एक ऐसा अभिनेता जिसने करीना से भी सालो पहले कहा-- मैं अपना फेवरेट हूँ / नवल किशोर व्यास

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एक ऐसा अभिनेता जिसने करीना से भी सालो पहले कहा-- मैं अपना फेवरेट हूँ


चांदी उगने लगी है बालों में, उम्र तुझ पर हसीन लगती है। गुलजार के इस दिलकश शेर को अभिनय की नजीर बन चुके नसीर के नाम न करू, तो शेर के साथ, खुद नसीर के साथ गुस्ताखी होगी। कहते है कि इंसान सबसे ज्यादा खूबसूरत तभी दिखता है जब वो किसी से बेइंतहा प्यार में हो और नसीर से ज्यादा किसको अभिनय से बेइंतहा प्यार हो सकता है। नसीर अभिनय करते है तो लगता है कि हमारे आस पास की सभी निर्जीवता उठकर उसका अभिनय निहारने लग जाती है। देवता भी शायद हाथ उठा साधो साधो कहते होंगे। नसीर अभिनय के प्रतिमान है। आदर्श के मानक। इससे ऊपर कुछ भी नही। अपने खुरदरे चेहरे, गहराई तक दिल में उतर जाने वाली आंखो और चेहरे पर सफेद घुंघराली दाढ़ी के साथ अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू तीनो ही भाषाओं को जब नसीर की आवाज और डिक्शन मिलता है तो जो साउंड सुनने के लिए कानो तक पहुचता है, वो मदहोश कर देने को काफी है। मारक है इसका असर। इससे बचना आसान नही। वो हाजिर जवाब है, मसखरा भी और गुस्सैल भी। संतुष्ट भी, बैचैन भी। 


20 जुलाई 1949 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए नसीरुद्दीन शाह ने यूं तो अपने करियर की शुरुआत फिल्म 'निशांत' से की थी और फिल्म दर फिल्म अभिनय के नए मुहावरे वो गढ़ रहे थे लेकिन छोटे पर्दे पर गुलज़ार के सीरियल 'मिर्ज़ा ग़ालिब' से जो रूह नसीर की मिली वो आज तक उनके साथ है। खुद नसीर कहते भी है कि मिर्ज़ा ग़ालिब का किरदार करना उनके लिए बड़ी चुनौती की तरह था। ग़ालिब को गुज़रे हुए ज़माना हो चुका था। कोई नहीं जानता था कि वो कैसे चलते थे, कैसे उठते थे, कैसे बैठते थे। उनके लिखें हुए से अंदाजा लगाकर उस खास किरदार को उसकी रूह देनी थी। इससे जुड़ा एक किस्सा भी कम दिलचस्प नही। इस सीरियल के लिए गुलज़ार की पहली पसंद अभिनेता संजीव कुमार थे। यहां तक की उनसे बात भी हो चुकी थी। नसीरुद्दीन शाह उस समय राष्ट्रीय नाट्य विधालय से अभिनय की डिग्री लेकर पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट में दो साल का कोर्स कर रहे थे। जब पता चला कि गुलज़ार संजीव कुमार को लेकर मिर्ज़ा ग़ालिब को लेकर एक फिल्म बना रहे हैं तो उन्होंने गुलज़ार को अपने फोटोग्राफ के साथ खत लिखा और कहा कि वो थोड़ा सब्र करें। मेरे से बेहतर मिर्जा गालिब का रोल कोई नही कर सकता। गुलजार को ये अदा और नसीर का अपने ऊपर इतना आत्मविश्वास बहुत पसंद आया पर शूटिंग संजीव कुमार की साथ ही शुरू की। लेकिन जो बात शाहरुख खान अपनी पूरी मैनेरिज्म के साथ ओम शांति ओम में कहते है उसे सच होने का समय आया। किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है। संजीव कुमार को उन्हीं दिनों दिल का दौरा पड़ गया और उनकी सेहत गिरने लगी। शूटिंग मुश्किल हो गई। अब गुलज़ार को लगा कि अमिताभ बच्चन शायद मिर्जा बन जाएंगे लेकिन बात नही जमी।  'मिर्ज़ा ग़ालिब' ठंडे बस्ते में चले गए। लंबे वक्त तक गुलजार ने उस पर नही सोचा। फिर एक रोज़ दूरदर्शन, जो उन दिनों मूंगफली के दाम में बादाम टीवी पर परोस रहा था ने गुलजार को सीरियल बनाने का अनुरोध किया तब गुलजार को गालिब और नसीर की बात याद आई और हिंदुस्तानी टीवी-सिनेमा का एक नायाब गुलदस्ता मिर्जा गालिब महकने को आया। नसीर ग़ालिब में ऐसे डूबे, लगा कि गालिब को ही देख रहे है। आवाज का बेस, हर लफ्ज़ को बोलते हुए बलां की गहराई और उसके साथ जिंदा होती शायराना पुरानी दिल्ली। मिर्जा गालिब धरोहर है, धरोहर है नसीर भी। एक ऐसा अभिनेता जिसे अपने अभिनय पर, अपने काम पर गौरव है। इतना गौरव की वो अपने आस पास किसी को भी नही मानता। जी हां, उसे पसन्द बलराज साहनी, मोतीलाल और दिलीप कुमार है पर नसीर खुद जानता है कि ये सब नसीर से बड़े नही। इसे घमंड कहा जाए तो इस घमंड को रखने का जिगर और हुनर केवल नसीर के पास ही है।