एक कंजूस की प्रेम कहानी / अर्चना चतुर्वेदी
सयाने जानते हैं कि आशिकी बड़ा खर्चीला काम है। इस काम में बंदे की जेब को पेचिश हो जाती है और टाइम की फर्म का दिवाला निकल जाता है। पर फिर भी लोग हैं कि आशिकी करते हैं कारण सिर्फ ये कि खतरों से खेलने का शौक भी तो एक शौक होता है। आशिकी के धंधे में जहाँ इन्वेस्टमेंट एक अनिवार्य तत्व है वहीं कंजूसी के धंधे में हर चीज की गुंजाइश है पर वहाँ खर्च का अकाउंट बहुत मुश्किल से खुलता है। सो आशिकी और कंजूसी दोनों साथ साथ नहीं चल पाती। पर मुझे आजकल एक दौरा पड़ा हुआ है। मैं असंभव चीजों की कल्पना करने लगती हूँ कई बार तो ये कल्पनाएँ सच भी हो जाती। कसम कृष्ण कन्हैया की कल्पना सच हुई भी तो मेरे ही मोहल्ले में। तो आप भी कंजूस की प्रेम कहानी का मजा ले ही लीजिए...
तो सुनिए एक कहानी अपनी जुबानी। हमारे पड़ोस में एक कंजूस परिवार रहता था, कंजूस भी कोई ऐसे वैसे नहीं। परिवार में धन की कोई कमी नहीं थी। होगी भी कैसे खर्च ही नहीं करते कमाई खूब। बचत भी खूब 'मोटा खाओ मोटा पहनो' वाले सिद्धांत पर चलने वाले लोग।
उन्ही के नौनिहाल हैं हमारे हीरो यानि लक्ष्मीपति। चूँकि इस परिवार को लक्ष्मी से प्यार है इस लिए सबके नाम में लक्ष्मी आना अनिवार्य है यहाँ तक कि घर भी 'लक्ष्मी निवास' है। हमारे हीरो बड़े ही होनहार किस्म के नौजवान हैं और बाप दादा के नक्शे कदम पर। इनके बारे में तो ये कहा जाता है कि यदि सड़क पर पानी देख लें तो जूते भी बगल में दबा लें। देखने में एक दम सीधे सादे, भोंदू टाइप, कपड़े भी इस तरह के पहनते कि ढीले ढाले ही नजर आते लेकिन बड़े ही बुद्धिमान या कहो एकदम चालू।
बेचारे लक्ष्मीपति के नाम में तो पति लगा है लेकिन पति बनने का सौभाग्य अब तक नहीं मिला है। उनकी उम्र के ज्यादातर लड़कों की या तो शादी हो चुकी है या प्रेम प्रसंग में फँसे हैं। ऐसे में इन्हें भी लगा, क्यों ना एक अदद गर्ल फ्रेंड ही बनाई जाए। अब हमारे हीरो जुट गए लड़की की तलाश में कभी फेस बुक के जरिए कभी किसी दोस्त के जरिए कई लड़कियाँ पटाने की कोशिश की लेकिन कभी तो लड़की इनके नाम का मजाक बना देती, कभी इनकी सीधी सादी छवि निरख कर इन्हें भइया बना लेती। और यदि कभी कोई फँसी भी तो पहली ही मुलाकात में इनकी पोल खुल जाती और लड़की दुबारा मिलने का नाम ना लेती। बेचारे बड़े परेशान थे। एक दिन अपने दिल का हाल दूसरे शहर में बसे अपने मित्र को सुनाया, जहाँ ये अक्सर अपने काम से आते जाते रहते थे। मित्र तो मित्र होता है उससे अपने दोस्त की ये हालत नहीं देखी गई और उसने उन्हें अपनी जान पहचान की लड़की से मिलवा दिया।
लड़की भी देखने में ठीक ठाक थी और दिल से सोचती थी और किसी अच्छे साथी की तलाश में थी। सो वो आसानी पट गई। पहली मुलाकात चूँकि उसी मित्र ने स्पोंसर कर दी सो मामला जम गया। दो तीन दिन खूब सैर सपाटे हुए। अब ये कहना ना होगा कि पहले दिन पैट्रोल सहित गाड़ी उसी मित्र की ली। पहले दिन दोनों एक रेस्टोरेंट में खाने गए जब पैसे देने की बात आई तो प्रेमिका इंतजार में थी कि पैसे लक्ष्मीपति देंगे पर उन्होंने जेबें टटोली और बोले, 'हे भगवान मैं तो पर्स लाना ही भूल गया' प्रेमिका बोली, 'अरे परेशान क्यों होते हैं मैं दे देती हूँ ना' लड़की कमाती थी सो उसने बिल चुकता कर दिया। कहना ना होगा हमारे लक्ष्मीपति जी तीन दिन शहर में रहे और तीनों दिन पर्स भूलना नहीं भूले। लड़की को पहली बार प्यार हुआ था सो उसे महसूस भी नहीं हुआ कि ये हीरो के हथकंडे थे। जब दोनों जुदा हुए तो आँखों में आँसू थे। दोस्त के मन में भी लड्डू फूट रहे थे, इस उम्मीद में कि उसने बड़ा भला काम किया कि दो दिलों को मिलवा दिया।
लक्ष्मीपति जी दोबारा आने का वादा करके चले गए। वो या तो मैसेज करते या फेसबुक पर चैट अब कौन एस.टी.डी. पर पैसे खर्च करे। प्रेमिका ही हर बार फोन करती। चूँकि प्यार अभी ताजा ताजा ही था सो उसे बुरा नहीं लगा।
अगली बार जब प्रेमी आए तो सारा खर्च प्रेमिका ने ही किया उनके ठहरने, खाने पीने से लेकर घूमने फिरने तक। प्यार में अंधी जो हो चुकी थी, लेकिन बंदा खुश कि चलो पैसे भी बचे और बंदी के साथ मौज मस्ती भी हो गई।
इस तरह कुछ समय बीता। तभी प्रेमिका बीमार हो गई, वो फोन नहीं कर पाई लेकिन वो बेचारी अपने प्रेमी के फोन का इंतजार जरूर कर रही थी। प्रेमी का मैसेज आया 'कैसी हो? दो दिन से फोन नहीं किया।' प्रेमिका ने जवाब दिया, 'बीमार हूँ।' उसे लगा... अब तुरंत फोन आएगा... उसे मेरी चिंता हो जाएगी, आखिर तो मुझसे प्यार करता है। तभी फिर मैसेज आया, 'तुरंत फोन करो मुझे तुम्हारी तबियत पूछनी है। बहुत चिंता हो रही है।'
अब तो प्रेमिका के तन बदन में आग लग गई। एक तो तबियत खराब ऊपर से ऐसी हरकत। उसके दिमाग की बत्ती जल चुकी थी। उसने सोचा... ऐसे दोस्त का क्या फायदा, सारा खर्च में उठाऊँ, फोन भी मैं ही करूँ। इसे तो मेरी तबियत की भी चिंता नहीं। फोन भी नहीं कर सकता, 'साला चमड़ी जाए दमड़ी ना जाए' वाली सोच का आदमी पैसे के अलावा किसी चीज से इसे प्यार नहीं। ये तो मुझे बर्बाद कर देगा।
उस दिन से प्रेमिका ने उनके मैसेज का जवाब देना बंद कर दिया। फेसबुक पर भी नहीं आती लेकिन पट्ठे ने फिर भी फोन नहीं किया। अपने उस मित्र से कहा पता करने को। और जब इस बार फिर काम से आए तो प्रेमिका से मिलने गए पर वो ना मिली।
आखिर वो समझ ही गए कि ये भी गई हाथ से। अब प्रेमी महोदय नई प्रेमिका की तलाश में हैं। इन्हें इस बात का कोई गम नहीं कि प्रेमिका हाथ से गई बल्कि वो तो खुश हैं कि चलो अपनी तो फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं हुई और मौज मस्ती भी फ्री। अब हमारे लक्ष्मीपति जी एक बार फिर निकल पड़े हैं एक ऐसी प्रेमिका की तलाश में जो उन पर सारा खर्च भी करे, फोन भी खुद ही करे और हो पूर्ण समर्पित...। तो दोस्तों आपमें से किसी को ऐसी लड़की के बारे में जानकारी हो या आपके मोहल्ले पड़ोस में रहती हो तो कृपया हमारे लक्ष्मीपति जी की मदद करिए।
क्यों... क्यों, मुझे कुछ और कहानियाँ नहीं लिखनीं क्या?