एक कोई और (सामान्य परिचय) / अमरीक सिंह दीप
समीक्षा: कृष्ण कुमार अग्रवाल
वरिष्ठ कथाकार अमरीक सिंह दीप वरिष्ठ कथाकार हैं। उनके अब तक पांच कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके सद्य प्रकाशित कहानी-संग्रह ‘एक कोई और’ में प्रकाशित कहानियों में उनके कथ्यों की परिपक्वता तथा शिल्प की सुगढ़ता दर्शनीय है।
इन कहानियों को पढ़ते हुए एक चीज शिद्दत से महसूस की जा सकती है कि लेखक के सरोकार बुनियादी समस्याओं से जुडे हैं। लेखक की संवेदना और अनुभूति समाज के उपेक्षित, पीड़ित तथा शोषित वर्ग की गरीबी तथा भुखमरी को रेखांकित करती है। इंसानियत के गिरते मूल्यों तथा बेबस आम आदमी के अपराधिक गतिविधियों में संलग्न होने का कारण हमारी सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक तथा धार्मिक विसंगतियां व असमानताएं हैं। लेखक भुखमरी और गरीबी को सभ्यता और संस्कृति की रीढ़ को तोड़ने वाली बीमारी बताते हैं। ‘विलाप’ का गरीब मजदूर जो गर्मी में सिर पर ईंटें ढो-ढ़ोकर अपनी बेटी के गौने के लिए पांच सौ रुपये इकट्ठे कर मनीआर्डर करने आया है और फार्म भरने के नाम पर एक भद्रपुरुष द्वारा लूट लिया गया है। ‘कसाई’ कहानी का तीन बिन ब्याही जवान बेटियों का बेबस बाप उनका पेट भरने के लिए चोरी करते हुए पकड़ा जाता है और एक धुनी पुरुष के हाथों अधमरा कर दिया जाता है।
इक्कीसवीं सदी के संक्रमित मूल्यों और संस्कारों को लेखक ‘हरम’, ‘एक गिद्ध वेदना’, ‘मिट्टी’ आदि कहानियों में उकेरता है। मनुष्य के स्वार्थीपन के कारण रिश्तों का दम घुटने लगा है और समाज विभिन्न दायरों में बंटकर हिंसा तथा भय का शिकार है। हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक विद्वेष तथा 1984 के सिख विरोधी दंगों को मार्मिकता और सजीवता के साथ इन कहानियों में अनुभव किया जा सकता है। इनसानी सभ्यता के बेहद बर्बर चेहरे को नंगा करने में लेखक ने जिस बेबाकी का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है। लेखक किसी विशेष दल और विचारधारा के अंधानुकरण की अपेक्षा तथ्यों तथा तर्कों के साथ सांप्रदायिकता तथा धार्मिक हिंसा के सच को बयान करता है। ‘तीसरा रंग’, ‘लिफ्ट’ तथा ‘पहचान’ शार्षक कहानियों में लेखक राजनीति द्वारा धर्म को भड़काकर इंसानी रिश्तों के मध्य तनाव पैदा करने तथा अपने नापाक इरादों को पूरे करने के षड़यंत्र को चित्रित करता है।
इन कहानियों को लेखक की संवेदना की गहराई, अनुभूति की सच्चाई और अभिव्यक्ति का बेबाक प्रहार विशिष्ट बना देता है। वर्तमान समय में लिख रहे कथाकारों के बीच, जब विभिन्न विमर्शों के शोर-शराबे में हिन्दी साहित्य नारेबाजी में जुटा है, ऐसे समय में एक वरिष्ठ अनुभवी कथाकार का महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन विश्लेषण मायने रखता है। लेखक की अभिव्यक्ति आम आदमी की पीड़ा, सांप्रदायिक तथा वर्गीय संघर्ष, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लूट, पर्यावरण संरक्षण, अपराधी-राजनेता-पुलिस-प्रशासन और धार्मिक तथा सामुदायिक नेताओं की सांठ-गांठ सभी मुद्दों पर तटस्थता तथा निष्पक्षता के साथ बेबाक राय जाहिर करती है।
- सौजन्यः कृष्ण कुमार अग्रवाल
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय,कुरुक्षेत्र, 1163, सेक्टर-13, कुरुक्षेत्र-136 118,