एक अनोखा गुरिल्ला युद्ध / जयप्रकाश चौकसे

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एक अनोखा गुरिल्ला युद्ध
प्रकाशन तिथि :11 जनवरी 2017


हर क्षेत्रमें प्रतियोगिता की भावना मनुष्य को बेहतर प्रदर्शन की प्रेरणा देती है परंतु इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि प्रतियोगिता में अव्वल आने के लिए लोग अपराध करने लगते हैं। येन केन प्रकारेण प्रतिद्वंद्वी को परास्त करना चाहते हैं। फिल्म उद्योग में किसी फिल्म के एक ही सिनेमाघर में लगातार 25 सप्ताह चलने पर रजत जयंती समारोह मनाया जाता था और 50 सप्ताह चलने पर स्वर्ण जयंती तथा 75 सप्ताह पर हीरक जयंती मनाने की प्रथा थी परंतु अनेक सिनेमाघरों में एक साथ फिल्में लगाने पर रजत स्वर्ण जयंती असंभव-सी हो गई। आजकल मीडिया में बॉक्स ऑफिस आय के आंकड़ों को अपनी हेकड़ी का माध्यम बना लिया है फिल्मकारों ने परंतु अवाम को यह नहीं बताया जा रहा है कि इन आंकड़ों में से सिनेमाघरों का भाड़ा, प्रचार वितरकों का कमीशन घटाने पर शुद्ध आय आधी रह जाती है तथा विदेश क्षेत्र में शुद्ध आय 42 प्रतिशत ही होती है, क्योंकि सिनेमा भाड़ा और प्रचार वहां बहुत महंगा होता है।

फिल्म उद्योग में जोड़-तोड़ करके फिल्म को सिनेमाघर में चलाते रहने को फीडिंग कहा जाता है। मसलन एक सफल फिल्म अपने बलबूते पर 20 सप्ताह ही चल पा रही है तो निर्माता स्वयं टिकट खरीदकर अवाम में बंटवा देता है ताकि 25 सप्ताह तक रेंग सके। यह फीडिंग हर क्षेत्र में होती है। राजनीति में अपने किराये के लोगों द्वारा लोकप्रियता का भ्रम रचना भी फीडिंग है। आज पूरे देश में आयकर अधिकारी समृद्ध लोगों पर दबाव बना रहे हैं कि वे अधिक आयकर जमा करें और बाद में इसका प्रतिवाद करके अतिरिक्त आयकर वापस प्राप्त कर सकते हैं गोयाकि आज सरकार को यह साबित करना है कि उसकी करेंसी परिवर्तन कालाधन बाहर निकालने का प्रयास सफल रहा है। पहले कुछ माह के नोटिस की असफलता के बाद करेंसी परिवर्तन किया और अब इस असफलता को भी छिपाने के लिए हर शहर में आयकर विभाग को दबाव बनाने का निर्देश दिया गया है और आयकर अधिकारी अनिच्छा यह कसरत भी कर रहे हैं।

दरअसल, आयकर से प्राप्त राशि अत्यंत अल्प होती है और आयकर विभाग के संचालन के खर्च में ही वह शून्य हो जाती है। पूरे देश में आयकर भवनों को किराये पर उठाने या व्यापार केंद्र अथवा पाठशालाएं बनाने से देश को अधिक लाभ होगा। सरकार के पास अपनी आय के अन्य साधन हैं और वह आयकर समाप्त कर सकती है परंतु आयकर के कोड़े को वे खोना नहीं चाहते, क्योंकि इसी हंटर से अवाम और अपने विरोधियों को प्रताड़ित किया जाता है। यह अतिरिक्त अनावश्यक दिखावे के कार्य से आयकर अर्जित करना भी देश की अर्थव्यवस्था की 'फीडिंग' कही जा सकती है अौर सच्चे अर्थ का विकास हो ही नहीं रहा है। मध्यप्रदेश में कुपोषण से हो रही शिशु मृत्यु के आंकड़े दु:ख देते हैं अौर इसी प्रदेश में शिक्षा का भी व्यापमं नामक घोटाला हुआ है। हर तरह से पिछड़े हुए प्रदेश में जाने किस विकास के काल्पनिक आंकड़ों का प्रचार किया जा रहा है। अखबारों के प्रकाशक खुश हैं कि उन्हें विज्ञापन राशि मिल रही है। दरअसल, प्रिंट मीडिया के व्यवसाय में अखबार निकालने की कीमत बहुत अधिक है अौर विज्ञापन राशि के दम पर ही बमुश्किल लागत निकल पाती है। अमेरिका जैसे देश में दशकों से स्थापित सफल अखबारों का प्रकाशन भी सप्ताहांत तक सीमित है और अन्य दिनों अखबार का 'ई' संस्करण निकलता है।

रिश्तों में फीडिंग की एक घटना इस तरह है राज कपूर और कृष्णा कपूर के विवाह की 37वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी। किसी ने कहा कि 13 वर्ष पश्चात विवाह की स्वर्ण जयंती मनाई जाएगी तब कृष्णा कपूर ने कहा कि इन 37 वर्षों में कुछ वर्ष नरगिस और वैजयंतीमाला की 'फीडिंग' भी शामिल है अत: यह असली स्वर्ण जयंती नहीं होगी। पूरे कपूर परिवार में कृष्णा राज कपूर के पास हंसने-हंसाने का जबर्दस्त माद्‌दा है और वे ही परिवार की असली 'जोकर' हैं, जो दार्शनिक ही होता है। इस व्यंग्य से तिलमिलाए हुए राज कपूर ने कहा कि एक पति जो अपनी पत्नी की हत्या करना चाहता था, उसे मित्रों ने हत्या करने से यह कहकर रोका की हर पत्नी की हत्या पर पुलिस को सबसे अधिक संदेह पति पर ही होता है, अत: पकड़े जाओगे। इस जोड़े की 25वीं विवाह वर्षगांठ की दावत में उस पति ने अपने मित्रों से कहा कि उनकी सलाह मानकर उसने पत्नी की हत्या नहीं की और अगर कर ेता तो आज वह अपनी सजा काटकर स्वतंत्र प्रसन्न तो होता। इंदौर के कैंसर विशेषज्ञ मधुसुदन द्विवेदी स्वयं को कल्पित पत्नी पीड़ित समाज का अध्यक्ष कहते थे।

दरअसल, पत्नियों पर ये तमाम लतीफे कुछ सत्य प्रकट करते हैं परंतु यह पत्नियों के प्रति अन्याय भी है। सचतो यह है कि दाम्पत्य जीवन गुरिल्ला युद्ध की तरह है, जिसमें असावधान 'शत्रु' पर आक्रमण करके पति अपनी कमजोरियों के पहाड़ के पीछे छिप जाता है तथा एक और 'छापामारी' के लिए स्वयं को तैयार करता है और इसी तरह पत्नियां भी गुरिल्ला युद्ध में जन्मजात ही निपुण होती हैं। इस तरह के गृहयुद्ध मंे सुख और दु:ख गलबहियां करते नज़र आते हैं।