एक और दस्यु रानी फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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एक और दस्यु रानी फिल्म
प्रकाशन तिथि : 30 जनवरी 2019


खबर है कि भूमि पेडनेकर आगामी फिल्म में दस्यु रानी की भूमिका करने जा रही हैं। इस भूमिका की तैयारी के लिए वे कंधे पर भारी बंदूक लिए प्रतिदिन कुछ दूरी तय करती हैं। डाकू के जीवन पर फिल्में हर दौर में बनती रही हैं। शेखर कपूर की फूलन देवी बायोपिक अत्यंत सफल रही थी। उस समय फूलन देवी ने मुकदमा दायर किया था कि फिल्म का प्रदर्शन रोका जाए, क्योंकि फिल्म उनके जीवन और संघर्ष को गलत ढंग से प्रस्तुत करती है परंतु अदालत ने उनकी अपील खारिज कर दी थी। कुछ वर्ष पूर्व कंगना रनोट अभिनीत फिल्म 'रिवॉल्वर रानी' भी बनी थी। उस फिल्म में नायिका डाके डालती है और उसने भय का राज कायम किया हुआ है। उसे एक युवा से प्रेम है, जिसकी महत्वाकांक्षा फिल्म में अभिनय करना है। रिवॉल्वर रानी डाके डालकर कमाई गई राशि से फिल्म में पूंजी निवेश करती है। उस फिल्म के क्लाइमैक्स में वही युवा महत्वाकांक्षी अभिनेता पैसे की खातिर रिवॉल्वर रानी को गोली मार देता है। उस फिल्म में रिवॉल्वर रानी अपने प्रेमी की खातिर चम्बल के बीहड़ में एक फिल्म नगरी भी स्थापित करती है।

भूमि पेडनेकर ने अपनी पहली फिल्म 'दम लगाके हईशा' के लिए तीस किलो वजन बढ़ाया था। बाद में अक्षय कुमार के साथ बनी फिल्म 'टाॅयलेट: एक प्रेम कथा' के लिए अपना वजन घटाया था। इसी तरह आमिर खान भी अपनी भूमिकाओं के लिए वजन घटाते-बढ़ाते रहते हैं। अभिनेता को अपने शरीर पर तरह-तरह के प्रयोग करने पड़ते हैं। अनिल कपूर अभिनीत सतीश कौशिक की फिल्म 'बधाई हो बधाई' के लिए भी अनिल कपूर को अपना वजन बढ़ाना पड़ा था। हर व्यवसाय के अपने तौर तरीके होते हैं। कभी-कभी दुकान खोलने के लिए जितने जतन किए जाते हैं उससे अधिक कागजी खानापूर्ति दुकान बंद करने के लिए करनी पड़ती है। हमारी व्यवस्थाएं कागजी कवायद कराने के नए नए तरीके खोजती रहती हैं। अर्थव्यवस्था को भी कागज की नाव बना दिया गया है। रियासत की लहरें इस कागज की नाव को डुबा सकती हैं।

बहरहाल, 1960 में राज कपूर की फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है' के एक दृश्य में एक सेवानिवृत्त बुजुर्ग डाकू खटिया पर लेटे हुए फब्तियां कसता रहता है और पास से गुजरने वाली महिलाओं से भी छेड़खानी करता है। नाना पलसीकर ने यह भूमिका अभिनीत की थी। एक दृश्य में एक युवा डाकू अपने बुजुर्ग से कहता है कि देश में गजनवी राज हुआ, मराठा हुकूमत रही, मुगलों ने राज किया और अंग्रेजों की हुकूमत भी रही तो हम डाकुओं का राज कब होगा? बुजुर्ग जवाब देता है कि हम डाकुओं का राज तो हर दौर में रहा है। हर कालखंड में डाकू सक्रिय रहे हैं। वर्तमान कालखंड में व्यवस्था ही डाके डाल रही है। तिगमांशु धूलिया की 'साहब बीबी और गैंगस्टर' में भूतपूर्व राजा ही डाके डलवाता है। इस तरह वह मालगुजारी वसूल करता है।

ज्ञातव्य है कि 'बोनी एंड क्लॉयड' को एक कल्ट फिल्म माना जाता है। इस फिल्म में डकैत केवल डाका डालने के रोमांच के लिए डाके डालते हैं। उन्हें धन की आवश्यकता नहीं है और न ही उन्हें किसी से कोई बदला लेना है। एक तरह से वे जीवन की ऊब से बचने के लिए डाके डालते हैं। इसी फिल्म का चरबा आदित्य चोपड़ा ने रानी मुखर्जी और अभिषेक बच्चन के साथ बनाया था। इसी फिल्म 'बंटी और बबली' में अमिताभ बच्चन व ऐश्वर्य राय ने एक लोकप्रिय आइटम अभिनीत किया था। गुलजार रचित गीत के बोल थे 'कजरारे कजरारे तेरे कारे कारे नैना'।

डाकू परम्परा की एक कड़ी 'रॉबिनहुड' भी है, जो अमीरों को लूटकर गरीबों में धन वितरित करता है। चम्बल के डाकू भी बहुत-सा धन दान दिया करते थे। दरअसल, यह कोई सचमुच की दया के भाव से प्रेरित कार्य नहीं होते हुए उनकी अपनी सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा है। उनसे दान पाने वाले लोग उन्हें खबर देते रहते हैं कि पुलिस का जत्था किस दिशा से आगे बढ़ रहा है। इस तरह वे लोग उनके खबरची बन जाते हैं। सरकारी जासूस गफलत कर सकते हैं परंतु ये खबरची सतर्क होते हैं और सटीक खबर देते हैं। दीवार पर मंडराती छिपकली को मारने या भगाने के प्रयास होते ही छिपकली अपनी दुम गिरा देती है ताकि आपका ध्यान दुम की ओर चला जाए। 'छिपकली' की दुम डिटेचेबल हिस्सा है जो पुन: आ जाती है। इसी तरह व्यवस्थाएं चुनाव के पूर्व बहुत-सी घोषणाएं करती हैं। ये तमाम घोषणाएं व्यवस्था की छिपकली की डिटेचेबल दुम की तरह मानी जानी चाहिए।