ऋषि कपूर दादा की भूमिका में / जयप्रकाश चौकसे

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ऋषि कपूर दादा की भूमिका में
प्रकाशन तिथि :22 मई 2015


जून से करण जौहर की फिल्म 'कपूर एंड सन्स' की शूटिंग तेज होने जा रही है, जिसमें ऋषि कपूर इस परिवार के नब्बे वर्षीय दादा की भूमिका में हैं। उनके बेेटे और पोतों की भूमिकाओं में अनेक सितारे काम करेंगे। यह भव्य बजट की फिल्म इस मायने में नहीं है कि इसमें कोई स्थापित सितारा नहीं है परन्तु फिल्म की पृष्ठभूमि बहुत बड़ी है। इस फिल्म में ऋषिकपूर के विशेष मेकअप के लिए अमेरिका से एक विशेषज्ञ एक करोड़ रुपए के मेहनताने पर बुलाया गया है और शूटिंग के समय प्रति सप्ताह चंद हजार ़डॉलर और देने होंगे। इस विशेष मेकअप मंें तीन घंटे से थोड़ा अधिक समय लगेगा और शूटिंग के बाद इसे उतारने में भी कम से कम एक घंटा प्रतिदिन लगेगा। मेकअप के प्रारंभ से मेकअप उतरने तक में शूटिंग सहित प्रतिदिन दस घंटे लगने वाले हैं और इस समय वे कुछ ठोस नहीं खा पाएंगे। वे केवल स्ट्रॉ के द्वारा जल और जूस ही ले सकेंगे। शूटिंग प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक चलेगी। लगभग एक माह चलने वाले इस दौर के लिए ऋषि कपूर को प्रतिदिन सुबह सात के पहले स्टूडियो पहुंचना होगा। कलाकारों की भूमिकाओं के अनुरूप अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करना होता है।

तीन माह पूर्व ही अमेरिका का मेकअप मैन भारत आया था और उसने दो-तीन प्रकार का लुक दिया, जिसकी शूटिंग करके रशप्रिंट देखकर एक लुक को स्वीकृति दी गई। इसके स्थिर चित्र में उनको उनकी मां भी नहीं पहचान पाई। क्या ऋषि कपूर ने अपने इस स्वरूप को देखकर सोचा होगा कि अगर वे नब्बे तक जिए तो संंंभवत: ऐसे लगेंगे? यह एक्टर का सौभाग्य है कि वह अपनी ही अलग-अलग अवस्थाओं की अनुभूतियों को महसूस कर सकता है, स्वयं को विभिन्न रूपों में देख सकता है। ऋषि कपूर के पिता और दादा सत्तर पार नहीं कर पाए थे परंतु उनके पड़दादा बसेशरनाथ 1960 के बाद नब्बे पार कर गए थे और उनकी शवयात्रा उनके दादा पृथ्वीराज ने गाजे-बाजे के साथ निकाली थी। मृतक को नौका विहार का शौक था, अत: अर्थी ले जाने वाली गाड़ी नाव की तरह बनाई गई थी। कुछ दिन पूर्व ही ज्ञात हुआ कि बीकानेर की कला संस्था ने बशेसरनाथ के पिता केशव की स्मृति में एक समारोह किया था। यह प्रसन्नता की बात है कि ऐसी कुछ संस्थाएं हैं, जो कलाकारों के पड़दादाओं की स्मृति में समारोह करती हैं। दूसरी और छत्तीसगढ़ सरकार से कई बार प्रार्थना की कि उनके प्रदेश में जन्में महान किशोर शाह के इस जन्मशताब्दी वर्ष में कुछ करें। ज्ञातव्य है कि राजकपूर की 'आवारा' जज की भूमिका बशेसरनाथ ने अभिनीत की और अदालत के लंबे दृश्यों में कपूर परिवार की तीन पीढ़ियां मौजूद होती थीं। आज अधिकांश लोगों को अपने पड़दादा का नाम तक नहीं याद रहता।

गौरतलब है कि करण जौहर ऋषि कपूर के गेट-अप पर इतना धन खर्च कर रहे हैं और अभिनेता भी कष्ट उठा रहा है परंतु दर्शक को फिल्म समाप्त होने पर भी मालूम नहीं होगा कि फिल्म में दादा की भूमिका में ऋषि कपूर थे। इस तरह के प्रोस्थेटिक्स मेकअप के कारण अभिनेता की भावाभिव्यक्ति भी नजर नहीं आती, केवल आवाज के उतार-चढ़ाव से ही भावों को प्रगट किया जा सकता है। संजीव कुमार ने दक्षिण की फिल्म के हिंदी संस्करण में नौ रसों की प्रतीक 9 भूमिकाएं अदा की थी परंतु परदे पर तो प्रभाव मात्र सात मुखौटों का था। प्राण साहब को भी बड़ा शौक था कि भांति-भांति के गेट-अप करें। देवकीनंदन खत्री के उपन्यासों में अय्यार पात्र दूसरे मनुष्य के रूप-धारण कर लेता था। इच्छाधारी नागिन की कपोल कल्पना के सहारे श्रीदेवी नागिन होेते हुए सुंदर स्त्री का रूप धारण करके नायक की पत्नी बन जाती है।

यह संभव है कि इन कपोल कल्पनाओं की अवधारणा प्रतीक स्वरूप बनी कि मनुष्य भी मनुष्य-सा दिखता हुआ भी नाना स्वरूप में उजागर होता है। श्रेष्ठ मित्र मौका पाकर पीठ में छुरा भोंकता है। इसलिए 'आस्तीन में सांप' जैसी कहावत बनी।

ज्ञातव्य है कि 95 प्रकार के सांप में विष ही नहीं होता परन्तु सौ प्रतिशत मनुष्य में विष अर्थात बुराई कुछ न कुछ मात्रा में मौजूद होती है। सांप का काटा बच सकता है परंतु मनुष्य के विष का कोई तोड़ विज्ञान के पास नहीं है।