ऋष्यमूक / राजनारायण बोहरे
जामवंत जब कोई किस्सा सुनाते हैं तो ऐसा रोचक होता है कि सुनने वाले बंध कर रह जाते हैं। लोग खाना-पीना भूल कर उनकी बातों में डूब जाते है। उन्होंने एक लम्बी सांस लेकर उस आगे का किस्सा आरंभ किया।
सुग्रीव का नया ठिकाना ऋष्यमूकपर्वत बना। वही ऋष्यमूकपर्वत जहाँ के बारे में कई किंवदन्ती प्रचलित हैं। कोई कहता है कि बाली को वहाँ के सात ताड़ वृक्षों के नीचे तपस्या करते मुनि ने गुस्सा होकर शाप दिया है कि जिस दिन ऋष्यमूकपर्वत पर बाली आ गये उनके सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे। तो कोई कहता है कि वहाँ बने सूर्य मंदिर पर गलती से खून का अभिशेक कर देने की आत्मग्लानि से बाली वहाँ ख़ुद ही नहीं जाते। कोई-कोई यह भी कहता है वहाँ के वनवासियाँ ने तय कर रखा है बाली जिस दिन ऋष्यमूकपर्वत पर चढ़ कर ऊपर आ गए, उसी दिन उनका काम तमाम कर दिया जायगा। कोई यह भी कहता कि अपने छोटे भाई के बचपने और डरपोक स्वभाव से परिचित बाली बहुत निश्चिंत थे। वे पंपापुर के इतने पास रह रहे सुग्रीव की कुशलता के समाचार लेते रहते हैं और यहाँ जानबूझ कर नहीं आते कि कहीं सुग्रीव यहाँ से भाग कर किसी दूर के पर्वत पर किसी असुरक्षित जगह न चला जाये। उधर कुल मिला कर यह जगह सुग्रीव को सुरक्षित जान पड़ी, सो उन्होंने अपने दोनों सचिवों के साथ वहाँ रहना शुरू कर दिया।
बाली के मन में सुग्रीव और उसके राज्यकाल के मंत्रियों के प्रति बहुत नफ़रत बढ़ गई थी। वह कोई न कोई बहाने खोज कर हर उस आदमी को भरे दरबार में अपमानित कर देते, जो सुग्रीव की तारीफ कर देता या जिसके बारे में यह पता लगता था कि वह सुग्रीव के प्रति वफादार है। वे उसे किसी न किसी तरह अपने दरबार से निकाल देते थे और वह आदमी सीधा सुग्रीव के पास आ पहुँचता था। इस तरह तीन लोगों की संख्या से आरंभ हुआ यह काफ़िला लगातार बढ़ने लगा। जिस दिन अयोध्या के निर्वासित राजकुमार राम और लक्ष्मण यहाँ आये, तब तक यहाँ बानर योद्धाओं की अच्छी-खासी छावनी बन चुकी थी।
प्ंापापुर में पहले जामवंत की देख रेख में चलने वाला जासूसी यानी गुप्तचर विभाग अब महारानी तारा की देखरेख में चल रहा था, ठीक उसी तरह जैसे लंका का गुप्तचर विभाग लंका की महारानी मंदोदरी संभालती थीं। अंगद को भली प्रकार से याद है कि महारानी तारा के जासूसों ने ही ख़बर दी थी कि लंका इतना सुरक्षित क़िला है कि वहाँ यदि मच्छर भी भीतर घुसता है, तो लंका के जासूसों को तत्काल ख़बर हो जाती है।
जामबंत ने ऋष्यमूकपर्वत के वनवासियों की मदद से दूर-दूर तक के पहाड़ों पर रहने वाले दूसरे ऐसे आदिवासियों को अपना दोस्त बनाना शुरू कर दिया था, जो सुग्रीव के प्रति हमदर्दी रखते थे। । इन्हीं दोस्तों में से ज्यादातर लोगों की बस्ती में जाकर वे उन्हे इस तरह लड़ना सिखाने लगे कि बिना किसी हथियार के वे लोग पत्थर के टुकड़े या वृक्ष हाथ में रखकर किसी हथियारबंद आदमी से लड़ कर आसानी से उससे जीत सकें। कुछ जवान लड़के छांट कर उन्हे जामवंत जासूसी सिखा रहे थे। जिनमें से कुछ को आजकल पर्वत के चारों ओर इस तरह मौजूद रखा जाता था कि जब भी कोई अंजान आदमी ऋष्यमूकपर्वत के आसपास दिखे, इशारों ही इशारों तुरंत ही जामवंत तक इसकी ख़बर आ जाये।
यह व्यवस्था काम में आई। राम और लक्ष्मण पर्वत की चोटी की-की तरफ़ जाने वाले मुख्य रास्ते से ओर बढ़े, तो सबसे नीचे एक पेड़ पर बैठे आदिवासी युवक ने कोयल की तरह कूकने की आवाज़ उत्पन्न की। यह आवाज़ सुन कुछ दूरी पर ऊपर की ओर बैठे दूसरे ने वही आवाज़ की और इस तरह एक-एक कर जामवंत के इन जासूसों के इशारों से पर्वत के ऊपर बैठे जामवंत को पता लग गया कि कोई दो हृश्ट-पृश्ट जवान लोग हाथों में धनुष बाण लेकर तेजी से ऊपर चले आ रहे हैं। सुग्रीव को पता लगा तो वे घबरा गये। मन ही मन जाने क्या सोचते हुए डरे हुए अंदाज़ में उन्होंनेएक-एक कर अपने आसपास बैठे सारे योद्धाओं पर नजरें डाली, फिर आखिरी में हनुमान से बोले, "हनुमान, इस काम में केवल तुम समर्थ हो, इसलिए तुम्ही जाकर पता लगाओ कि इस तरह निडर हो कर पहाड़ पर चढ़ने वाले वे दोनों अन्जान वीर कौन हैं?"
हनुमान क्षण भर में तैयार थे। सुग्रीव दुबारा बोले "हो सकता है ये अन्जान लोग मेरी तलाश में आये हों। मुझे मारने के लिए इन्हे कोई उपहार देकर शायद बाली ने भेजा होे। अगर तुम्हे ऐसा लगे तो वहीं से इशारा कर देना, मैं इस पर्वत को छोड़ कर किसी सुरक्षित जगह भाग जांऊंगा।"
जामवंत सुग्रीव को धीरज बंधते हुए बोले, "सुग्रीव जी, आप बिना बात डरो मत। हम लोग पूरी तरह से किसी का भी मुकाबिला करने के लिए तैयार है। फिर भी मुझे इन दोनों वीर लोगों से कोई भय नहीं लग रहा है। मैंने सुना है कि इन दिनों गंगा पार के एक बहुत बड़े साम्राज्य के बहादुर और दयावान दो राजकुमार हमारे आसपास के जगल में भटकते फिर रहे हैं। अगर हमारे पर्वत पर आने वाले वे ही दोनों जन हैं तो वे हमारे लिये कोई ख़तरा पैदा नहीं करेगे बल्कि हो सकता है कि ऐसा कोई रास्ता निकल सकेगा कि हम लोग पंपापुर वापस पहुँच सकेंगे।"
जामवंत की बात पर ध्यान न देते हुए सुग्रीव ने इस ढंग से अपनी तैयारी शुरू करदी कि अचानक ही ज़रूरत होने पर वे आसानी से चल सकें। तब तक हनुमान ने अपने बदन पर एक पीला चादर लपेट लिया था और अपना अस्त्र यानी गदा एक तरफ़ रख कर वे भी नीचे की ओर चलने को तैयार थे। उन्होंनेजामवंत की ओर उचित सलाह के लिए नजरें फेंकीं तो जामवंत ने बिना कुछ कहें उन्हे जल्दी से चल पड़ने का संकेत किया।
एक पेड़ से दूसरे पर छलांग लगाते हनुमान बड़ी तेजी से पहाड़ के निचले हिस्से की ओर बढ़ चले और वे घड़ी भर में ही राम-लक्ष्मण के सामने थे। लक्ष्मण ने पहलवान जैसे एक बहुत ही लम्बे और तगड़े आदमी को बदन पर पीली चादर लपेटे अपने सामने खड़ा पाया तो आदत के मुताबिक उनके हाथ अपने आप धनुष बाण पर चले गये। वे धनुष पर बाण चड़ाने लगे कि राम ने उन्हे रूकने का इशारा किया।
हजारों लोगों से मिल चुके अनुभवी हनुमान क्षण भर में ही देख चुके थे कि अपनी रक्षा के लिए हमेशा फुर्ती से तैयार होने में समर्थ इन युवकों की वेशभूशा से इनके बारे में काफ़ी पता लग जाता है। माथे पर बालों का खुबसूरत-सा जूड़ा बाँधे दोनों युवकों ने बदन पर एक-एक पीला-सा दुपट्टा लटका रखा है और बहुत साधारण से पीले कपड़े की धोती को अपने पैरों में इस खुबसूरत ढंग से बाँध रखा है कि ज़रूरत पड़ने पर वे लोग बिना किसी बाधा के तेज गति से किसी का पीछा कर सकें और बिना किन्ही हथियारों केे किसी का भी मुकाबिला कर सकें। बड़ी बारीकी से राम और लक्ष्मण का निरीक्षण करते हनुमान ने देखा कि उनके पांवों में बाँधी हुई धोती इस ढंग की थी जो गंगा के उस पार के बड़े मैदानों में बसे हुये लोगों के राजा-महाराजा बाँधा करते थे। उन दोनों के चेहरे पर छाई उदासी और अपनी तेज नजरों से आसपास के इलाके को घूरते रहने के उनके अंदाज़ को देख हनुमान ने महसूस कर लिया कि वे किसी की तलाश में ही ऋष्यमूकपर्वत पर जा रहे हैं। हनुमान को उन दोनों के चेहरे के भाव देख कर लगरहा था कि किसी की हत्या करने वाले भाड़े के हत्यारे नहीं है, बल्कि दोनों के मुख पर किसी दयावान व्यक्ति की तरह हरेक को सम्मान से देखने के भाव थे।
हनुमान ने विनम्र होकर उन दोनों को नमस्कार किया तो देखा कि बदले में वे दोनों भी मुस्करा कर उन्हे नमस्कार कर रहे हैं।
हनुमान बोले, "हे बहादुर युवको, मैं एक साधारण-सा ब्राह्मण तपस्वी हूँ और इसी पहाड़ी इलाके में रहता हूँ। मैं जानना चाहता हूँ कि दिखने में मैदानों के किसी बड़े राजा के बेटे जैसे लगते आप लोग कौन हैं और इधर सूने पहाड़ों पर कैसे घूमते फिर रहे है? हो सकता है कि मैं आपकी कोई मदद कर सकूं।"
"आप ख्ुाद को तपस्वी ब्राह्मण कहते हैं जबकि आपके हट्टे-कट्टे कसरती बदन से आप एक योद्धा जैसे दिख रहे हैं इसलिए सचाई बताना नहीं चाहिए, फिर भी छिपाने से क्या फायदा। हम लोग गंगा के उस पार के एक बहुत बड़े राज्य अवध के महाराज दसरथ के बेटे राम और लक्ष्मण हैं। अपने पिता के आदेश से हम लोग उधर पंचवटी के जंगलों में वास कर रहे थे कि किसी ने मेरी पत्नी का अपहरण कर लिया है। सुना है कि इन पहाड़ों के बीच बसे नगर पंपापुर में एक अभिमानी और दुश्ट बानर राजा बाली रहता है जिसकी दोस्ती इसी तरह के एक दूसरे दुश्ट राजा लंकाधिपति रावण से है। हम दोनों उन्ही को खोजते इन पहाड़ों और जंगलों में भटक रहे हैं। अगर आप इस मामले में हमारी मदद कर सकते हैं तेा भैया हमारी मदद कीजिये।" बहुत लम्बे हनुमान के चेहरे की ओर ताकते राम ने विनम्र आवाज़ में जवाब दिया।
हनुमान को जामवंत की बात याद आ गई। वे अपना पीला चादर समेट कर उसे दुपट्टे की तरह अपने बदन पर लपेटते हुए बोले, "मेरे कपट को क्षमा करें प्रभू! सच्ची बात यह है कि हम लोग बानर जनजाति के लोग हैं और इस पर्वत पर अपने नेता सुग्रीव के साथ बहुत सतर्क रहकर निवास करते हैं क्योंकि हमको चारों ओर से ख़तरा नज़र आता है। इसलिए मैंने अपना झूठा परिचय दिया था। आपको पूरी कहानी मेरे नेता सुग्रीव सुनायेंगे। चलिए हम उन्ही के पास चलते हैं।"
हनुमान ने दुबारा प्रणाम कर अपने झूठ के लिए क्षमा मांगी और राम की सहमति जानकर उन्हे रास्ता दिखाते हुए पर्वत की चोटी की तरफ़ चल पड़े।
कुछ ही पल में वे लोग पहाड़की चोटी पर थे। हनुमान ने एक बहुत छोटी और सरल पगडण्डी पकड़ कर उन्हे यहाँ तक पहुँचा दिया था।
राम ने देखा कि पहाड़ की चोटी पर पत्थर की बहुत बड़ी खुली गुफा में एक ऊंची से चट्टान पर डरा हुआ-सा एक बानर योद्धा हाथ में गदा लिये खड़ा है, जिसके पास उसी जैसे कई दूसरे लोग खड़े हुए उनकी ओर बड़ी सतर्क-सी निगाहों से ताक रहे हैं।
लक्ष्मण तो चौंक ही गये जब उन्होंनेदेखा कि बहुत ही बूढ़े सज्जन ठीक उनके पीछे की झाड़ी के पीछे से छलांग लगा कर सामने आ खड़े हुये थे और हाथ जोड़कर अपना परिचय दे रहे थे, "मैं हनुमान जी के पीछे-पीछे नीचे तक पहुँच गया थ और आप लोगों कीबातें सुन चुका हूँ। मेरा परिचय यह है कि मैं इन महाराज सुग्रीव का मंत्री जामवंत हूँ। मैंने इस पूरे आर्यवर्त देश को घूम रखा है। मैंने आपकी राजधानी अयोध्या भी देखी है और आपकी पत्नी जानकी का मायका जनकपुर भी ूमैं देख चुका हूँ। आप हम सबको अपना दोस्त समझिये। ये हमारे नेता सुग्रीव जी हैं और हनुमान से आप मिल ही चुके हैं, बाक़ी लोगों से आपका परिचय अभी कराते हैं।"
हनुमान ने आगे बढ़ कर सुग्रीव को राम और लक्ष्मण का परिचय दिया तथा अपने दल के लोगों का परिचय राम-लक्ष्मण से कराया। राम लक्ष्मण उन सबसे गले लग कर दोस्तों की तरह मिले, फिर सब लोग वहाँ रखे हुए पत्थर के टुकड़ों पर बैठ गये।
द्विविद, मयंद और नल-नील ने तुरंत ही सबके लिए ताजे फलों का इंतज़ाम कर अल्पाहार कराया। जामवंत ने पहाड़ पर चढ़ने की मेहनत से थक चुके राम और लक्ष्मण से कुछ देर आराम करने का अनुरोध किया।
राम ने उनका अनुरोध मान लिया वे गुफा के भीतर जाकर बिश्राम करने लगे, जबकि लक्ष्मण हाथ में धनुषबाण लेकर बाहर पहरा देने लगे।
सूरज का गोला अस्त होने की तैयारी कर रहा था कि राम उठ कर बाहर आये। लक्ष्मण के साथ सबने उन्हे प्रणाम किया। सुग्रीव ने अपने सबसे ऊंचे आसन पर उन्हे बैठने का इशारा किया। राम बैठे तो बाक़ी सब भी बैठने लगे।
राम ने हंस कर सुग्रीव से पूछा, "बताओ सुग्रीव, तुम इस सुनसान और असुविधा वाले पहाड़ पर अपने दोस्तों के साथ क्यों निवास कर रहे हो?"
सुग्रीव रूआंसे हो उठे। उनका गला भर आया। उन्होंनेदुःखी भाव से अपने भाई बाली का किस्सा बड़े विस्तार से राम-लक्ष्मण को सुनाया और अंत में निवेदन किया कि उनकी एक ही इच्छा है कि किसी तरह उनका खोया हुआ सम्मान मिल सके तथा वे बाली को उसके ग़लत व्यवहार का दण्ड दे सकें और पूरी इज़्ज़त के साथ वापस पंपापुर लौट जायें।
राम ने उन्हे पूरा भरोसा दिलाया कि उनकी इच्छा पूरी होगी। लक्ष्मण ने तो राम के मन में छुपे हुए भाव को खुल कर बताया "हे सुग्रीव जी, अब आप निश्चिंत रहिए। हम लोग इस पहाड़ी क्षेत्र को बाली नाम के दुश्ट आदमी के आतंक से छुटकारा दिला कर दम लेंगे। जल्दी ही आप अपने घर वापस पहुँच जायेंगे।"
अचानक राम ने पूछा, "हे सुग्रीवजी, आपकी तकलीफ तो हमने सुन ली। आप हमारा दुख भी सुन लीजिये।"
राम ने विस्तार से बताया कि किस तरह पंचवटी नामक जगह पर रहने के दौरान उनकी ऐसे वक़्त जब राम और लक्ष्मण शिकार करने गये थे, सूनी कुटिया से उनकी पत्नी सीता का किसी ने हरण कर लिया है। उन्हे शंका है कि अपनी ताकत के घमण्ड में मतवाले बाली ने तो ऐसा नहीं किया है!
जामबंत ने तुरंत ही कहा "प्रभु यह सही है कि बाली को अपनी ताकत का बड़ा अभिमान है लेकिन आपकी पत्नी जानकी का हरण बाली ने नहीं किया होगा। क्योंकि मैं उनका पुराना साथी हूँ। बाली को किसी को भी गालियाँ देने, बुरा भला कहने और बिना बात भिढ़ जाने की आदत तो है लेकिन किसी की पत्नी का अपमान करने या हरण करने का बुरा काम उन्होंनेआज तक नहीं किया है।"
राम को अब भी आशंका थी, वे बोले "लेकिन सुग्रीव जी कह रहे हैं कि बाली ने इनकी पत्नी और बेटे को इनसे छीन कर अपने महल में रख लिया है।"
जामवंत पूरी गंभीर आवाज़ में बोले, "मेरे जासूसों ने ख़बर दी है कि सुग्रीव जी की पत्नी को वहाँ पूरा सम्मान और सुविधा दी गई है। वे न तो महल के जेलखाने में बंदी हैं न ही उन्हे नौकरानी या दासी बनाया गया है।"
लक्ष्मण ने सुना कि सुग्रीव बुदबुदा उठे हैं, "मुझे तो आपके जासूसों पर विश्वास नहीं है, मेरा मन तो कहता है कि बाली ने रूमा को जबरदस्ती अपनी पत्नी बना लिया है।"
"बाली की दोस्ती रावण जैसे नीच आदमी के साथ है, जो इसी बात के लिए बदनाम है कि जहाँ तहाँ से लड़कियों और औरतों को उठा लाता है और उनको बेच कर अपनी सोने की लंका में सोने का भण्डार बढ़ाता जाता है।" राम ने जामवंत से फिर पूछा।
"हे प्रभो, रावण से बाली की कभी दोस्ती नहीं रही। बाली ने तो रावण का घमण्ड तोड़ा है और उसे अपने महल में छह महीने तक बंदी बना कर रखा था। हाँ, आपका शक रावण की तरफ़ ठीक गया है, वह ऐसा ही दुश्ट और कमीना है और मुझे तो लगता है कि उस दिन अपने रथ में एक रोती हुई औरत को बैठा कर वही भागा जा रहा था..." जामवंत को सहसा कुछ याद आया और वे आगे बोलते इसके पहले ही राम ने उनकी बात काटी "कब कीबात है यह?"
अब सुग्रीव बोले, "हे रधुवंशी रामजी, हम सब एक दिन ऋष्यमूकपर्वत के निचले हिस्से में एक सुरक्षा चौकी देखने गये थे कि हमने पाया कि एक काला कलूटा-सा भैंसे जैसे तगड़ा आदमी अपने रथ में एक बहुत संदर स्त्री को बैठाये भागा जा रहा था। उसने अपने बांये हाथ से रथ में जुते घोड़ों की डोर थाम रखी थी जबकि दांये हाथ से उसने रोती हुई स्त्री के बाल पकड़ रखे थे। वह औरत देख कर ज़ोर से चीखी और हमसे मदद की गुहार करने लगी। लेकिन हम लोग तो पहले से ही बाली से डरे हुए लोग हैं, सो हम जहाँ के तहाँ खड़े रहे और वह दुश्ट हमारे सामने से निकल गया। उन भली महिला ने हमे देख कर अपने कुछ ज़ेवर हमारी ओर फेंके थे कि शायद सोने के जेवरों के बदले हम उन्हे मुक्त कराने का साहस करेंगे। हालांकि उस दुश्ट की यह हरकत देख कर महाबली हनुमान ने आगे बढ़ने की कोशिश की थी तो जामवंत जी ने उन्हे रोक कर कहा था कि जब तक दुश्मन की ताकत का अंदाजा न हो, तब तक उस पर हमला नहीं करना चाहिए।"
राम ने जल्दबाजी में कहा, "वे ज़ेवर कहाँ है?"
"जाओ द्विविद वे ज़ेवर उठा लाओ।" सुग्रीव ने हुकुम दिया।
बानर द्विविद ने गुफा से लाकर महिलाओं द्वारा गले में पहने जाने वाले एक हार और कान का एक कुण्डल लाकर राम के हाथ में दिया तो राम तत्काल पहचान गये कि यह तो सीता के ही ज़ेवर हैं। उन्हेाने लक्ष्मण से कहा, "यह पक्का हो गया कि सीता को रथ में बैठा कर ले जाया गया था, लेकिन वह काला कलूटा आदमी कौन था, इसका पता लगना बाक़ी है।"
जामवंत बोले, "प्रभु आप सुग्रीव जी का कश्ट दूर कर दीजिये। हम सब आपके साथ हेैं। हम कंधे से कंधा भिढ़ा कर उस चोर को तलाश करेंगे और उसे इस भयानक अपराध के बदले में उचित सजा देने के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देंगे। हम लोगों ने इस बीच एक वनवासी सेना बनाई है जिसका उपयोग हम पंपापुर पर हमला करने के लिऐ करने वाले थे, अब यह सेना आपके काम के लिए काम में लाई जायगी।"
राम भी अपनी बात पर अटल पर थे। वे बोले, "मैं कल ही चल कर बाली को उसकी सजा देने का तैयार हूँ।"
जामबंत बोले, "प्रभो, आपका कोई निजी बैर भी बाली से नहीं हैं फिर आप तो पिता की आज्ञा से वनबास में हैं, इन दिनों आप किसी नगर में जाते भी नहीं है। इसके अलावा यदि आप बिना बात ही इन दो भाइयों के बीच लड़ाई में कूदेंगे, तो हमारे साथ के बहुत से बानर और आदिवासी लोग आपसे नाराज हो जायेंगे। इसलिए इस लड़ाई से आप दूर दिखते हुए ऐसा कुछ तरीक़ा खोजिये कि सुग्रीव जी के हाथों बाली को दण्ड दिलाया जाये।"
लक्ष्मण ने देखा कि सुग्रीव ने यह सुना तो वे कंप गये। धीरज त्याग कर वे बोल उठे, "जामवंत जी, मेरे भाई इतने ज़्यादा ताकतवर हैं कि मैं सपने में भी नहीं सोच पाऊंगा कि उन्हे दण्ड दे सकूं।"
"आप चिन्ता न करंे, मेरा छोटा भाई लक्ष्मण पंपापुर जाकर बाली को पकड़ कर इसी पहाड़ पर घसीट लायेगा और आप यही उसको दण्ड देंगे।" राम ने सुग्रीव को निश्ंिचंत किया।
जामबंत फिर अपनी बात पर आ गये, "नही रघुवीर राम जी, आप दोनों ंभाइयों का इस तरह बाली से लड़ने से हमारे अगले संघर्श पर ग़लत असर पड़ेगा। हम पहाड़ी लोगों के झगड़े में आप मैदान के रहने वाले लोगों का बीच में आना कोई स्वीकार नहीं कर पायेगा।"
"तो आप क्या चाहते हैं?" राम ने जामवंत पर आखिरी निर्णय छोड़ा।
"कल मैं विचार करके कोई रास्ता सुझाने की कोशिश करूंगा।" जामवंत ने बेहिचक उत्तर दिया तो यह सभा समाप्त हो गई और सब लोग संध्या के भोजन और सोने की तैयारी करने लगे।