ऋतिक रोशन और अभिषेक में बदलाव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 07 जून 2019
अभिषेक बच्चन ने कुछ व्यावहारिक निर्णय लिए हैं। अब वे अपना मेहनताना निर्माता और फिल्म के नतीजे पर छोड़ देते हैं। 'मनमर्जियां' के बाद उन्हें काम नहीं मिल रहा था। वे एक वेब सीरीज़ की शूटिंग पूरी कर चुके हैं। संभावना है कि आदित्य चोपड़ा अपनी फिल्म 'बंटी और बबली' के दूसरे भाग में अभिषेक बच्चन के नाम पर विचार करें। ज्ञातव्य है कि 'बंटी और बबली' अमेरिकन फिल्म 'बोनी एंड क्लाइड' से प्रेरित थी, जिसमें दो युवा अपनी ज़िंदगी में ऊब से परेशान होकर मात्र धन प्राप्त करने के लिए बैंक लूटते हैं। आदित्य चोपड़ा भी अपनी 'धूम' की अगली कड़ी पर काम कर रहे हैं। अभिषेक बच्चन की ही तरह ऋतिक रोशन ने भी अपने आलस्य को त्याग कर पुनः सक्रिय होने का विचार किया है और अब अपना मेहनताना भी निर्माता की इच्छा पर छोड़ रहे हैं। उनकी 'सुपर 30' प्रदर्शन के लिए तैयार की जा रही है। सितारों के इन व्यावहारिक फैसलों से फिल्म निर्माण को गति और ऊर्जा मिलेगी। सितारों के आकाश छूने वाले मेहनताने के कारण ही निर्माता हताश हो गए थे। फिल्म निर्माण का बड़ा भाग सितारों के मेहनताने के रूप में चला जाता था तो फिल्म निर्माण सीमित धन में करना पड़ता था। भारत का युवा वर्ग भी अमेरिकन एक्शन मसाला फिल्म देखना पसंद करता है। अतः प्रतिस्पर्धा कड़ी है। सारांश यह है कि मेहनताने को अपने अहंकार से जोड़ना बंद किया जा रहा है। ऋतिक रोशन ने अपनी असाधारण अभिनय क्षमता को पूरी तरह विकसित नहीं होने दिया। उनके पिता राकेश रोशन को कैंसर हुआ है और इलाज से उन्हें लाभ भी हो रहा है परंतु नई फिल्म शुरू करने में समय लग सकता है। शाहरुख खान भी आनंद एल राय के साथ 'जीरो' के हादसे के बाद आत्म चिंतन करते हुए कुछ व्यावहारिक निर्णय ले सकते हैं। ऋषि कपूर अपने इलाज के बाद अगले माह के मध्य तक भारत लौट सकते हैं। उनके पुत्र रणवीर कपूर अपने निकटतम मित्र अयान मुखर्जी की 'ब्रह्मास्त्र' की शूटिंग कर रहे हैं। ताजा खबर यह है कि इस फिल्म के भाग-2 के कुछ अंश भाग-1 के सेट पर ही शूट किए जा रहे हैं ताकि वही सेट भाग-2 में भी इस्तेमाल किया जा सके। गोयाकि किफायत व बचत का मंत्र सितारों ने जपना शुरू कर दिया है, क्योंकि अब कोई और रास्ता भी नहीं है। काश हमारा उच्च मध्यम वर्ग भी दिखावा छोड़कर किफायत की अपनी सदियों पुरानी सोच पर लौट आए। इंटरनेट पर वेब सीरीज़ धड़ल्ले से बन रही हैं और इसने पुनः रेखांकित किया है कि फिल्में बनती रहेंगी और प्रदर्शन के लिए टेक्नोलॉजी मंच प्रदान करती रहेगी। फिल्म एकमात्र कला है, जो मशीन के गर्भ से जन्मी है और टेक्नोलॉजी इसका पालन पोषण करती है। दरअसल, टेक्नोलॉजी गर्भवती सर्पिणी की तरह है, जो एक कतार में 100 अंडे देती है और अपना पेट खाली होने के बाद उसे भूख लगती है तो अपने ही अंडे खाने लगती है। हवा के कारण दो चार अंडे कतार से छिटक जाते हैं और इसी कारण बच भी जाते हैं। सिनेमा भी ऐसा ही छिटका हुआ अंडा है, जो बच गया है। भीड़ की अव्यावहारिकता के कारण ही सभ्य समाज ने कतार व्यवस्था को खोजा परंतु कतार में खड़े-खड़े सारे लोग एक जैसा सोचने लगें- यह ज़िद फासिस्ट है।
अमिताभ बच्चन अत्यंत प्रभावशाली और परिश्रमी व्यक्ति हैं। आज भी अनेक बीमारियों से जूझते हुए निरंतर काम कर रहे हैं। उनके मन में इस तरह की इच्छा जागना स्वाभाविक था कि उनके पुत्र का भी राज्याभिषेक हो परंतु वंशवाद सामंतवादी विचार है। यद्यपि तथ्य है कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर और नेता का बेटा नेता हमेशा से होता रहा है। कभी-कभी किसी क्लर्क का बेटा अफसर भी हो जाता है। अभिषेक बच्चन अपने पिता की तरह महत्वाकांक्षी नहीं हैं। वे साधारण बने रहने को ही स्वाभाविकता मानते हैं। उन्होंने 'बोल बच्चन', 'धूम' इत्यादि फिल्मों में सफलता पाई परंतु राजा बनना उनके स्वभाव में नहीं है। वे सामान्य के सुख के ही अभिलाषी रहे हैं। अब किसी फिल्म में वे अपने महान पिता से लगभग बराबरी का काम करे तो सुपरस्टार हो सकते हैं। आज के दौर में 'रुस्तम सोहराब' किंवदंती से प्रेरित फिल्म बनाना बड़ा महंगा काम है। अतः वर्तमान के दौर की ही कोई कथा उन्हें एक अवसर दिला सकती है कि वे अपने महान पिता से नज़र मिला सके। ज्ञातव्य है कि दो शीतल पेय विगत एक सदी से नज़दीकी प्रतिस्पर्धी रहे हैं। एक बार एक शीतल पेय ने पेय बनाने के अपने फार्मूले में थोड़ा-सा परिवर्तन किया तो बाजार उससे रुष्ट हो गया। दूसरे शीतल पेय ने एक एक विज्ञापन जारी किया जिसमें दो व्यक्ति दो छोर पर खड़े एक-दूसरे को देख रहे हैं। विज्ञापन में लिखा था, 'वी लुक्ड इन इच अदर्स आई फॉर हंड्रेड ईयर्स, दे ब्लिंक्ड वन्स, वी डिड नॉट' हमने एक-दूसरे की आंख से आंख मिलाए रखी सौ वर्ष तक परंतु उनकी पलक पहले झपकी।