एक किताब और 100 सवाल / जयप्रकाश चौकसे

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एक किताब और 100 सवाल /
प्रकाशन तिथि : 24 सितम्बर 2018


अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित पुस्तक का नाम है 'द लॉन्ग टेक' और लेखक हैं रॉबिन रॉबर्टसन पुस्तक के कुछ अंश गद्य में, कुछ पद्य में तथा कुछ स्थानों पर फोटोग्राफ लगे हैं। इन स्थानों पर कोई इबारत नहीं है अर्थात लेखन की जगह छायाचित्र हैं। इस तरह आप किताब पढ़ते भी हैं और कुछ अंश देखते भी हैं । मुद्दे की बात अभिव्यक्ति है और अंदाजे बयां कुछ जुदा-सा है। सारा मामला अभिव्यक्ति का ही है। लेखन का आविष्कार होने के बाद से दुनियाभर के देशों में प्रचुर लेखन हुआ है और शायद ही कोई विषय ऐसा बचा हो जिस पर कुछ लिखा नहीं गया है। ऐसे में रचनाकार के सामने अभिव्यक्ति की शैली अथवा शिल्प ही शेष रहता है। उसे ऐसी शैली में लिखना होता है, जो श्रोता या दर्शक तक न सिर्फ कथ्य पहुंचाए बल्कि उसे आकर्षित भी करे।

चर्चित पुस्तक की कथा की पृष्ठभूमि दूसरा विश्व युद्ध है। विश्व युद्ध पर किताबें लिखी गई हैं। फोटोग्राफ भी हंै और अनेक फिल्में भी बनी हैं। छायाचित्र का प्रभाव लिखी हुई इबारत से अधिक पड़ता हैै। चलचित्र और अधिक कहते हैं। पद्य का प्रभाव गद्य से अधिक होता है। रामायण, महाभारत, बाइबिल इत्यादि धार्मिक ग्रंथ भी पद्य ही हैं। यही वजह है कि दुनियाभर के महत्वपूर्ण ग्रंथ पद्य में ही लिखे गए हैं। ग्रंथालयों व पुस्तकालयों में आग लगाने के बाद भी इस तरह की रचनाएं इसलिए बच गई, क्योंकि पद्य में होने के कारण वह लोगों की जुबान पर थीं। एक कमसिन उम्र की बाला एन फ्रेन्क की डायरी भी प्रकाशित हुई है।

मार्गरेट बर्क व्हाइट नामक महिला ने गांधी जी की दांडी यात्रा और उनके संघर्ष के अनेक चित्र लिए हैं। चरखे के साथ गांधीजी का मशहूर फोटो भी उन्होंने ही गांधीजी के अंतिम दिनों में लिया था। फिल्म्स डिवीजन के पास मौजूद एक दर्जन से अधिक वृत्त चित्रों से भी हमें आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाई का पूरा ब्योरा मिलता है। ज्ञातव्य है कि उन दिनों यह संस्था अंग्रेजों के अधीन थी। सर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' ने अनेक पुरस्कार जीते थे और अंग्रेज अभिनेता बेन किंग्सले ने गांधी की भूमिका अभिनीत की थी। अभिनय के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने चरखा चलाने का अभ्यास किया और उपवास भी किए। उपवास का अनुभव करना गांधी को समझने के लिए जरूरी है। भारत को समझने के लिए भी भूख को समझना जरूरी है। विकास के मार्ग पर अग्रसर भारत में 20 करोड़ लोग बिना भोजन पाए ही सो जाते हैं। भूख उन्हें बड़े प्यार से पाल रही है।

स्टेनो टाइपिस्ट शॉर्ट हैंड में कही गई बात को संकेत भाषा में लिखता है, फिर उसे पढ़कर टाइप करता है। कम्प्यूटर ने बहुत कुछ बदल दिया है। आज आप वॉइस कमांड देते हैं और यंत्र आपकी आवाज पहचानकर काम करना शुरू करता है। उम्रदराज व्यक्ति के दांत निकाले जाने पर आवाज में कुछ परिवर्तन होता है और वॉइस कमांड का यंत्र काम नहीं करता। उम्र होने पर उंगलियों के निशान भी बदल जाते हैं परंतु आज पग-पग पर अपनी पहचान सिद्ध करनी होती है। इतनी बार तो विदेश में पहचान पत्र की जांच नहीं होती अपने ही देश में परदेसी भये।

बुकर प्राइज का सम्मान इसलिए भी है कि नामांकित किताबों की मांग भी बाजार में बढ़ जाती है। पुरस्कृत किताबें 'बेस्टसेलर' हो जाती हैं। काबिले गौर यह है कि दूसरे विश्व युद्ध पर अनगिनत किताबें, उपन्यास, कविताएं लिखी जा चुकी है और फिल्में बन चुकी हैं। हिटलर का उदय और शीर्ष पर पहुंचने की पूरी बात 'द राइज एंड फॉल ऑफ थर्ड राइख' नामक किताब में प्रस्तुत है। अब युद्ध प्रारंभ होने के लगभग 80 वर्ष पश्चात इस किताब में क्या कुछ नया प्रस्तुत हुआ है कि इतने बड़े पुरस्कार से नवाजे जाने की संभावना सामने है। इस तरह के युद्ध टाइटैनिक की तरह डूबे हुए जहाज हैं और लेखक एक गोताखोर की तरह समुद्र तल में पड़े जहाज का कोना कोना छान रहा है। क्या वह किसी संभ्रांत कुल की रोज़ और एक आम आदमी की प्रेम कथा के सूत्र खोज रहा है? क्या इस किताब को पढ़कर तीसरा युद्ध टाले जाने में मानवता को सहायता मिलेगी? दूसरे विश्व युद्ध में यहूदियों पर किए गए अमानवीय अत्याचारों के कारण ही युद्ध के बाद यहूदियों ने अपने देश की मांग की तथा अमेरिका और इंग्लैंड के प्रयास से इजराइल की स्थापना हुई।

इस प्रयास में फिलीस्तीनी लोगों के साथ अन्याय हुआ। हजारों वर्षों से रहने वाले लोगों को खदेड़ दिया गया जैसे आज भारत के एक प्रांत में किया जा रहा है। इजरायल के जन्म से ही फिलीस्तीनी लोगों ने 'छापा मार युद्ध' छेड़ा और आतंकवाद का पुनरागमन हुआ। आज आतंकवाद बड़ी समस्या बन चुका है। मनुष्य को महज मनुष्य होने मात्र के बाद उससे किसी और पहचान की मांग घातक सिद्ध हो सकती है। क्या पगड़ी किसी की पहचान है या दाढ़ी किसी का चरित्र है ? 'आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं' फिल्मी गीत है। नस्ल, रंग, कौम इत्यादि से मनुष्य को पहचानना गैर वैज्ञानिक है ढंग है। मनुष्य का मूल्यांकन उसकी विचार शैली से किया जाना चाहिए।