एक कतरा खून / इस्मत चुग़ताई / पृष्ठ 1

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फ़िज़ा में आसमानी नग़्मे गूँज रहे थे। हवाओं में फ़रिश्तों के पैरों की सरसराहट थी। दुनिया एक अज़ीबोग़रीब जादू करने वाले आसमानी नूर में नहाई जगमगा रही थी। सूरज आने वाले पाक बच्चे के एहतराम में सर झुकाए हुए था। चाँद और तारे नई चमक-दमक से झिलमिला रहे थे। शहर की रोशनियाँ निराली आब-ओ-ताब से जगमगा रही थीं। दीयों की लवें ख़ुद-ब-ख़ुद ऊँची हो गई थीं। ख़ुदा-ए-ज़ुलजलाल-वाला करम1 बड़े इनहिमाक2 से ज़मीन की जानिब देख रहा था। आज ख़ुदा का हसीन-तरीन शाहकार3 पैदा होने वाला होता है।

बिंते-रसूल4 अली इब्ने तालिब की चहीती बीवी फ़ातिमा ज़ोहरा दर्देजेह6 में मुब्तला बेचैन-ओ-बेक़रार थीं। उनका फूल-सा कमसिन चेहरा पसीने की शबनम में डूबा हुआ था। भीगी-भीगी आँखों में वह कर्ब6 था जो हर माँ का इनाम है। अली इब्ने अबी तालिब बड़े बेटे हसन को कंधे से लगाए बेचैन होकर टहल रहे होते थे। जान से प्यारी बीवी के कर्ब का एहसास बेचैन-ओ-बेक़रार कर रहा था। ऐसे नाज़ुक वक़्त में औरत को माँ के प्यार की ज़रूरत होती है। अली के लब दुआ के लिए बेचैनी से हिल रहे थे—‘‘ए रहीमो-करीम, दुनिया के पालनहार, इस बिन माँ की बच्ची पर रहम फर्मा।’’ सरवरे-कायनात7, रसूले-ख़ुदा बेटी की तकलीफ से दुखी ड्योढ़ी पर टहल रहे थे। माँ का दुःख सिर्फ माँ का हिस्सा है, कोई उस दर्द को बाँट नहीं सकता।

पैग़ंबरे-इस्लाम ने अपनी बेटी फ़ातिमा ज़ोहरा को बड़े लाड़-प्यार से पाला था। यह वह ज़माना था जब अरब वहशी अपनी बेटियों को ज़िंदा दफ़्न कर दिया करते थे। लड़की ज़ात को मनहूस और ज़लील8 समझा जाता था। ज़मानः-ए-जहालत9 की और दूसरी लानतों के साथ रसूले-ख़ुदा ने इस बेहुदा रस्म के ख़िलाफ भी आवाज़ बुलन्द की। अपने क़ौल को फ़ेल10 से साबित करने के लिए उन्होंने अपनी बेटी को सारे हुक़ूक11 दिए जो एक इंसान को मुहज़्ज़ब दुनिया में मिलना चाहिए। वह उनसे बेहद मुहब्बत करते थे। उन्हें बड़े शौक़ और लगन से इल्म की दौलत से मालामाल किया।


1. प्रताप वाला और सम्माननीय 2. तल्लीनता 3. सुंदरतम कृति 4. मुहम्मद साहब की बेटी 5. प्रसव-पीड़ा, 6. पीड़ा 7. सृष्टि के नायक 8. तिरस्कृत 9. अज्ञानता का युग, इस्लाम-पूर्व युग 10. अमल, व्यवहार, 11. अधिकार।


उनकी बड़ी इज़्ज़त किया करते थे। बेटी को आता देखकर हमेशा ताज़ीम1 से खड़े हो जाया करते थे। जिनके क़दमों में शंहशाहों के सर झुकते थे उन्हें अपनी बेटी की इस तरह इज़्ज़त करते देखकर लोग अपनी बेटियों की इज़्ज़त करने लगे थे। बेटी का बाप होना गोली नहीं, एक क़ाबिले-फ़ख्र2 बात समझा जाने लगा। फ़ातिमा ज़ोहरा जब बालिग हुईं तो उनके लिए बड़े-बडे़ शाहज़ादों और बादशाहों के पैग़ाम आने लगे। मगर रसूलल्लाह ने सबको टाल दिया। लोग बड़े चक्कर में थे कि रसूले-ख़ुदा को बेटी के लिए वर की तलाश है ? इरादा क्या है ? जवान बेटी को कब तक बिठाए रखेंगे ? बेटी बाप के सीने का बोझ न थी, जिसे हटाने के लिए उसे किसी के सुपुर्द कर दिया जाए। वह उनकी बेटी थी, जिगर का टुकड़ा थी। वह उसके लिए ऐसा शौहर चाहते थे जो हर तरह एक मुकम्मल इंसान हो, जिसे वह अपनी बेटी की तरह अज़ीज़ रखते हों।

पैग़ंबरे-ख़ुदा को ख़ुदा का पैग़ाम इंसानों कर पहुँचाने के लिए एक मुईन और मुबीन3 की ज़रूरत थी। एक ऐसा शरीकेकार जो उनका बोझ बाँट सके। जिस पर वह भरोसा कर सकें। उस वक़्त सात शख़्स इस्लाम के दायरे में आए थे। उनकी जान-ओ-माल की ख़ैरियत न थी. वह छिपकर इबादत करते थे। रसूलुल्लाह ने एक जलसे में अपनी इस ख़्वाहिश का इज़हार फ़र्माया और पुकारकर कहा, ‘‘कौन है तुममें से, जो मेरा मुईन-ओ-मददगार बनने को तैयार है ?’’ बनी हाशिम के ही सब ही मुअज़्ज़िज़4 लोग जलसे में शरीक थे। मगर किसी ने लब्बैक5 न कहा। लोग खुलकर इज़हारे-ख़याल करते झिझकते थे। मुख़ालिफ़ीन6 के ख़ौफ़ से हिचकिचाते थे। रसूले-ख़ुदा उम्मीद-भरी नज़रों से सबका मुँह तक रहे थे, मगर सब ख़ामोश थे, आँखें चुरा रहे थे। उस वक़्त अचानक एक लड़का, जिसकी उम्र मुश्किल से दस-बारह की होगी, मजमे में से उठा और निहायत दिलेराना अंदाज़ में बोला—‘‘या रसूलुल्लाह ! मैं आपका मुईन-ओ-मददगार बनने को तैयार हूँ।’’

लोग खिलखिलाकर हँस पड़े। भला एक कमसिन लड़का इतना अज़ीम बोझ क्योंकर उठा सकेगा ? मगर पैग़ंबर का चेहरा मसर्रत से खिल उठा। फ़िक्र-ओ-तरद्दुद के आसार यक्सर ग़ायब हो गए। उन्होंने आगे बढ़कर उस बच्चे के शाने पर हाथ रख दिया।


1. आदर 2. गर्व करने योग्य 3. सहायक 4. सम्माननीय 5. ‘मैं उपस्थित हूँ—मालिक के पुकारने पर दास द्वारा दिया जाने वाला उत्तर 6. विरोधी।