एक इमारत नहीं, विरासत का जलना / जयप्रकाश चौकसे

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एक इमारत नहीं, विरासत का जलना
प्रकाशन तिथि :19 सितम्बर 2017

मुंबई के चेम्बुर क्षेत्र में बना आरके स्टूडियो जलकर नष्ट हो गया। अगले भाग में बना प्रशासनिक क्षेत्र बच गया है। कहा जा रहा है कि आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट है परंतु उस समय वहां कोई शूटिंग नहीं हो रही थी। अत: बिजली का प्रयोग नहीं किया जा रहा था, तब आग कैसे लगी? बीमा कंपनी आग लगने का कारण खोज कर रही है। भारत में दुर्घटनाओं की जांच की रिपोर्ट प्राय: संबंधित लोगों के गुजर जाने के बाद ही आती है। यह घपलों की जांच समितियों का देश है और जितने कागज तथा कलम स्याही इसमें नष्ट होती है- यह बताना कठिन होता है। विलंबित जांच रिपोर्ट दंड को लील जाती है। मात्र 64 करोड़ के बोफोर्स तोप सौदे की जांच लंबी खींची और कोई ठोस परिणाम नहीं आया परंतु उन बोफोर्स ने हमें करगिल विजय में महत्वपूर्ण सहायता की। स्पष्ट है कि उसे खरीदने का निर्णय गलत नहीं था। यह भी सच है कि अंतरराष्ट्रीय हथियार खरीदी में बिचौलिए होते हैं। कंपनियां अपने माल को बेचने के लिए स्वयं ही बिचौलिए नियुक्त करती हैं। फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है' के एक दृश्य में युवा डाकू अपने उम्रदराज साथी से पूछता है कि मुगलों, पुर्तगाल वालों और अंग्रेजों का राज रहा, हम डाकुओं का राज कब आएगा? उम्रदराज ठरकी डाकू हंसते हुए कहता है कि हमारा राज तो हमेशा रहा है। देश के सिंहासन पर कोई भी बैठा हो, डाकू तो हमेशा बने रहे हैं। अब अंतर यह आया कि सरकार डाकू की भूमिका भी निभा रही है। सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का।

ज्ञातव्य है कि मात्र बाईस की अायु में राजकपूर ने अपनी पहली फिल्म 'आग' का निर्माण किया और करीब 73 वर्ष बाद आग ने उनका स्टूडियो नष्ट किया, जिसका निर्माण उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म 'बरसात' की सफलता के बाद प्रारंभ किया था। अपनी तीसरी और जीवन में निर्णायक भूमिका निभाने वाली 'आवारा' की कुछ शूटिंग आरके स्टूडियो में हुई। स्टूडियो की दीवारें बन चुकी थीं परंतु छत डालने के लिए यथेष्ट धन नहीं था, जिस कारण वे रात में ही शूटिंग कर पाते थे। अगर 'आवारा' विस्मृत भी हो जाती है तो भी उसका स्वरूप दृश्य कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। यह दृश्य 9 मिनट तक चलता है। इसका प्रारंभ होता है नर्क की आग में फंसे नायक से, जिसका आर्तनाद है 'ये नहीं है, यह नहीं है ज़िंदगी, ज़िंदगी की आग में जिंदा जल रहा हूं मैं, मुझको भी बहार चाहिए, मुझको भी चाहिए प्यार'। इस हिस्से के अंत के साथ ही उभरता है स्वर्ग जहां उसकी प्रेमिका बाहें फैलाए गा रही है 'घर आया मेरा परदेसी, प्यास बुझी मेरी अखियन की'। इसी स्वर्ग आकल्पन में जब विरह के बाद प्रेमी मिल गए हैं तब विराट छवि वाले खलनायक के हाथ का खंजर उन्हें डराता है और विलग करता है। सैट पर लगी भव्य मूर्तियां नीचे गिरने लगती हैं और आभास दिया गया है जैसे स्वप्न का ही कत्ल किया जा रहा है। इसे फिल्म इतिहास का सर्वश्रेष्ठ दृश्य माना गया है परंतु यह ड्रीम सीक्वेंस से अधिक नाइटमेयर है। स्टूडियो में घूमता हुआ चक्र भी है जो बटन दबाने पर घूमने लगता है। इसका आकार एक गीत-संगीत की डिस्क की तरह है। सुभाष घई ने ऋषि कपूर अभिनीत 'कर्ज' में एक गीत वहां फिल्माया था। गीत था 'ओम शांति ओम'।

इस स्टूडियों में राजकपूर की अपनी फिल्मों के साथ ही अन्य फिल्मकारों ने भी शूटिंग की है। रिवाल्विंग सेट किसी अन्य स्टूडियो में नहीं है। मनमोहन देसाई ने भी 'अमर अकबर एंथोनी' का गीत यहां फिल्माया था। बोनी कपूर की 'रूप की रानी, चोरों का राजा' की अधिकांश शूटिंग इसी स्टूडियो में हुई है। स्टूडियों के शिखर पर हमेशा भगवा झंडा फहराता रहा है और मुख्य द्वार के भीतर आते ही आप महादेव की एक विशाल मूर्ति देख सकते हैं। स्टूडियो पर फिल्म बरसात के एक दृश्य का स्वरूप सीमेंट पर अंकित है। दृश्य में राजकपूर की एक बांह पर नरगिस झूल रही है तो दूसरे हाथ में वायलिन पकड़ा है गोयाकि सौंदर्य एवं संगीत प्रेममय मुद्रा में अंकित है। इस प्रतीक में परिवर्तन यह किया है कि दोनों के चेहरों को सपाट रखा है। केवल खड़े रहने की छवि से उनकी पहचान है।

परिवार की मुखिया श्रीमती कृष्णा कपूर ने स्टूडियो के पुन: निर्माण का संकल्प कर लिया है। बहुत पहले े वहां एक डिपार्टमेंट स्टोर के बनाने के प्रस्ताव आते रहे हैं परंतु फिल्म के प्रति समर्पण के कारण उसे स्टूडियो रूप में ही रखा है। 'जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां' महज एक गीत नहीं है, वह आस्था है, संकल्प है, शपथ है।

गौरतलब है कि राजकपूर की पहली फिल्म का नाम 'आग' था और आग ने ही स्टूडियो को खाक कर दिया। ऊपर वाले की पटकथा में कहानी जहां से शुरू होती है, वहीं समाप्त भी होती है। जोकर के अंत में लिखा गया था- 'द एन्ड- पॉजीटिवली नॉट' गोयाकि खेल चलता रहेगा- यह तो महज 'मध्यांतर' है। आशा है कि फिनिक्स पक्षी की तरह राख से ही नवनिर्माण होगा और प्रतीक चिह्न भी वही 'वायलिन और प्रेमिका' रहेगा। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर में पिछले वर्ष इम्मोर्टल्स नामक वृत्त चित्र के लिए राजकपूर की फिल्मों में प्रयुक्त सारी पोशाकों की शूटिंग की थी। जो कुछ जल गया है वह सेलुलाइड पर ज़िंदा है।