एक गृहस्थ रोॅ संन्यास ग्रहण / धनन्जय मिश्र
डॉ नरेन्द्र मिश्र यानी डाक्टर साहेब रोॅ नाम मनोॅ में स्मरण होतै ही कत्ते नी बातों रोॅ स्मरण आवी जाय छै आरोॅ मोॅन बेचैनी में चल्लो जाय छै। कैन्हें की हुनका साथै ऐतनै नी याद जुड़लो छै की यादो बेचैन होयके सोचे लागै छै। है बात नै छै कि हुनका सें हम्में शुरूवे सें जुड़लोॅ छेलियै। हुनी हमरा सें नै बेसी तॉ लगभग पन्द्रह से बीस सालो रोॅ बड़ो छेलै। है बातोॅ सच छै कि हुनी हमरे गाँव ओड़हारा, बांका के रहै। हुनी बापोॅ रोॅ गुजरला के बाद जबेॅ गाँव में ऐलो रहै तॉ हौ समय हम्में बीॉएसॉसीॉ फाइनल में पढै छेलियै। हमरा याद छै कि हुनका देखैलॉ सौसें गामों रोॅ लोग हुमड़ी पड़लोॅ रहै हुनको दुआरी पर। वै में हम्मु छेलियै। मतरकि की मजाल कि हुनका सट्टी के देखबै। हुनका हम्में दुरै सें देखी कॉ है अनुमान लगैलियै कि झकझक गोरोॅ सामान्य कद-काठी केॅ हट्टो-कट्ठोॅ, मिलनसार डाक्टर साहेब छेकै। हुनी सत्तरह सालोॅ रोॅ बाद घुरी केॅ इंगलेन्डो से ऐलौ रहै अपनोॅ मांटी में रहैला। पृष्ट भूमि जे रहै।
समय साथै समय बढ़लो गेलै। हुनी सभ्भे काज सलटाय केॅ फेरू इंगलेन्ड घुरै के मोह के कसमकस में पड़ी केॅ ओझराय रहलोॅ छेलै कि तखनिये हुनको चाचा जी बोली उठलै-"नरेन की सुनै छिहौ कि तोहें फेरू इंगलेन्ड जॉल चाहै छौ की?" एै पर डाक्टर साहेब कोय मांकुल जवाब नै दैल पारलकै। हुनि मौन होय गेलै। यै पर चाचा जी फेरू बोललै-"देखो नरेन, जब तॉय बाप छेलौ तोहेॅ वहाँ डॉक्टरी रोॅ नौकरी करै छेलॉ तॉ कोय बात नै छेलौ आवेॅ परिदृश्य बदली गेलोॅ छै। तोहेॅ घरोॅ रोॅ बड़ो छौ। है आपनोॅ जमींदारी रंग साम्राज्य रोॅ देख-रेख के करतौ। आबे तोरोॅ छोटो भाय आरू बाल-बच्चा के दायित्व भी तोराह निभाय पड़तौ। है नै हुए कि तोरा जैइतै ही ई सब रन्ह-भन्ह होय जाय। है गुढ़ दायित्व कॉ समझो। फेरू तोरो मरजी." चाचा जी रोॅ है कर्त्तव्य बोध सुनथै ही डाक्टर साहेब बोललै-"चाचा जी, हम्में आवे फेरू घुरी के इंगलेन्ड नै जैबै। याँही आपनोॅ माँटी पर रही के माँटी रोॅ ऋण चुकैवै आरोॅ बाबु जी के इलाका रोॅ लेली उत्तर दायित्व के आदेश चुकावै के यहाँ नीको समय छै।"
समय चक्र खिसकी रहलोॅ छेलै आरो खिसकै के क्रम में ही इलाका रोॅ लोगों ने हैं जानलकै कि आवेॅ डाक्टर साहेब फेरू घुरी के इंगलेन्ड नै जैतै आरोॅ आपनो पुस्तैनी मकान पुनसिया में ही डाक्टरी सेवा शुरू करतै। हैं जानी के सौसें इलाका रोॅ लोगों में खुशी समाय गेलै। है बात नै छेलै कि इलाका में आरू कोय डाक्टर नै छेलै, मतुर डाक्टर साहेब रोॅ बारे में सोलह-सत्तरह बषोॅ तक विलायत में डाक्टरी सेवा में महारथ हासिल रोॅ बाद इलाजोॅ में सटीकता के अनेक चर्चा सुनी केॅ लोगों में उत्साह आरू उमंग स्वाभाविके छेलै। सादा भोजन उच्च विचार हुनको मूलमंत्र रहै। आपनोॅ क्रिया-कलापोॅ से थोड़े दिनों में हुनी इलाका में चर्चित होय गेलै। साधारण सूती कपड़ा रोॅ बाँह भरी के कुरता आरोॅ धोती हाथों में छाता लै कॉ जबेॅ हुनी घरोॅ से निकलै रहै तॉ देखी के लोगों केॅ दिकासोॅ छुटी जाय कि ऐत्ते बड़ोॅ डाक्टर के है वेष भुसा, आरोॅ लोगों केॅ नजरो में डाक्टर साहेब रोॅ लेली आरू मान-सम्मान बढ़ी जाय छेलै। कैन्हैं कि लोगों रोॅ नजरोॅ में डाक्टर रोॅ लेली जे छवि बनलोॅ रहै होकरा सें एकदम उल्टा।
डाक्टर साहेब एक सरल इन्सान रहै। गरीब-गुरूआ रोॅ लेली हुनकोॅ मनोॅ में अपार ममता रहै। जेतना होॅल पारेॅ हुनी मदद करैल तैयार रहै। हुनि आपनोॅ डिसपेन्सरी में कम्पौन्डर के शक्त हिदायत देने रहै कि रोगी सें पहिने डाक्टरी फीस नै लेवॉ। रोगी केॅ देखला रोॅ बादे हम्में जे चिट्ठा पर संकेत देभौ तभिये तोरा सिनी फीस लेभो। आरोॅ है वादा हुनी अंत तक निभैलकै। हुनि पहिने तॉ आपनोॅ रोगी के देखैकॅ फीस एकदम साधारण ही राखनेॅ रहै आरोॅ फेरू रोगी रोॅ वेष भुसा देखी केॅ फीस के संकेत दै रहै कैन्है की हुनको तॉ मनोॅ में पैसा कमाय से कम आरोॅ सेवा रोॅ भाव बेसी रहैै। है बात हुनको डिसपेन्सरी सें निकली केॅ जन साधारण में फैली गेलो छेलै कि डाक्टर साहेब फीसोॅ से कम फीस लै छै आरो केकरौ-केकरौ से तॉ फीसे नै लै छै। हेकरो लाभ कोय-कोय गलतो फरेबी बनी केॅ लै भी छेलै। है बात जबे डाक्टर साहेब सुनै छेलै तॉ हुनि खाली मुस्काय दै छेलै।
डाक्टर साहेब मृदु भाषी आरो सहनशील रहै। है गुनोॅ से कत्ते नी रोगी तॉ हुनको रोगोॅ के बारे में मिट्ठो बोलिए सुनी के आधो रोगों सें चंगा होय जाय छेलै। हमरा याद छै हुनको बारे में एत्ते मिट्ठोॅ-मिट्ठोॅ बात सुनी के जबे हम्में हुनका सें पहिलो मुलाकात करने छेलियै तॉ हुनि हमरो आँखी रोॅ भाषा समझी के हमरा इशारा से पास बोलाय कॉ पुछने रहै कि तोहें के! है सुनी के हम्में रोमान्चित होयके हुनको गोड़ छुबी के प्रणाम करलियै आरो हकलाय के कहने छेलियै हम्में सहदेव मिसर रोॅ बेटा 'धन×जय' छेकियै। हम्में ऐखनी हाई स्कूल फुल्लीडुमर, बांका में विज्ञान शिक्षक रोॅ पदो पर काज करै छियै। है सुनी के हुनि बोललौ रहै-बहुत बच्छा! मनोॅ से काज करोॅ। हौ दिनों सें हम्में हुनको पाठशाला रोॅ नियमित छात्र भै गेलियै। हुनि जबे पुनसिया सें घोॅर आवै छेलै तॉ हुनको दुआरी पर सुबह-शाम महफिल नांकी दृश्य होय जाय छेलै। हुनि हर छोटो-बड़ो आय-जाय वाला कॉ हाल-चाल पुछवे करै छेलै आरोॅ दोस्त मोंही तॉ रहबै करै छेलै।
डाक्टर साहेब परोपकारी रहै। दीन-हीन अभाव ग्रस्थ लोगों के हुनि मददो करै छेलै। हुनि ज़रूरत मंदो लेली गामों में एकटा कोष बनैने रहै। मतुर जबेॅ हौ कोष रोॅ दुरूपयोग होय लागलै आरू बादोॅ में हुनी जानलकै तॉ दुःखोॅ रोॅ साथ हौ कोष के बन्दों करै में ज़रा भी देर नै लागैलकै। हुनका लॉ सब जाति रोॅ लोग बराबर रहै। पर्व-त्योहारोॅ में जें हुनका निमंत्रण दै छेलै हुनी वहाँ ज़रूरे जाय छेलै। हम्में हुनका साथें कत्ते नी विषय पर तार्किक बहसो करेॅ छेलियै। यहीं रंग तकोॅ पर हुनी एक दिन एक टा कहानी सुनैलकै आरू हौ कहानी के तकोॅ पर हम्में यही निष्कर्ष निकालियै कि हुनी धुर्त्ताधिराज, गैर जिम्मेदार आरो घड़ियालु आँशु बहाय वाला सें घृणों र्दसाय छेलै आरो हौ दिन हुनको बेबसी आरो अवसादो से भरलो रहै।
डाक्टर साहेब एक विलक्षण अनुभव के ज्ञाता रहै। हुनका में एक विशेष खाशियत है रहै कि रोगों के बारे में विश्लेषण (डाइग्नोसिस) एतना सटीक रहै कि दोसरो प्रान्तों रोॅ डाक्टर भी दांतों तले अंगुली दवाय छेलै। बिना कोनों जाँच रोॅ रोगी के रोग के कहलाय पर एतना अचुक निर्णय। यहीं लॉ तॉ कम दवाय में ही रोगी चंगा भी होय जाय रहै। हमरा याद छै हमरोॅ एक मित्र रोॅ प्रथम संतान पुत्र होलो रहै। दू-तीन महिना रोॅ जबे हौ बुतरू होलै तॉ स्वांश सम्बंधी कोनो गड़बड़ी दिखाय पड़लै। डाक्टर साहेब के हौ बुतरू के देखलैलोॅ गेलै। हुनी बुतरू केॅ देखी केॅ बिना जाँचे सें हमरो मित्र के कहलकै कि कोय घबड़ाय के बात नै छै। है बुतरू रोॅ दिल में एकटा छोटो-सा छेद छै। होय सकै छै उमर बढ़ला पर है छेद आपनै बंदो होय जाय छै आरो अगर नै बंद हुए तॉ दस-ग्यारह सालो रोॅ बाद हेकरो दिल रोॅ ऑपरेशन से छेद बंद होतै, एखनी ऑपरेशन रोॅ ज़रूरत नै छै। बात सोलो आना सच होलै। है बातों रोॅ जिक्र जबे हमरो मित्र प्रकाश मिसर रोॅ द्वारा भेलोरो रोॅ डाक्टर केॅ बतलैलो गेलै तॉ हॉ डाक्टर आश्चर्य सें चकित छेलै।
डाक्टर साहेब कर्त्तव्य निष्ट आरू अनुशासन प्रिय इन्सान रहै। हुनी सुबह दस बजे सें साढ़े दस बजे तक आपनो दवायखाना ज़रूर ही पहुची जाय छेले। वक्त विशेष रोॅ कोनो बात नै। हुनका यहाँ दूर-दूर सें रोगी आबै छेलै। हुनी आपनो दवायखाना सें है निर्देश देने रहै कि रोगी के यहाँ कोय परेशानी नै हुए. हुनका यहाँ रोगी रोॅ सुविधा लेली एक महीना पहिनै से रोगी रोॅ लाइन लागै छेलै। बै में की मजाल कि हौ दिनों रोॅ लाइन के क्रम में कोय फेर बदल हुए पारे। कत्तो बड़ो से बड़ो (रूतवा) आरोॅ छोटो से छोटो रोगी वहाँ एक समान मानलो जाय छेलै। आपादकाल अपबाद रहै। है लाइन लेली दिशा-निर्देश भी प्रायः सब लोग मानै भी छेलै। मतुर कहियौह अगर है दिशा-निर्देश रोॅ क्रम में टूट होय छेलै आरोॅ डाक्टर साहेब के मालुम होय छेलै तॉ हौ दिन हुनी बेचैन आरो अवसाद ग्रस्त होय छेलै। हेकरो निदानों भी हुनियें निकालने रहै-कि अगर हो दिन रोगी बिना लाइन के आबी गेलोॅ छै तॉ रोगी निश्चित हौय के बैठलोॅ रहै। अंत में हम्में हुनका देखी लेबै। रूतवा आरो पैरवी सें नै। मतरकि है नियम के तोड़ै वाला हमराय सिनी समाज रोॅ ठीकेदार आपनो रूतवा रोॅ मायाजाल सें ग्रसित आँफिसर, समाज के डरायवाला टपोरी सब के हाथ रहै आरो हेकरोॅ खामियाना डाक्टर साहेब आपनोॅ शान्ति भंग करी केॅ भोगै छेलै। है ददोेॅ रोॅ टीस कखनु-कखनु आपनोॅ दुआरी के गोष्टी में हुनका सें निकली जाय रहै। हमरा सिनी अवाक! हुनी कहै रहै कि "लागै छै हम्में है डाक्टरी काज आरो बेसी दिन नै निभाय पारवै।" हमरा सिनी चिन्तित होय के सोचै छेलियै कि है रंग गामों के सुरक्षा चिकित्सा रोॅ कवच तंत्र आवे कत्ते दिन चलतै भगवाने मालिक। हुनका पर हमरा सिनी एतना आत्मनिर्भर छेलियै कि कोय तरह के हल्का से भारी रोगों रोॅ कोय परवाय नै करै छेलियै है सोची के कि डाक्टर साहेब तॉ छेबे करै। अवसादों सें छुटकारा लेली हुनी कत्ते बार पन्द्रह से महीनों तक आपनो दवायखाना बन्दो करने रहै। बलुक समय रोॅ प्रवाह में फेरू खोलियो देने रहै है जानी केॅ कि हमरे उपर चार-पाँच चिकित्सा कर्मचारी रोॅ परिवार के लालन-पालन निर्भर छै। है दायित्व केॅ हुनी निभाय रहलोॅ छेलै। हुनको कर्मचारिहौ है बात जानै छेलै कि कोनो दिन है चिकित्सा रूपी रथ रूकी जैतै।
डाक्टर साहेब कर्म साथे पारिवारिक धर्म भी निभाय रहलो छेलै। यही लेली हुनी सभ्भें सें कहीं देने रहै कि जेकरा भी हमरा से कोय तरह रोॅ काज छौ, खासकरी के चिकित्सा सम्बंधित इलाज या जानकारी लेना रहौ तॉ हमरा से इलाज रोॅ समय में ही पुछो, हमरा कत्तो देरी होतै, फिर भी काज करी देभौ। बाहर होला पर जत्ते होय सकेॅ नै पुछो। बलुक एतना छोटो बात भी समाज रोॅ इज्जतदार, बड़ो रसुलवाला आदमी कहाँ निभाय पारै छेलै। हुनी जबोॅ रात के सात-आठ बजे आपनोॅ चिकित्सा कमरा सें निकली के आवे आराम करे लेली डेरा पर आवै छेलै तॉ डेरा पर दू-चार आदमी के चिकित्सा लेली प्रतिक्षारत देखी केॅ हुनी असहज होय जाय छेलै। मुहों सें तॉ कुछछु नै बोलै, मतुर आव-भाव तॉ बताइये दे छेलै कि आव आरू नै। फेरू हौ इज्जतदारों रोॅ काजोॅ करी दै छेलै।
डाक्टर साहेब मनोरंजन प्रिय इन्सान रहै। ताश, सतरंज हुनको प्रिय खेल रहै। सतरंज तॉ हम्में हुनकाय सें सीखने छियै। समय रोॅ अंतराल पर जबे कोय दिन हम्में हुनका सतरंजोॅ मेंहराय दै छेलियै तॉ हुनी हसी के बोलै रहै कि "आय गुरु गुढ़ आरोॅ चेला चीनी भय गेलै।" हेकरा पर झेपी के हम्में कहै छेलियै नै सर, आपने तॉ जानी बुझी के हारी गेलोॅ छियै। यै पर डाक्टर साहेब बोलै छेलै कि नय तोहे आबै अच्छा खेलै छौ। यै पर हमरोॅ मोॅन गदगद होय छेलै। एतना सरल इन्सान तॉ हुनी सौ में एक रहै। हमरा याद छै हुनी सुनाबै छेलै कि जबे हुनी आर्जीकार मेडिकल कॉलेज, कोलकत्ता में पढ़ै रहै तॉ प्रायः कॉलेजो में आयोजित होय वाला हर प्रतियोगिता में भाग लै छेलै आरोॅ कोनोॅ ना कोनोॅ मेड़ल जीततै छेलै। हम्में आर्श्चजो सें तखनी भरी गेलियै जखनी हुनी है सुनैलकै कि हम्में कॉलेजों में आपनोॅ क्लाशोॅ के फुटबॉल रोॅ कप्तान छेलियै। हुनी कॉलेजों में इन्टर क्लाश सतरंज चेंम्पियन सीप में भाग लैकेॅ चेंम्पियन बनलो रहै आरोॅ शारीरिक सौष्टभ प्रतियोगिता में भाग लैकेॅ हुनका एक उपाधि मिललो रहै जेकरोॅ नाम 'मुस्टिका नंद महाराज' रहै। हुनी आपनोॅ कॉलेज रोॅ विद्यार्थी परिषद युनियन के भाइस प्रेसिडेन्ट भी रहै। एतना गुणी इन्सान रोॅ याद ऐवो तॉ स्वाभाविके छै।
डाक्टर साहेब गप्पो आरोॅ हॅस-गुल्ला रोॅ साक्षात प्रतिमूर्ति रहै जें हुनका खास सें महाखास बनाय रहै। हुनको अनुभव के पेटारी से है रंग घटलोॅ गप्प निकलै रहै कि सुनै बाला लोग सम्मोहित होयकॉ सुनतै रहै छेलै आरो हँसतेे-हँसते लोट-पोट होयकेॅ की मजाल कि वहाँ सें कोय हिलैल पारेॅ। हुनी रं-रं के अनुभव रूपी गप्पों रोॅ भंडार छेलै, आरोॅ नै जाने कि हुनको हौ गप्पोॅ रोॅ तरकश में आरोॅ कत्ते तीर भरलो रहै। मतुर एतना सरल इन्सान के भी आपनोॅ सिद्धान्त के एक सीमा रेखा छेलै आरोॅ हौ सीमा रेखा कॉ अगर कोय बार-बार अतिक्रमण करै लॉ चाहे तॉ कोय केतना सहै लॉ पारेॅ। हुनियोॅ है सिनी सें उबी गेलोॅ रहै मतुर केन्हौ केॅ काज चली रहलो रहै।
एक दिन हुनी आपनोॅ दवायखाना में रोगी के देखै में व्यस्त रहै। ठीक वही समय बाहर में हुनका कुछछु शोर-गुल सुनाय पड़लै। वहीं समय हुनको कम्पोन्डर सुनील मिश्र ने आबी के बतैलकै-"सर! एक पुुलिस अफसर आबी के एखनी दिखाय देॅ के जिद पकड़ी लेने छै आरो बेमतलब रोॅ बात बोली रहलो छै।" हुनी हैं सुनी के असहज भै गेलै। हुनी बाहर आबी के हौ अफसर के समझैलकै-"तोरा इमरजेन्सी नै छौ, है हम्में जानै छियै। तोहेॅ लौटी के संध्या बेला में आबोॅ, हम्में तोरो जाँच करी लेभौ। हमरोॅ सिस्टम नै तोड़ो।" हुनको है रूप देखी के अफसर तॉ मानी गेलै, मतुर डाक्टर साहेब है मानैलॉ तैयार नै होलै कि आवे आरो नय। हद सें अनहद होय गेलै। बही दिन हुनी आपनोॅ कर्मचारी के हेदायत देलकै कि आबे से आगु रोगी सिनी रोॅ नामांकन नै करभेॅ। जत्ते रोगी नामांकित छै होकरा देखला रोॅ बादे आगु देखलो जइतै।
है सुनी के कर्मचारी तॉ जानिये गेलै कि आबे है चिकित्सा रूपी रथ रूकी गेलै। सौसें इलाका में है गदाल होय गेलै कि आबे डाक्टर साहेब रोगी के नै देखतै। हुनका पर कत्ते दवाबो देलो गेलै बलुक हुनी आपनो निर्णय पर अड़िग रही केॅ गुरूधाम, बौंसी में एक गृहस्थ चिकित्सक से योगी बनी के संन्यास लै लेलकै। हौ महान आत्मा कॉ हमरोॅ आरोॅ गाँव तरफो से श्रद्धा सुमन रोॅ दू पुष्प सादर समर्पित छै।