एक अपवित्र रात / उलरिख वॉन जेटजीखोवन
उलरिख वॉन जेटजीखोवन के वृत्तान्तों से ली गयी यह कहानी 13वीं सदी की है। बोधकथाओं या प्रकृत कथाओं से अलग यह प्रतीक-कथा अपने समय में एक नया आयाम उद्घाटित करती है।
जब लांसलॉट लड़का ही था, जब उसके दाढ़ी नहीं आयी थी, तभी की यह कहानी है, जिसके कारण वह अपने समय के वीरों और सभ्य जनों के बीच ईर्ष्या और कुचर्चा का विषय बन गया था।
एक बार वह दो वीर योद्धाओं के साथ गलागांद्रेज नामक जंगल के राजा के महल में गया। जंगल का वह राजा दो बातों के लिए प्रख्यात था - एक तो यह कि उसकी एक बहुत खूबसूरत लड़की थी, और दूसरी यह कि वह बहुत भयंकर आदमी था। उसके महल का नियम यह था कि कोई भी उसकी सुन्दरी लड़की की ओर यदि जरा भी बुरी निगाह से देखता पाया जाता, तो उसका सर धड़ से अलग कर दिया जाता था। बहुत-से वीर योद्धा यह गलती करके अपनी जान से हाथ धो चुके थे। वह शहजादी कुमारी थी, और उसके पिता की यह प्रतिज्ञा थी कि मृत्यु पर्यन्त वह कुमारी ही रहेगी।
लांसलॉट और उसके साथियों को राजा के भयंकर स्वभाव और हश्र के बारे में पहले ही कुछ मित्रों ने आगाह कर दिया था। उन्होंने तय भी यही किया था कि वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जो उस राजा को नागवार गुजरे।
गलागांद्रेज ने उन तीनों की बड़ी खातिर की। रात को जब वे तीनों सोने के लिए जाने लगे, तो गलागांद्रेज ने दहाड़ते हुए कहा, “सज्जनो! मैं चाहूँगा कि आप लोग पूरी पवित्रता से रात गुजारें... आपको उकसानेवाले कारण चाहे जितने संगीन हों, पर आप अपनी रात की पवित्रता की रक्षा करें।”
वे तीनों अभी आराम से लेटे ही थे कि दरवाजा खुला और शहजादी भीतर आयी। वह शमा पकड़े हुए थी। सबसे पहले वह ओर्फिलेट के बिस्तर के पास गयी, जो उन तीनों में सबसे सुन्दर जवान था और बोली, “मैंने प्यार की खूबसूरती के बारे में बहुत कुछ सुना है... यह भी सुना है कि प्यार सोने नहीं देता...”
ओर्फिलेट ने घबराकर कहा, “अगर तुम्हारे पिता को जरा भी शक हो गया, तो मेरी खैर नहीं है। वह चाहते हैं कि तुम कुँवारी रहो और मुझसे भी उन्होंने इस रात पवित्र रहने को कहा है...” इतना कहकर उसने करवट बदल ली और आँखें मूँदकर पड़ रहा।
क्रोधित शहजादी शमा लेकर दूसरे वीर कुरौस के बिस्तर के पास पहुँची। उसका तन और मन धधक रहा था। वह उससे बोली, “वीर कौन है, यह मैं बताऊँगी। जो औरत के लिए कायर नहीं है, वही वीर है। जो प्यार में दृढ़ और स्थिर होता है, वही वीर है। मैंने आपके बारे में बहुत-सी बातें सुनी हैं कि आप वीर भी हैं और प्रेमी भी...”
सोच-विचारकर कुरौस बोला, “आपके पिता ने यह ताकीद की है कि महल में रहते मैं ऐसा कोई काम न करूँ, जिससे उनके राजनियम भंग हों। मैंने यह भी सुना है कि नियम भंग करनेवाले को वह कभी माफ नहीं करते... इसलिए मैं आपसे भी यही कहूँगा कि आप शान्ति से अपने कमरे में जाकर सो रहें और रात को पवित्रता से गुजारें।”
यह सुनते ही शहजादी भीतर-ही-भीतर खौलने लगी, निराश और अपमानित महसूस करने लगी। उसने झटके से शमा को उठाया और चल दी। अभी वह दरवाजे तक पहुँची ही थी कि एक कोमल आवाज आयी, “शहजादी!”
शहजादी ने आश्चर्य से मुड़कर देखा। लांसलॉट अपनी दोनों बाँहें फैलाये उसे आलिंगन में आबद्ध करने के लिए खड़ा था।
शहजादी ने क्रोधित और अपमानित गर्व से कहा, “लड़के, तुम क्या चाहते हो?”
लांसलॉट ने कदम बढ़ाते हुए कहा, “यह सही है कि मैं अभी कच्चा युवक हूँ... पर मैं तुम्हारे पिता के आदेशों और नियमों की फिक्र नहीं करता। न उनसे डरता हूँ... तुमसे खूबसूरत शहजादी भी मैंने नहीं देखी... आओ...”
“युवक! तुम्हारे ओठ दारुसिता की पत्तियों की तरह अछूते हैं और तुम्हारी जुबान में जहर की मदहोशी है!” शहजादी ने बाँहें फैलाते हुए कहा।
“इतना ही नहीं... और भी बहुत कुछ मेरी इस कच्ची उम्र में है!” लांसलॉट ने कहा और शहजादी को उसने बाँहों में भर लिया।
लांसलॉट के दोनों साथियों ने उन दोनों को बहुत समझाया, बहुत मना किया, उन्हें पागल भी कहा, पर उन्होंने कोई चिन्ता नहीं की।
और तब साँसों का उत्तर साँसों ने दिया। स्पर्शों का उत्तर स्पर्शों ने दिया। कामनाओं का उत्तर कामनाओं ने दिया। दृष्टि का उत्तर दृष्टि ने दिया। तन का उत्तर तन ने दिया। मन का उत्तर मन ने दिया।
और पुराने कवियों ने मात्र इतना कहा कि लांसलॉट और शहजादी ने उस रात गहन प्रेम किया, इतना बेइन्तिहा प्यार किया, जितना कि कोई प्रेमी युगल कर सकता है, बस।
लोगों ने इस पागलनप के लिए लांसलॉट को बहुत दोष दिया। लेकिन यह सचमुच बड़े दुख की बात है कि प्यार पर दोषारोपण किया जाए और किसी सुन्दरी के अकेलेपन की कीमत पर यश खरीदा जाए।