक कंगना के सामने शादी का प्रस्ताव रखे तो पुन: रेखांकित हो जाएगा कि प्रेम और युद्ध एक ही सिक्के के दो पहलू हंै। याद आती है रिचर्ड बर्टन अौर एलिजाबेथ टेलर की फिल्म 'हू इज अफ्रेड ऑफ वर्जीनिया वूल्फ।' यह एक विश्वविद्यालय में शिक्षकों के लिए बने घर में घटित एक रात का घटनाक्रम है। पति-पत्नी विद्वान होने के साथ शराब पीने की असीमित ताकत रखते हैं। नशे का आलम उनके अवचेतन में छिपे भय को उजागर करता है। यह कितना बड़ा विरोधाभास है कि पढ़े-लिखे लोग अपने भय और पूर्वग्रह से मुक्त नहीं हो पाते, जबकि शिक्षा का ध्येय ही यह है कि मनुष्य भय से मुक्त हो जाए। यह भय और पूर्वग्रह की अजब फितरत है कि उनसे मुक्ति के सारे प्रयास में वे सशक्त और प्रगाढ़ होते जाते हैं। दलदल में फंसा मनुष्य बाहर अाने के लिए जितने हाथ और पैर मारता है, उतना ही अधिक भीतर धंसता जाता है। अगर वह शरीर को निष्क्रिय कर दे तो उसे डूबने में बहुत वक्त लगेगा, क्योंकि दलदल के भीतर कोई उसका अपना चुंबक नहीं है। मनुष्य का अपना वजन ही उसे डुबाता है। इस बात को शेक्सपीयर ने भी बखूबी प्रस्तुत किया है कि 'ट्रैजेडी ऑफ एरर्स, गॉड वॉट, एनिमी लाइज विदिन मैन।' दुखांत के लिए किसे दोष दें, मनुष्य का शत्रु स्वयं मनुष्य के भीतर रहता है।
इस्लाम से प्रेरित साहित्य में हमजाद अवधारणा है, जिसका सार यह है कि जन्म के समय ही मनुष्य का शत्रु भी उसके भीतर जन्म लेता है। मनुष्य के बुरे कामों से उसके भीतर छिपा शत्रु बलवान होता जाता है और वही उसे मार भी देता है। यह हमजाद हमसफर से अलग शब्द है और यह मनुष्य की छाया भी नहीं है। यह सोच-विचार में रोपित सत्य है। अचरज इस बात का है कि मनुष्य सबकुछ जानता है और अपनी सुविधानुसार जानकर अनजान बन जाता है। हम सबसे अधिक छल स्वयं के साथ करते हैं। अगर कंगना और ऋतिक शादी कर लें तो उनका विवाहित जीवन कैसा होगा? इस विवाह की पतंग कितने समय आकाश में हवा से अठखेलियां करेगी - इसका अनुमान लगाना कठिन है। यह तय है कि राकेश रोशन को यह सुविधा होगी कि नायक और नायिका घर के ही है। उनके साथ बनाई गई फिल्म में बड़ा जोखिम है कि कहीं उनके बीच जन्मे किसी विवाद से कहीं फिल्म अधूरी नहीं रह जाए। कंगना और ऋतिक में समानता यह है कि दोनों बोलते पहले हैं और सोचते बाद में हैं। मधुबाला और दिलीप के बीच प्रेम भी था और युद्ध भी हुआ था जब दिलीप ने निर्माता बलदेवराज चोपड़ा के पक्ष में अदालत में गवाही दी थी। इस घटना के बाद उन्होंने "मुगल-ए-आजम' के प्रेम दृश्य बड़ी विश्वसनीयता से निभाए थे।
इसी तरह मीना कुमारी ने भी अपने पति कमाल अमरोही से अलग होेने के बाद और अत्यंत बीमार अवस्था में किसी तरह 'पाकीज़ा' की शूटिंग पूरी की। इन दिनों शॉट ओके होने के बाद मीना कुमारी अपने मेकअप रूम में कटे हुए वृक्ष की तरह हो जाती थी परंतु जाने कैसे कैमरे के सामने आते ही उनमें ऊर्ज जाती थी। कैमरे और कलाकार का रिश्ता परिभाषाओं के परे जाता है। ठाठ-बाट का जीवन जीने वाले राज कपूर 'तीसरी कसम' के देहाती पात्र को ऐसे जीवंत कर देते थे मानो सारी उम्र उन्होंने बैलगाड़ी चलाई हो। यह अभिनय क्षेत्र ही है, जहां एक व्यक्ति को अनेक जीवन जीने का अवसर मिल जाता हैं। संभवत: शादियां गुरिल्ला युद्ध की तरह होती है। पति-पत्नी अवसर पाकर आक्रमण करते हैं और अपनी कमजोरियों के टीलों पर छिप जाते हैं।