एक कम / मनोहर चमोली 'मनु'
Gadya Kosh से
एक मुरगी थी। वह हर रोज़ एक अंडा देने लगी। एक, दो, तीन, चार। इस तरह उसने बीस दिनों तक अंडे दिए। मुरगी को गिनती तो आती नहीं थी। फिर भी वह अंडों के ढेर पर बैठ गई। तभी एक अंडा लुढ़ककर ढेर से अलग हो गया। मुरगी ने कहा,‘‘इधर आओ। नहीं तो अंडा ही रहोगे। अंडा बोला,‘‘मुझे डर है। कहीं तुम्हारे पैरों से टूट गया तो!’’
मुरगी बोली,‘‘अंडों से चूजे वही बनेंगे जिन्हें मैं सेती हूँ।’’ अंडा बोला,‘‘देखा जाएगा। अंडों को कुछ दिनों बाद अपना छिलका ही तो तोड़ना होता है। आसान है। मुझसे हो जाएगा।’’ मुरगी पंख फैलाकर अंडों के ढेर पर बैठ गई। कई दिनों तक बैठी रही। एक क़दम भी नहीं खिसकाया। बीस दिन बीत गए। फिर अंडों से चूजे बाहर निकलने लगे। मुरगी ख़ुश थी। चूजे चींचींची कर रहे है। मुरगी बोली,‘‘एक चूजा कम कैसे हो गया?’’
बताओ। मुरगी ने ऐसा क्यों कहा होगा?