एक और शहीद / सेवा सदन प्रसाद
अपने परिवार से हजारो किलोमीटर दूर सियाचिन की बर्फीली वादियों में देश की सुरक्षा के लिए तैनात हनमनथप्पा जवानों के साथ अपनी डियूटी निभा रहा था। पर पलक झपकते ही बर्फीली तूफान ने उन्हें अपने चपेट में ले लिया। तब बर्फ ही बना कफन, बर्फ ही कब्र और बर्फ तले ही दफन। फिर शुरू हुआ - 'सर्च अभियान'। सारी दुनिया तो सबको मृतक समझ ही चुकी थी पर हनमनथप्पा की पत्नी महादेवी और बेटी नेत्रा केे आशान्वित नयनों में उम्मीदें अभी भी बरकरार थी। भारतीय नारी की प्रबल आस्था से प्रेरित जो थी।
आखिर एक औरत की आस्था रंग लाई।
बर्फ तले दबा हनमनथप्पा जिंदा मिल गया। पत्नी का विश्वास तब मुस्कुरा पड़ा। हनमनथप्पा की कुशलता की कामना करने लगी। फिर तो पूरे देश में दुआयों एवं इबादतों का सिलसिला प्रारंभ हो गया। मंदिर की घंटियां दिन-रात बजने लगी, मस्जिदों में नमाज पढे जाने लगे। चर्च में प्राथनाएं की जाने लगी, गुरूद्वारे में ग्रंथ- पाठ होने लगा। भारतीयों की ऐसी राष्ट्र-भावना को देखकर पूरा विश्व चकित रह गया। 'मेरा भारत महान' की भावना सबों पर हावी हो गया। सीमा पर तैनात जवानों के हौसले भी दुगुने हो गये।
पर कहते हैं - जिस इंसान को सब चाहने लगते हैं वह भगवान का भी चहेता बन जाता है। भगवान की दुलारी बेटी भारत माँ इस 'कर्मयोगी' को अपनी गोद में ले ली ताकि उसे चैन की नींद सुला सके।