ऋतिक रोशन और पुनः संपादित फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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ऋतिक रोशन और पुनः संपादित फिल्म
प्रकाशन तिथि : 26 सितम्बर 2014


ऋतिक रोशन का कहना है कि अपने जीवन में पहली बार उन्होंने एक फिल्म की जिसके निर्माण के समय उनके मन में कोई दुविधा नहीं थी, कोई तनाव नहीं था आैर केवल आनंद की अनुभूति थी। यह फिल्म 'बैंग बैंग' है जो 2 अक्टूबर को प्रदर्शित होने जा रही है। गांधी जी के जन्मदिन पर राष्ट्रीय छुट्टी होती है आैर आजकल सिनेमा व्यवसाय का आधार ही छुट्टियां है। यह भी एक इत्तेफाक ही है कि इस वर्ष अहिंसा के पुजारी के जन्मदिन के पावन अवसर पर एक्शन फिल्म 'बैंग बैंग' लग रही है आैर शेक्सपीयर के नाटक 'हैमलेट' से प्रेरित फिल्म लग रही है जिसके प्रचार में हिंसा प्रमुख नजर रही है आैर नायक के हाथ में एक मानव खोपड़ी है। दरअसल 1948 में बने संस्करण में भी खोपड़ी का प्रतीकात्मक इस्तेमाल हुआ है आैर हैमलेट पहले ही दस बार बन चुकी है। भारत में दूसरी बार बन रही है। पहली बार किशोर साहू ने इसे "खूने नाहक उर्फ हैमलेट" के नाम से बनाया था।

बहरहाल ऋतिक रोशन के जीवन में अत्यंत दुखद घटनाएं इस फिल्म के निर्माण के समय हुई हैं, मसलन उनका दुर्घटनाग्रस्त होना आैर एक कठिन शल्य चिकित्सा से गुजरना तथा उनका अपनी पत्नी सुजैन से अलगाव एवं तलाक होना। चौदह वर्ष पुराना विवाह टूटा है जबकि प्रेम उनका 21 वर्ष पुराना है। उनके दोनों बेटों का लालन-पालन सुजैन कर रही हैं अर्थात वे इस समय पिता होते हुए भी जवाबदारी से मुक्त हैं। वे पिता के अधिकार से निरंतर अपने बेटों से मिलते हैं आैर पति-पत्नी के बीच कोई आर्थिक समझौता भी हुआ हो- यह संभव है। सच तो यह है कि सुजैन स्वयं इतनी कमाती हैं कि वे अपने दम पर ही पुत्रों को संसार की सारी सुविधाएं दे सकती हैं। यह सचमुच विचित्र है कि इतनी व्यक्तिगत समस्याआें के समय बनी फिल्म को ऋतिक आनंद का अनुभव मानते हैं। इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि नृत्य, प्रेम आैर एक्शन से भरी फिल्म में कोई वैचारिक द्वन्द या तनाव नहीं है। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि फिल्म का आर्थिक जोखम उन पर नहीं है।

बहरहाल नकारात्मक सोच के दायरे में यह कुशंका भी जगती है कि क्या अलगाव से उन्हें आनंद मिल रहा है? क्या विवाह नामक संस्था मात्र तनाव को जन्म देती है? क्या पुन: एकल होना आनंद है? ऋतिक मूलत: सरल व्यक्ति हैं आैर सुजैन से वे बचपन से ही प्रेम करते हैं। जीवन के जिस दौर में वे हकलाते थे तब भी सुजैन उन्हें हकलाने से उबरने की प्रेरणा देती है गोयाकि जब वे 'आइ लव यू' भी बिना हकलाने के नहीं बोल सकते तब भी सुजैन उनके साथ थी। इसका यह अर्थ नहीं है कि धाराप्रवाह बोलना सीखते ही उनके मुंह से तलाक निकला। दरअसल उनके संबंध के 21 सालों में दोनों ने विचार शैली को मांजा है आैर बेहतर इंसान हुए हैं परंतु कई बार दो सच्चे व्यक्ति भी साथ नहीं रह पाते। एक बार अनुपम खेर ने स्वीकार किया था कि उनकी पत्नी किरण खेर आैर उनके बीच कभी कोई तीसरा नहीं आया परंतु जाने तब भी कैसे एक दीवार बन गई अर्थात प्रेम टूटने के लिए किसी अन्य को होना आवश्यक नहीं है। कभी-कभी प्रेम का जादू या इंद्रजाल स्वयं टूटता सा नजर आता है परंतु जो टूट जाए वह प्रेम नहीं होता, वह कुछ आैर है।

बहरहाल स्वतंत्र एवं तन्हा ऋतिक रोशन के पास पुनरावलोकन का अवसर है। जीवन की घटनाएं भी फिल्म की रीलों की तरह हो सकती है आैर आप उन्हें स्मृति के परदे पर दोबारा चलाकर इसे पुन: संपादित कर सकते हैं। जीवन की फिल्म में डायरेक्टर- संपादक आैर दर्शक भी आप स्वयं ही है।