एकता कपूर सलीम-जावेद की बायोपिक बना रही हैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 सितम्बर 2014
एकता कपूर ने विगत सप्ताह सलीम आैर जावेद से मुलाकात की आैर उन पर बायोपिक बनाने की इजाजत मांगी। सलीम साहब ने कहा कि पटकथा पढ़ने के बाद वे निर्णय करेंगे आैर अगर पटकथा विश्वसनीय है तो इस शर्त पर इजाजत देंगे कि शूटिंग के समय किए गए परिवर्तन पर भी उनसे रजामंदी ली जाए तथा प्रदर्शन पूर्व भी उन्हें फिल्म देखने आैर आवश्यकता होने पर संपादन का अधिकार रहे। सलीम-जावेद बायोपिक में अमिताभ बच्चन के उदय की कहानी भी शामिल ही रहेगी।
दरअसल सलीम आैर जावेद अख्तर अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए हैं, मसलन सलीम अमीर घराने से आए आैर जावेद अख्तर के पिता संघर्षरत शायर मिजाज की बहन हैं, के बीच भी तनाव आैर टूटियां रही हैं। एक सशक्त संयुक्त समृद्ध परिवार से तो दूसरा साहित्यकारों के उस परिवार से जिसमें तनाव आैर थकन थी। सच्चाई यह है कि सलीम आैर जावेद पर अलग-अलग दो बायोपिक बन सकते हैं परंतु संभवत: एकता कपूर अपनी फिल्म इनके संघर्ष आैर मिलने से प्रारंभ करेंगी आैर सफलतम लेखक जोड़ी टूटने से खत्म करेंगी आैर यह क्या इत्तफाक है कि अलग होना 'शक्ति' के प्रदर्शन के बाद हुआ है। उनके अलगाव के कारण अब तक अप्रकाशित हैं परंतु अच्छे क्लाइमैक्स के लिए बारूद जुटा सकता है।
सन् 1988 में रॉबर्ट ली हॉल के काल्पनिक उपन्यास "मर्डर एट सैन सिर्मोन' में एक अखबार प्रकाशन साम्राज्य के धूर्त मालिक की कहानी है आैर उसके द्वारा दी गई एक भव्य दावत में सारा घटनाक्रम होता है। इस दावत में चार्ली चैपलिन ग्रेटा गारवो, क्लार्क गैबल जैसे अतिथि मौजूद हैं आैर घटनाक्रम आर्थिक मंदी के दौर यानी 1934 का है जब विश्वयुद्ध की घटाएं दूर क्षितिज पर छाने लगी थीं। इस उपन्यास पर अगर फिल्म बनती तो चार्ली चैपलिन इत्यादि से भी अनुमति लेना पड़ती। अत: सलीम-जावेद की फिल्म में जिन कलाकारों आैर कलाकारों की अहम भूमिकाएं हैं, उनकी अनुमति आवश्यक हो जाती है। इसमें धर्मेंद्र-हेमा अमिताभ-जया की प्रेम कहानी आैर शादियां भी शुमार करनी होगी।
इसके स्केल को छोटा करने पर यह कहानी सलीम-जावेद के दोस्ताना आैर अलग होने की कहानी रह जाती है। क्या इसमें जावेद अख्तर आैर शबाना आजमी प्रेम प्रसंग भी शामिल होगा? जावेद अख्तर के अपने पिता शायर जां निसार अख्तर से तनाव आैर जावेद अख्तर तथा साहिर लुधियानवी के संबंधों का उल्लेख भी आवश्यक हो जाता है। दरअसल दो अलग-अलग व्यक्तियों का एक बायोपिक कैसे हो सकता है? दो लोग मिलकर संगीत दे सकते हैंं, पटकथा लिख सकते है परंतु दो लोग मिलकर कविता नहीं लिख सकते। दरअसल पूरा सृजन कार्य ही एकल प्रतिभा है आैर क्रिकेट, हॉकी की तरह टीम वर्क का परिणाम नहीं है। फिल्म निर्माण को टीम वर्क कहने वाले इस तथ्य को नजर अंदाज करते हैं कि सार्थक फिल्म केवल डायरेक्टर का अकल्पन होता है आैर उसी को सम्पन्न करने के लिए उसी विचार के लोग जुड़ते हैं। इसका ठोस सबूत हम देखते हैं कि राधू करमरकर ने राजकपूर की फिल्मों के छायांकन में अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता प्रस्तुति की परंतु जब उसी राधू करमरकर ने अन्य निर्माताओं की फिल्मों का छायांकन किया तो वह आैसत दर्जे का काम निकला।
बहरहाल सलीम मुंबई अभिनेता बनने आए थे आैर आठ वर्ष के संघर्ष के बाद समझ गए कि यह काम उनके बस का नहीं है आैर लेखन विद्या से जुड़ गए। जावेद निर्देशक बनने आए थे आैर सहायक निर्देशन का काम करते हुए सलीम साहब से मिले जिनकी अकेले ही लिखी कहानी पर बन रही फिल्म में जावेद सहायक निर्देशक थे। मजे की बात यह है कि सलीम साहब के सुपुत्र सलमान खान सितारे हैं आैर जावेद अख्तर के सुपुत्र फरहान सुपुत्री जोया सफल निर्देशक बन गए हैं गोयाकि चुनांचे वह कितना प्यारा इरादा था कि दूसरी पीढ़ी ने उसे सफलता के सोपान पर पहुंचाया। अब मनमोहन देसाई नुमा फिल्म में पिताओं का द्वंद पुत्रों तक जाकर कुछ ऐसा क्लाइमैक्स बने कि सलीम-जावेद की नई पटकथा में सलमान आैर फरहान काम करें?