एक अधूरी कहानी, मनुष्य के दर्द की जबानी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :12 जून 2015
अर्थ और सारांश बनाने वाले महेश भट्ट ने पुन: सिद्ध कर दिया कि वह अभी तक सोच रहा है और सृजन कर रहा है। महेश भट्ट जैसे जीनियस कभी खत्म नहीं होते। उसकी ताजा फिल्म 'हमारी अधूरी कहानी' प्रेम के अपने भव्य अर्थ में संपूर्ण कहानी है। इसके साथ ही यह पुरुष के अधूरेपन की कहानी भी है। फिल्म के संवाद शगुफ्ता ने लिखे हैं और उनके प्रति मेरा पूरा सम्मान है, परन्तु संवादों में उस महेश भट्ट की खुशबू मौजूद है, जो कभी हिप्पी सा जीवन जीता था, कभी आचार्य रजनीश की संगत करता और अध्ययन का अंतिम सोपान उसे यू.जी. कृष्णमूर्ति में मिला। एक बानगी देखिए, जब तक आप स्वयं से प्रेम करते हैं, तब तक किसी को सच्चा प्रेम नहीं करते। आज सेल्फी का दौर है, स्वयं की कब्र में दफन आधे-अधूरे लोगों का दौर है, इस अंधे युग में स्वयं से मुक्त होना कठिन है, तो आप सच्चा प्रेम कैसे करेंगे। दरअसल, इस फिल्म में इतने सार्थक संवाद हैं कि उनका वर्णन एक शोध का विषय है।
'हमारी अधूरी कहानी' फिल्म में एक अन्य संवाद है। उसे पूरी पीड़ा और वेदना से विद्या बालन ने कहा है 'सदियों से औरत खामोश थी, वह आज बोल रही है, तो तुम जबान काटना चाहते हो, वह तब भी बोलती रहेगी।' इस फिल्म का एक पात्र शादी के तुरन्त बाद अपनी पत्नी की बांह पर अपना नाम गुदवा देता है, जैसे मवेशियों के जिस्म पर मालिक का ठप्पा लगा होता है। यह मुझे पाकिस्तान की सारा शगुफ्ता की नज़्म याद दिलाता है- "औरत का बदन ही उसका वतन नहीं होता, वह कुछ और भी है, मरदानगी का परचम लिए घूमने वालों, औरत जमीन नहीं होती, वह कुछ और भी है।" सारा का 'वह कुछ और' महेश भट्ट ने वसुधा के चरित्र चित्रण में प्रस्तुत किया है और विद्या बालन ने कमाल का अभिनय किया है। औरत को अपनी सम्पत्ति समझने वाला पात्र, जो अपनी मूर्खता को संस्कार और पवित्रता जैसे महान शब्दों के मुखौटों में छुपाता, राजकुमार ने अभिनीत किया है। परन्तु 'हमारी अधूरी कहानी' फिल्म इमरान हाशमी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। उनका अभिनय बांधे रखने वाला है। वह विद्या बालन की प्रतिभा और राजकुमार राव के सामने बराबरी की जमीन पर खड़ा है, परन्तु अंतिम शॉट में धरती के नीचे छुपी सुरंग के बटन पर पैर रखकर वह जो मुस्कराहट के साथ फिजाओं में बिखर जाता है, इसमें वही जमीन से उठकर नई ऊंचाई पर पहुंचता है। निर्देशक मोहित सूरी अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं, वे इस भावना प्रधान कहानी के सिनेमाई बिम्ब इस खूबसूरती से रचते हैं कि कथा की गहराई बिम्बों में उतर आती है।
मोहित सूरी सिनेमा की जबान पर पूरा कंट्रोल रखते हैं। इस तरह वे महेश भट्ट की वसुधा को अर्थात धरती को अपनी पूरी उपजाऊ शक्ति व दिव्य सुगंध के साथ प्रस्तुत करते हैं। सारांश और अर्थ बनाने वाला ही इस तरह की फिल्म रच सकता है। इस फिल्म का गीत-संगीत अत्यंत मधुर है और वर्षों बाद इतने सार्थक गीत और माधुर्य का संगम देखा है। पार्श्व संगीत हृदय की धड़कन का अनुवाद लगता है।
फोटोग्राफी शरीर के परे पात्रों की आत्मा तक को प्रस्तुत करती है। जाने कैमरामैन ने किस लेन्स का प्रयोग किया है। सिनेमा के जन्म के कुछ समय बाद ही फ्रांस के दार्शनिक बर्गसन ने कहा था कि सिनेमा का कैमरा मनुष्य के दिमाग की अनुकृति है। जब मशीनी कैमरा और मनुष्य का दिमागी कैमरा आपस में सामंजस्य स्थापित करते हैं, तब अधूरी कहानी जैसी फिल्म बनती है।
महेश भट्ट बूढ़ा, उम्रदराज मछली पकड़ने वाला है, तूफान की संभावना में भी समुद्र में नाव उतारता है। बड़ी मछली को यह जानकर भी किनारे लाने का प्रयास करता है कि आधे से अधिक मांस छोटी मछलियां खा जाएंगी, परन्तु महेश हेमिंग्वे के पात्र की तरह अपने कर्म पर टिका है। संदर्भ 'ओल्डमैन एंड सी।'