एंग्री इंडियन गॉडेसेस अौर हेट स्टोरी / जयप्रकाश चौकसे

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एंग्री इंडियन गॉडेसेस अौर हेट स्टोरी
प्रकाशन तिथि :12 दिसम्बर 2015


विगत सप्ताह लगी दोनों फिल्मों के नाम ही मोटे तौर पर वर्तमान भारतीय समाज और सरकार के रवैयों के प्रतीक माने जा सकते हैं परंतु उनकी कथाएं राजनीतिक नहीं हैं। एक फिल्म का नाम 'हेट-स्टोरी' है अर्थात नफरत की कहानी जबकि फिल्म "एक उद्योगपति की वासना' की है। दूसरी फिल्म का नाम है 'एंग्री इंडियन गॉडेसेस' अर्थात आक्रोशभरी भारतीय महिलाएं। हमारे सेंसर के हुक्मरान पहलाज निहलानी ने 'गॉडेसेस' को भारतीय मायथोलॉजी की देवियां समझकर एतराज जताया था परंतु उन्हें बताया गया कि यह जैसे भाषण के प्रारंभ में कहा जाता है, 'मौजूद महानुभावों और देवियों', यहां भी उसी संदर्भ में इस्तेमाल किया गया है। यह मायथोलॉजिकल फिल्म नहीं है। फिल्म के निर्देशक ने सार्थक विषय उठाया था और इसके कुछ दृश्य महत्वपूर्ण भी हैं। इसे अंतरराष्ट्रीय समारोह में सराहना मिली है। इस फिल्म में सात सहेलियां गोवा जाती हैं, जहां एक का विवाह है। गोवा की यह यात्रा उनके लिए स्वयं से रूबरू होने का अवसर सिद्ध होती है और उनकी व्यक्तिगत समस्याएं तथा कुंठाओं का समाधान भी करती है। दरअसल, महिलाओं के प्रति समाज के दोहरे मानदंड बहुत गहरे और पुराने हैं तथा हर प्रयास उनके पूर्वग्रह की चट्‌टान से टकराकर लहुलूहान हो जाते हैं। यह विषय बहुत गहरा है परंतु इसका निर्वाह उस गहराई से नहीं हुआ।

गौरतलब है कि जब भी आक्रोश की मुद्रा का पात्र गढ़ा गया है तब उसे पुरुष अभिनीत भूमिका ही बनाया गया है। वह सलीम-जावेद की 'दीवार' हो या गोविंद निहलानी की 'अर्धसत्य' हो या नाना पाटेकर अभिनीत 'आक्रोश' हो। यह पुरुष केंद्रित समाज के फॉर्मूला सोच का नतीजा है। सच तो यह है कि महिलाओं को भी क्रोध आता है, वे सदियों से अन्याय झेल रही हैं परंतु वे अपने आक्रोश का दमन कर अपने कर्तव्य निर्वाह में लग जाती हैं। इतना ही नहीं साहित्य में भी जब लेखिकाएं साहस दिखाती हैं तो व्यवसायी आलोचक अपशब्द का प्रयोग तक करते देखे गए हैं। शास्त्रों से संविधान तक उसे पूजनीय कहा गया है परंतु यह मात्र नौटंकी है। यह पुरुष समाज कभी स्वीकार ही नहीं करता कि प्रकृति ने नारी को उससे अधिक शक्तिशाली बनाया है और समानता स्वीकार करना भी सत्य को छुपाना ही है।

शांताराम ने एक फिल्म बनाई थी, जिसकी नायिका अदालत में अपने पति की हिंसा के खिलाफ अावेदन करती है, तो पुरुष जज कहते हैं कि पति होने के नाते उसे इसका अधिकार है। इस अपमानजनक फैसले के बाद नायिका अपनी तरह त्रस्त महिलाओं का एक दल बनाकर अहंकारी पुरुषों पर आक्रमण करती हैं। इसी तर्ज पर 'गुलाबी गैंग' इत्यादि फिल्में बनी हैं परंतु विनय शुक्ला की 'गॉडमदर' अपनी ही श्रेणी की फिल्म है। इस समस्या पर अनेक लोगों ने लिखा है। हाल ही में 'आकार' में पवन करण की दस कविताएं प्रकाशित हुईं। पवन करण 'स्त्री मेरे भीतर' के लिए प्रसिद्ध हैं। वे लंबे समय से नारी के दोहन पर कविताएं लिखते रहे हैं। उनके प्रारंभिक प्रयास में नारी की यौन स्वतंत्रता पर जोर था, जबकि उनकी आर्थिक स्वतंत्रता पर वे मौन रहे परंतु 'आकार' में प्रकाशित दस कविताएं उनकी काव्य यात्रा का ऊंचा मकाम है, क्योंकि इन कविताओं में उन्होंने इस्लामी विश्वास, बौद्ध धर्म के संदर्भ, इतिहास में अजातशत्रु का संदर्भ इत्यादि का सटीक इस्तेमाल करके नारी उत्पीड़न पर सार्थक कविताएं लिखी हैं और यौन दमन हमेशा ही उनका प्रिय विषय रहा है। इस बार उनके तेवर बहुत-सी उम्मीदें जगाते हैं। उनकी 'शुभारानी' की कुछ पंक्तियां- 'वे बोलीं जरा गौर से देखो, यहां इस जंगल में, जिसे तुम दुनिया कहते हो, मुझ-सी स्त्रियों की अनेक आंखें पड़ी हैं। सदियों पुराने इस जंगल में, पुरुषों के कहने पर हम स्त्रियां इसी तरह अपनी आंखें निकालकर फेंकती आई हैं।' शुभारानी बौद्ध भिक्षुणी थीं, जिसने संसार के प्रलोभन से बचने के लिए अपनी आंखें निकाल दी थी।

'हेट स्टोरी' हॉलीवुड की प्रसिद्ध 'इंडीसेंट प्रपोजल' से प्रेरित विचार का लचर संस्करण है कि एक उद्योगपति दूसरे की पत्नी के साथ एक रात गुजारना चाहता है और इनकार होने पर उसे तबाह करता है और पत्नी अपने पति को बचाने के लिए उसके घर जाती है। इंडिसेंट प्रपोजल आर्थिक मंदी के शिकार व्यक्ति की लाचाी की रोचक कथा थी।