एक अदभुत वृतचित्र / जयप्रकाश चौकसे

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एक अदभुत वृतचित्र

प्रकाशन तिथि : 31 अगस्त 2009


आजकल भारत द्वारा पोकरण में किए गए आणविक विस्‍फोट को लेकर विवाद चल रहा है। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम के प्रभाव को रिकॉर्ड करने के लिए कुछ जापानी कैमरामैन गए थे और उन्‍होनें दो घंटे चालीस मिनट का वृतचित्र बनाया था, परंतु उनके द्वारा शूट किया गया सारा फुटेज अमेरिकी रक्षा विभाग ने जब्‍त कर लिया था और ‘क्‍लासीफाइड सीक्रेट’ का ठप्‍पा लगाकर उसे सुरक्षित जगह रख दिया गया था। दरअसल, इसे दफना देना मान लेना चाहिए।

लगभग 23 बरस बाद 1968 में कोलंबिया विश्‍वविद्यालय के रक्षा विभाग से विनती करके इस फुटेज को प्राप्‍त किया। सीक्रेट फुटेज का बहुत सा हिस्‍सा नष्‍ट हो चुका था, परंतु विश्‍वविद्यालय ने किसी तरह उसे पुन: संपादित किया और पुन: ध्‍वनि मुद्रण में हिरोशिमा की एक नन्‍हीं लडकी का इस्‍तेमाल किया जो आणविक विस्‍फोट के भ्‍यावह परिणाम की त्रासदी का वर्णन करती है। विश्‍वविद्यालय द्वारा जीर्णोद्धार की गई फिल्‍म इस बात पर जोर नहीं देती कि बम फेंकने से बचा जा सकता था क्‍योंकि इस पर लंबी बहस पहले ही हो चुकी थी। गो‍याकि विगत कालखंड की घटना होते हुए भी भविष्‍य में ऐसा न हो पर बल देती है।

बीते हुए कल के तथ्‍यों को एकत्रित करके भविष्‍य के नाम लिखे गए खत की तरह बनाई गई इस लघु फिल्‍म को 1981-82 में आणविक बम विरोधी आंदोलन के समय अनेक जगहों पर अनेक बार दिखा गया। फिल्‍म का नाम था ‘हिरोशिमा नागासाकी अगस्‍त 1945’ और वर्ष 1970 में प्रदर्शित इस फिल्‍म को एक महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज माना जाता है।

इस पूरे प्रकरण में तीन बातें उभरकर सामने आती हैं। एक यह कि विश्‍वविद्यालय महज परीक्षा आयोजित करने का स्‍थान नहीं है, वरन उसे सामाजिक महत्‍व के मुददों की खोज करके उनका जीर्णोद्धार करना चाहिए। विश्‍वविद्यालय की भूमिका को विराट करने का यह साहसी प्रयास था। दूसरा यह कि विगत की किसी मानवीय त्रासदी पर कोरी भाषणबाजी नहीं करके उसे भविष्‍य के पथ-प्रदर्शक की तरह इस्‍तेमाल किया जा सकता है। तीसरा यह कि सरकारें गोपनीय दस्‍तावेज को छुपाने का प्रयास करती हैं और तथाकथित शांति के नाम पर सच को परदे के पीछे छुपाने की गंभीर कोशिश की जाती है गोयाकि साफगोई पर हजार बंधन लगाए जाते हैं।

क्‍या सरकारें मनुष्‍य को मूर्ख मानती हैं कि उनसे निरंतर झूठ बोलते हुए सत्‍य के चेहरे पर घूंघट डालने का उपक्रम किया जाता है। सच जानना मानवीय अधिकार है और इसे रोका नहीं जा सकता। यह आम आदमी का अपमान है जिसे सब कुछ जानने का अधिकार है। इतिहास की घटनाओ को बुहार करके अपनी भद्रता के कालीन के नीचे छुपा दिया जाता है। उन जापानी कैमरामैन को नमन जिन्‍होनें जोखिम लेकर काम किया।

आणविक बम अपने भयावह परिणाम के कारण छुपाए जाते हैं। आज आणविक बम बनाने की प्रक्रिया आम हो गई है आर इस पर नियंत्रण आवश्‍यक है। कल्‍पना कीजिए की यह खतरनाम हथियार ओसामा बिन लादेन के हाथ लग जाए या दाउद का भी इस पर अधिकार हो जाए। याद आती है साहिर लुधियानवी की अमर पंक्तियां -

गुजश्‍ता जंग में तो बस घर ही जले,

अजब न हो अब जलें तन्‍हाईयां भी,

गुजश्‍ता जंग में तो पैकर (जिस्‍म) ही जले,

अजब न हो अब जलें परछाईंया भी