एक अघटित और अस्तित्वहीन प्रेमकथा / जयप्रकाश चौकसे
इस्मत चुगताई के पति फिल्मकार शाहिद लतीफ मंटो और उनकी पत्नी ये चारों बहुत गहरे मित्र थे और प्राय: एक-दूसरे के साथ लंबा वक्त गुजारते थे। मंटो की पत्नी दिलोजान से इस्मत चुगताई पर फिदा थीं और उन्हें अपना गाइड और गुरु मानती थीं। उन दिनों जब भी सआदत हुसैन मंटो हैदराबाद या अलीगढ़ जाते थे, तो युवा वर्ग उनसे उनकी प्रेमिका इस्मत के बारे में जरूर पूछते थे।इस्मत चुगताई और सआदत हुसैन मंटो को उर्दू साहित्य एक सबसे अधिक विवादास्पद और महान लेखक की सूची में राजिन्दर सिंह बेदी और कृश्नचंदर का नाम भी इस सूची में शुमार किया जाता है। यह सचमुख अजीबोगरीब बात है कि उस दौर में अनेक लोग यह मानते थे कि इस्मत चुगताई और मंटो एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, परंतु हकीकत यह है कि इस्मत चुगताई के पति फिल्मकार शाहिद लतीफ मंटो और उनकी पत्नी ये चारों बहुत गहरे मित्र थे और प्राय: एक-दूसरे के साथ लंबा वक्त गुजारते थे। हाल ही में राजकमल प्रकाशन दिल्ली में इस्मत चुगताई की कहानियों का संकलन प्रकाशित किया है, जिसमें सआदत हुसैन मंटो का इस्मत पर लिखा एक लंबा लेख भी शामिल है। मंटो की पत्नी दिलोजान से इस्मत चुगताई पर फिदा थीं और उन्हें अपना गाइड और गुरु मानती थीं। उन दिनों जब भी सआदत हुसैन मंटो हैदराबाद या अलीगढ़ जाते थे, तो युवा वर्ग उनसे उनकी प्रेमिका इस्मत के बारे में जरूर पूछते थे।
समाज और अदब के दायरे इस तरह की धारणा इसलिए पैदा हुई कि इस्मत चुगताई और मंटो दोनों ही समाज के नासर पर अत्यंत बेबाक कहानियां लिखते थे। सन् 1942 में लाहौर की अदालत में दोनों के ही साहित्य पर अश्लीलता के आरोप लगे और मुकदमे की सुनवाई के लिए दोनों ही साथ जाते थे। इस्मत चुगताई की ‘लिहाफ’ नामक कहानी में अमीर खानदान की एक बहू और उसकी नौकरानी के बीच समलैंगिकता के स्पष्ट संकेत थे, परंतु कथा का मूल उद्देश्य तो औरत की तन्हाई थी और बीवियों को अनदेखा करने की सामंतवादी प्रवृति थी। कुछ लोगों का विश्वास है कि फिल्मकार दीपा मेहता ने ‘लिहाफ’ से प्रेरित होकर ही ‘फायर’ नामक फिल्म बनाई, जिसमें शबाना आजमी और नंदिता ने अद्भुत अभिनय किया था। इस्मत चुगताई की तरह मंटो की बेबाक यथार्थवादी कहानियों की आलोचना करने वाला एक बड़ा वर्ग था और उनकी नफरत मंटो को मार भी सकती थी। उसकी ‘टोबा टेकसिंह’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘खोल दो’, ‘टाट के परदे’ इत्यादि कहानियां समाज के जख्मों पर रोशनी डालती हैं और जहालत के खिलाफ मजबूत बयान की तरह लगती है।
देश के विभाजन पर आप कितनी ही किताबें बांच लें, परंतु मानवीय करूणा से ओतप्रोत मंटो की कहानियां ही उस मानवीय दर्द का सच्चा चित्रण करती हैं। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए धार्मिक उन्माद द्वारा मनुष्य को यातना देने के सारे प्रयासों को उनकी पूरी सडांध के साथ मंटो प्रस्तुत करते रहे हैं। इस्मत चुगताई और मंटो के अफसानों की बेबाकी और साहस के कारण ही उन्हें एक-दूसरे का प्रेमी मानने का वृहत भरम पैदा हुआ है। इस्मत चुगताई का जन्म 15 अगस्त 1915 को हुआ और मुत्यु 24 अक्टूबर 1991 को हुई। साहित्य रचते हुए वे अपने पति के आग्रह पर फिल्में लिखने लगीं और उनकी ‘आरजू’, ‘जिद्दी’, ‘सोने की चिड़िया’ इत्यादि लोकप्रिय हुई, परंतु उन्हें अमर करती है उनकी लिखी ‘गर्म हवा’ जिसे सथ्यु ने बनाया और बलराज साहनी ने अभिनीत किया, 1973 में प्रदर्शित यह फिल्म हिंदुस्तानी सिनेमा में मील का पत्थर है। आजादी के बाद इस्मत चुगताई ने श्याम बेनेगल के लिए पटकथाएं लिखी, उनके संवाद भी लिखे और श्याम बेनेग की जिद के कारण उन्होंने ‘जुनून’ में जेनिफर केंडल कपूर द्वारा अभिनीत पात्र की मां की भूमिका अभिनीत की। इस्मत और मंटो दोनों ही जीवन के युद्ध में निहत्थे जूझ रहे आज लोगों के दर्द के बारे में लिखते रहे हैं।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमने आजादी के लिए लंबी जंग लड़ी और उस प्रेरणादायक कालखंड में मुंशी प्रेमचंद जोश मलीहाबादी, कृश्नचंदर, रजिन्द्र सिंह बेदी, साहिर, अब्बास और शैलेन्द्र इत्यादि प्रतिभाशाली लोग सिनेमा और रंगमंच से जुड़े तथा सांस्कृतिक नव जागरण के उस महान कालखंड में लेखक, कवि और बौद्धिक वर्ग के लोग आम आदमी से जुड़े तथा मैदानी जंग में हिस्सा लिया, परंतु आजादी के बाद और विशेषकर नेहरू ही मृत्यु के बाद साहित्यकार और बौद्धिक वर्ग के लोग आम जिंदगी से कट गए और उनकी निष्क्रियता के कारण भारतीय समाज सिनेमा और जीवन से धर्म निरपेक्षता स्वतंत्रता और समानता के मूल्य मिट रहे हैं।