एक करोड़ से कुछ कम / राजकिशोर
वे पाँच थे। तीन के शरीर खादी से ढके हुए थे और दो के सफारी से। लेकिन इससे उनकी पहचान में कोई फर्क नहीं पड़ता था। अव्वल तो उनकी तरफ किसी शरीफ आदमी की नजर उठती ही नहीं थी और उठती तो तुरंत स्पष्ट हो जाता कि वे कांग्रेस नाम की उस संस्था के सदस्य हैं जो किसी भी घाट पर पानी पी सकती है और उससे जीवनी शक्ति अर्जित कर सकती है। उन पाँचों के चेहरे पर रुआब का जो पतला पानी था, वह कांग्रेस के गहरे गड्ढे से ही संचित किया हुआ था। ऐसी शख्सियतों से मेरा नजदीक का पाला कभी नहीं पड़ा। उनके बारे में मैं जो भी जानता था, उसका आधार उनके बारे में फैली हुई किंवदंतियाँ या सत्यकथाएँ थीं। अनेक जीवों को हमने देखा नहीं होता है, पर उनके गुणों से हम सभी अवगत होते हैं। हर जानकारी अगर अनुभव के आधार पर ही जुटानी पड़े तो मानव जाति तबाह हो जाएगी।
वे पाँच थे, पर उनमें मतैक्य था। कुछ ऐसा महत्त्वपूर्ण था, जो उन्हें इस क्षण ऐक्यबद्ध कर रहा था। विचारों से नहीं, इरादे से। वे मेरे घर में यद्यपि घंटी बजा कर, लेकिन साधिकार घुसे और सोफे पर इस तरह पसर गए जैसे वे रुबाई नहीं, गजल पढ़ने की तैयारी करके आए हों। शायद वे मेरे बारे में जानते थे और उन्हें मुझसे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं थी। फिर भी, जाहिर था कि उन्हें अपने आप पर पूरा भरोसा है। बिना इस भरोसे के राजनीति की भी नहीं जा सकती। लेकिन वे मेरे पास किसी राजनीतिक काम से नहीं आए थे। इसके लिए कोई नेता, चाहे वह कितना भी छुटभैया हो, नागरिक के पास नहीं आता। उनका ध्येय आर्थिक था, जैसा कि होता है।
स्वागत-सत्कार के बाद मैंने जानना चाहा कि मैं उनके लिए क्या कर सकता हूँ। उनमें से एक रहस्यमय ढंग से मुस्कराया, 'कुछ नहीं, बस आपका थोड़ा-सा सहयोग चाहिए।' 'फरमाइए।' 'ऐसा है कि हम चंदा माँगने के लिए निकले हैं।' मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि कांग्रेस के बारे में मेरी समझ यह थी कि उसे अब जनसाधारण के पैसों की जरूरत नहीं रही। यहाँ तक कि अब चवन्निया सदस्य बनाने का अभियान भी नहीं चलाया जाता। पैसे जमा करने के मामले में वह फुटकर के बजाय थोक पर भरोसा करती है। मेरी आर्थिक स्थिति जैसी है, उसे देखते हुए कहीं से भी यह आशंका नहीं थी कि आज की कांग्रेस मुझे चंदा माँगने लायक समझ सकती है। सो मैंने अटकल लगाने की कोशिश की, 'यह परिवर्तन कैसे? क्या इस बार के चुनाव जनता के पैसे से लड़े जा रहे हैं?' यह उन्हें लहरा देने के लिए काफी था। चेहरे तो कई के तमतमाए, लेकिन जवाब उसने दिया जो सबसे ज्यादा खुर्राट जान पड़ता था, 'अजी, क्या बात कही आपने! क्या कांग्रेस की हालत इतनी पतली हो चुकी है कि वह चुनाव लड़ने के लिए भीख माँगती फिरे? माफ कीजिए, मैं आपको पढ़ा-लिखा समझता था।'
अपने अज्ञान पर मुझे शर्म आई। भारत के आम नागरिक की हैसियत यह हो चुकी है कि कोई भी उसे शर्मिंदा कर सकता है। अपनी शर्म मिटाने की कोशिश करते हुए मैंने जानना चाहा, 'माफ कीजिए, जबान फिसल गई। कृपया बताएँ कि आप किस अभियान पर निकले हैं।' बीच में बैठे हुए ने खँखारते हुए-से कहा, 'आपने अखबारों में देखा ही होगा कि सोनिया जी के पास एक करोड़ से कुछ कम की संपत्ति है। यही कोई पाँचेक लाख कम पड़ रहे हैं। हालांकि अनेक लोगों का कहना है कि सोनिया जी ने अपनी कुल संपत्ति का मूल्य बहुत कम करके दिखाया है, लेकिन यह सब उनके राजनीतिक विरोधियों का प्रोपेगैंडा है। यह हमारी राष्ट्रीय नेता के चरित्र हनन की कोशिश है। हम इस बेहूदा अभियान को सफल नहीं होने देंगे। लेकिन हम यह भी नहीं चाहते कि उनकी संपत्ति एक करोड़ से कम रह जाए।'
उसके बाईं ओर बैठे ने बात पूरी करने की कोशिश की, 'आज हम यह सोच कर निकले हैं कि कम से कम पाँच लाख रुपए जमा करके ही दम लेंगे। हम चाहते हैं कि यह राशि कल ही उन्हें सार्वजनिक रूप से भेंट कर दी जाए, ताकि कोई यह तोहमत न लगा सके कि कांग्रेस अध्यक्ष के पास एक करोड़ की भी संपत्ति नहीं है। दूसरे, हम उन्हें पाँच लाख की एक छोटी-सी कार भी भेंट करना चाहते हैं। बताइए, यह भी कोई बात हुई कि कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक संस्था के अध्यक्ष के पास एक कार भी न हो! बताइए, आप कितना दे रहे हैं!'
दाईं ओर बैठे ने स्पष्ट किया, 'घबराइए नहीं, हम एक-एक पैसे की रसीद देंगे। हम टीवी वालों को यह दिखाना चाहते हैं कि सोनिया जी की इज्जत रखने के लिए जनसाधारण किस तरह उमड़ पड़ा है। टीवी पर सारी रसीदों की नुमाइश की जाएगी। और हमने यह भी तय किया है कि किसी एक आदमी से दस हजार से ज्यादा का सहयोग नहीं लेंगे। हम चाहते तो यह थे कि एक हजार की सीलिंग रखी जाए। मगर हमने हिसाब लगा कर देखा कि तब हमें कम से कम एक हजार आदमियों के पास जाना पड़ेगा। आजकल इतना समय किसके पास है? फिर दिल्ली में गर्मी कितनी पड़ रही है!'
मैंने कहा कि कांग्रेस तो गरीबों की पार्टी है। वह गरीबों के लिए काम करती है। फिर कांग्रेस अध्यक्ष के पास एक करोड़ की संपत्ति क्यों हो? इस पर पाँचों सकते में आ गए। जवाब बाईं ओर एकदम किनारे बैठे ने दिया, 'लगता है, आप अखबार भी नहीं पढ़ते। पढ़ते होते, तो आपको मालूम होता कि जयललिता के पास चौबीस करोड़ रुपए की संपत्ति है। करुणानिधि के पास बाईस करोड़ की संपत्ति है। मायावती के पास पता नहीं कितना होगा। पर आपसे इस बहस में क्या पड़ना। कुछ देना हो तो दीजिए, नहीं तो हमारा समय मत खराब कीजिए।'
मेरे गरीब-से चेहरे पर असमर्थता के भाव पढ़ कर उनमें जो सबसे बुजुर्ग था, वह बोल उठा, 'छोड़िए, आपको कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। बस आप इस रसीद पर साइन कर दीजिए। आपकी ओर से दस हजार रुपए की रकम हम भर देंगे।'
राहत का अनुभव करते हुए, अपने जीवन में मैंने पहली बार महसूस किया, कांग्रेस के हृदय में गरीबों के प्रति सचमुच कितनी हमदर्दी है।