एक गाल पर थप्पड़ पड़े तो दूसरा प्रस्तुत है / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :31 जनवरी 2017
जयपुर में फिल्मकार संजय लीला भंसाली को उपद्रवी द्वारा मारे गए थप्पड़ की गूंज मुंबई फिल्म नगरी में सुनाई दे रही है, परंतु किसी राजनेता को थप्पड़ मारा जाता को गूंज संसद में होती। बताया जाता है कि 'पद्मावती' की शूटिंग राजस्थान में तीन किश्तों में पचास दिन तक होने वाली थी और ऑउटडोर में औसतन तीन लाख रुपए प्रतिदिन निर्माता खर्च करता है गोयाकि करोड़ों रुपए अब राजस्थान में खर्च नहीं होंगे। इस तरह राजस्थान के व्यापार में यह रकम शामिल नहीं हो पाई, परंतु अरबों रुपए का नाश करने वाली सरकार को इतनी छोटी रकम से कोई फर्क नहीं पड़ता। इतनी रकम तो नेता-अफसर प्रतिदिन खा जाते हैं। संजय लीला भंसाली को भव्यता रचने का जुनून है और वे सेट लगाकर 'पद्मावती' पूरी कर लेंगे। आज निर्माता की पूंजी उसकी अपनी प्रतिभा और सितारों का उस पर विश्वास होता है। भंसाली को रनवीर सिंह और दीपिका पादुकोण का विश्वास प्राप्त है। अत: हुड़दंगी उन्हें कोई स्थायी नुकसान नहीं पहुंचा सकते।
इस थप्पड़ प्रकरण को मात्र लक्षण माना जाना चाहिए। असली बीमारी तो यह है कि पूरे देश में ही कानून-व्यवस्था ठप हो चुकी है। आज हालात किसी अनाम तानाशाह के नाम भेजे जा रहे निमंत्रण-पत्र की तरह हैं कि आप सफेद घोड़े पर हाथ में हंटर लेकर आइए और हमारी बेशर्म पीठ पर बरसाइए। हम पुन: गुलाम होने के लिए बेकरार हैं, क्योंकि सदियों की गुलामी के कारण हमारे सामूहिक अवचेतन में शोषित होते रहने के लिए बड़ी बेकरारी है। अदूर गोपालकृष्णन की एक फिल्म में क्रांति के सफल हो जाने के बाद गुलाम के हाथ में तलवार है और शोषक जमींदार निहत्था और लाचार जमीन पर पड़ा है, परंतु गुलाम तलवार फेंक देता है, क्योंकि उसके अवचेतन पर गुलामी का अधिकार जमा हुआ है।
आज हर शहर की गली के नुक्कड़ पर कोई न कोई दादा बैठा है। गांव में दो किसानों के बीच ज़मीन के छोटे से टुकड़े के मालिकी अधिकार का विवाद है और वे पुलिस थाने जाते हैं तो उनसे कहा जाता है कि गांव में एक विशेष राजनीतिक दल का दफ्तर है, वहां जाकर न्याय प्राप्त करो गोयाकि एक समानांतर सरकार सक्रिय है। एक नया निज़ाम धीरे-धीरे विकसित हो रहा है और यह पल अराजकता के सूर्य के उगने के पहले आसमान पर छायी लाली की तरह है। उफ़क पर खड़ी अराजकता कुछ ही समय में सब जगह छा जाएगी। इस प्रकरण को एक पत्रकार ने विवरण देते समय संजय लीला भंसाली की 'पद्मावत' को मलिक मोहम्मद जायसी का उपन्यास बताया है, जबकि यह महाकाव्य है। हमारी विषाक्त शिक्षा प्रणाली अजीबोगरीब पढ़े-लिखे लोग बना रही है। संजय लीला भंसाली जायसी का पद्मावत नहीं बना रहे हैं, वे एक इतिहास प्रेरित काल्पनिक फिल्म बना रहे हैं। मुगल दरबार में कभी कोई अनारकली नहीं हुई, परंतु 'मुगल-ए-आजम' की सफलता बताती है कि 'अफसाने कैसे हकीकत में बदलते हैं'। भंसाली की 'पद्मावती' उनकी 'रामलीला' की अगली कड़ी मानी जा सकती है। इसे 'रामलीला' का भाग दो नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह फिल्म भंसाली की अन्य फिल्मों की तरह उनके अपने जलसाघर का एक और अतिरेक भरा तमाशा होगा, जिसमें साधनों का 'जौहर' होगा। वे कभी 'वेडनेस-डे', 'विकी डोनर' या 'पानसिंह तोमर' नहीं बनाएंगे।
हर फिल्मकार या अन्य क्षेत्र का सृजक अपनी अभिरुचियों और शिक्षा दीक्षा के अनुरूप ही रचना करता है। प्रतिभा की एक परम्परा है और सृजनशील व्यक्ति सदियों से चली आ रही उस परम्परा से प्रेरणा ग्रहण करता है और अपने व्यक्तिगत योगदान से उस परम्परा को ही समृद्ध करता है।
जयपुर में हुड़दंगियों द्वारा 'पद्मावती' की शूटिंग रोकना और भंसाली को थप्पड़ मारना हमारे भारत महान के वर्तमान की पहली और आखिरी घटना नहीं है। ज्ञातव्य है कि प्रसिद्ध फिल्मकार दीपा मेहता अपनी फिल्म 'वॉटर' की शूटिंग के लिए बनारस गई थीं और वहां हुड़दंगियों ने शूटिंग नहीं होने दी थी, क्योंकि फिल्म में भारतीय विधवाओं की करुण दशा प्रस्तुत की जा रही थी। उस समय महान भारतीय संस्कृति के एक स्वयंभू रक्षक ने विरोध स्वरूप गंगा में कूदकर प्राण दे दिए थे। इस बलिदान के बाद सरकार ने शूटिंग नहीं होने दी। ज्ञातव्य है कि उन दिनों केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। दीपा मेहता ने अपनी फिल्म की शूटिंग श्रीलंका में की। दीपा मेहता 'फायर' व 'द अर्थ' नामक फिल्में बना चुकी थीं और नारी उत्पीड़न पर अपनी फिल्म त्रयी पूरी करने के लिए 'वॉटर' बनाना चाहती थीं। बनारस में हुड़दंग के कारण उन्हें आर्थिक नुकसान भुगतना पड़ा तथा श्रीलंका में बनारस के घाट का महंगा सेट भी लगाना पड़ा। दीपा मेहता की सुपुत्री देवयानी ने इस विवाद पर किताब लिखी है, जिसे पेन्गुइन प्रकाशन ने वर्ष 2006 में भारत के पाठकों के लिए प्रकाशित की। किताब का नाम है 'शूटिंग वॉटर'। जिस व्यक्ति ने बनारस में दीपा मेहता की फिल्म शूटिंग के विरोध स्वरूप गंगा में डूबकर अपना 'बलिदान' दिया था, वही व्यक्ति एक अन्य जुलूस को रोकने के लिए मोटर कार के सामने लेट गया था और कालातंर में मालूम पड़ा कि इस तरह की रुकावट पैदा करना उसका व्यवसाय है और उसे हुड़दंग के लिए धन दिया जाता था। अपनी 'मृत्यु' की प्रायोजित नौटंकी उसका व्यवसाय है। भारत में अनगिनत बेरोजगारों के लिए यह 'व्यक्ति' खतरनाक और शर्मसार करने वाला रास्ता बताता है।
दीपा मेहता को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख से मिलने को कहा गया था और उनकी पटकथा पर वहां विचार भी किया गया था गोयाकि नेता साहित्य व सिनेमा क्षेत्र के जानकार माने जाने चाहिए। इसलिए पहलाज निहलानी लाख विरोध के बाद भी सेन्सर प्रमुख हैं और पुणे फिल्म संस्थान के मुखिया महाभारत सीरियल के अभिनेता रहे हैं। अत: काबिलियत के नए मानदंड स्थापित हो रहे हैं, क्योंकि नट सम्राट सत्ता शिखर पर विराजमान हैं।