एक अवसर अनेक उत्सव / जयप्रकाश चौकसे

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एक अवसर अनेक उत्सव
प्रकाशन तिथि : 02 मई 2013


तीन मई को इसकी संभावना क्षीण है कि नासिक से कुछ दूरी पर बसे ग्राम त्रियम्बकेश्वर जहां गोविंद धुंडिराज फाल्के का जन्म हुआ था, में कोई समारोह होगा या पुणे फिल्म संस्थान के छात्र वहां जाएंगे। किसी सितारे को तो शायद यह नाम भी ना मालूम हो। आजकल तो सामान्य किशोर भी केवल पिता का नाम जानते हैं, दादा या परदादा का नाम बहुत दूर की बात है। अत: भारत में कथा फिल्म के पितामह की जन्मस्थली का विस्मरण कोई बड़ी बात नहीं है। इससे कुछ वर्ष पूर्व उनके मकान में कुछ रीलों के डिब्बे मिले, जिनमें रखा निगेटिव नष्ट हो चुका था। उनके जीवनकाल में न केवल उन्हें अनदेखा किया गया वरन् १९४४ में उनकी शवयात्रा में भी कोई फिल्मकार शामिल नहीं था।

तीन मई को दिल्ली में प्राण सिकंद को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया जाएगा। इस वर्ष श्री नायर के नाम की भी चर्चा थी, जिन्होंने आधी सदी तक पुरानी फिल्मों का संरक्षण किया और समय-समय पर उनकी मरम्मत भी करते रहे। इस तरह फिल्म उद्योग की सेवा करने वाले अनगिनत लोग हैं, जिनका जिक्र नहीं होता और यह सभी क्षेत्रों में होता है। अनेक विलक्षण तकनीशियन भुला दिए गए हैं। आज मंगेश देसाई को भी भुला दिया गया, जिन्हें ध्वनि पुनर्मुद्रण और मिक्सिंग की कला में अनेक विदेशी भी विलक्षण प्रतिभा मानते थे। यह सब स्वाभाविक है कि समय की लहरें रेत पर लिखे नाम मिटा दें।

हाल ही में सभी सितारों ने अपने मेकअप मैन का सम्मान किया। दरअसल मेकअप करने वाला सितारे का अंतरंग होता है। वह चेहरे पर आने वाली लकीरों को उनके प्रगट होने के पहले भांप लेता है। सितारे का कोई नुस्खा उससे छुपा नहीं रहता और उन्हें अवाम की निगाह से बचाना ही उसका काम है। मेकअप मैन का चेहरा सितारे का आईना होता है, वह उसके भाव से अपना हाल समझ सकता है। इस क्षेत्र में सरोश मोदी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने विदेश जाकर प्रशिक्षण लिया था और वे ताउम्र संजीव कुमार के साथ ही अन्य लोगों का भी काम करते थे। 'सत्यम शिवम सुंदरम' में नायिका का अधजला चेहरा उन्होंने ही रचा था। मेकअप मैन की निगाह ही सितारे के सिर पर पहले सफेद बाल को देखती है। आजकल हेयर स्टाइलिस्ट अलग होते हैं। राज कपूर का कहना था कि मेकअप के कच्चे माल में चूने का अंश होता है और लगातार लगाए जाने पर कुछ अंश सितारे के व्यक्तित्व में पहुंच जाता है। शायद यही कारण है कि सितारे कई निर्माताओं को चूना लगा देते हैं।

सच तो यह है कि सितारे का काम भी बहुत कठिन है, उसे एक ही जीवन में अनेक प्रकार की भूमिकाएं करनी होती हैं और इन किरदारों की भावनाएं उसके अवचेतन में तलछट की तरह कायम रह सकती हैं। कई कलाकार उन किरदारों से बाहर ही नहीं निकल पाते। सांप जितनी आसानी से अपनी त्वचा का ऊपरी अंश छोड़ देता है, उतनी आसानी से कलाकार भूमिकाओं का प्रभाव नहीं छोड़ सकते। मनुष्य और सांप में अंतर होता है, परंतु विष दोनों में होता है। सांपों में केवल कुछ प्रतिशत सांप का जहर ही मारक सिद्ध होता है जैसे कोबरा का, परंतु मनुष्यों का विष हमेशा मारक सिद्ध होता है। हर मनुष्य के शरीर और स्वभाव में सारे पशु-पक्षियों और प्रजातियों के अंश शामिल हैं। शायद यही कारण है कि योग के अधिकांश आसनों का नाम जानवरों और पशु-पक्षियों पर है। इतना ही नहीं, महाभारत में वर्णित युद्ध चक्रों के नाम भी जानवरों और पशु-पक्षियों पर हैं।

बहरहाल, तीन मई को अनेक छोटे-बड़े शहरों में कुछ आयोजन होंगे। इंदौर में राकेश मित्तल और श्रीराम ताम्रकार द्वारा सिने विजन संस्था विगत पांच वर्षों से चलाई जा रही है, जिसमें सार्थक फिल्मों का नियमित प्रदर्शन होता है और फिल्मों पर चर्चा भी होती है। इस वर्ष तीन मई को उन्होंने सई परांजपे को आमंत्रित किया है और उन्हीं की 'चश्मे बद्दूर' दिखाई जाएगी। सलीम साहब ने डेविड धवन को कहा था कि सई परांजपे को कुछ धन अवश्य देना चाहिए, क्योंकि उनकी पटकथा पर ही नई फिल्म रची गई है। आशा करते हैं कि डेविड धवन ने ऐसा कुछ किया होगा। यह कमाल की बात है कि एक मौलिक रचना से प्रेरित रचनाएं बार-बार बनाई जाती हैं और मूल के रचनाकार को कुछ नहीं मिलता।

इस अवसर पर कुछ संस्थाएं भौंडे और फूहड़ आयोजन भी करती हैं, क्योंकि अंधा अपने-अपने को रेवडिय़ां बांटने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। सारे पिताओं में धृतराष्ट्र समाया हुआ है। दरअसल, समारोह नेक नीयत या बदनीयत से कहीं भी किए जाएं, परंतु केंद्रीय सरकार ने दादा साहेब फाल्के नामक गरिमामय पुरस्कार रचा है, अत: इस नाम का दोहराव नहीं किया जाना चाहिए। इससे भ्रम पैदा होता है।