एक गॉडफादर की हत्या की पहेली / जयप्रकाश चौकसे

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एक गॉडफादर की हत्या की पहेली
प्रकाशन तिथि :14 अगस्त 2015


महेश भट्‌ट की निर्देशित और टी सीरिज के संस्थापक गुलशन कुमार की 'आशिकी' के प्रदर्शन को पच्चीस वर्ष हो गए हैं। इसका मधुर व लोकप्रिय संगीत नदीम-श्रवण ने दिया था। गुलशन कुमार ने अनेक युवा गायकों को बढ़ावा दिया। सुना जाता है कि आज के शिखर गायक सोनू निगम ने हजारों वर्जन गीत रिकॉर्ड किए हैं। यह वर्जन रिकॉर्डिंग उस दौर के लुंज-पुंज कॉपीराइट से बचने की कानूनी पतली गली थी कि मूल रचना में मात्र एक वाद्य-यंत्र बदलने या सुर को किंचित ऊपर-नीचे करके रिकॉर्ड किए गीत पर संगीत चोरी का आरोप नहीं लग सकता। इस गली से गुजरकर कई लोगों ने करोड़ों रु. अर्जित किए और मूल सृजनकर्ता को कुछ नहीं मिला। गुलशन कुमार ने रवींद्र पीपट के निर्देशन में संगीतमय 'हवा में उड़ता जाए दुप्पटा' फिल्म बनाई, जिसकी असफलता का मखौल उड़ाने वालों को गुलशन ने बताया कि उस फिल्म के मधुर संगीत से उन्हें अपनी लागत पर दस गुना लाभ मिल चुका है।

गुलशन के अभ्युदय के पहले दशकों तक एचएमवी कंपनी का फिल्म संगीत पर एकछत्र राज था। बाद में पोलीडोट का उदय हुआ और अस्त भी जल्दी हो गया। गुलशन ने निर्माताओं को भारी अग्रिम राशि देने की बात की और धन के अभाव से जूझते निर्माताओं ने गुलशन कुमार को आउट राइट आधार पर संगीत दे दिया। गुलशन ने उन दिनों आए महंगे 'टू-इन-वन' के सस्ते संस्करण बनाकर भारत के ग्रामीण क्षेत्र में खूब बेचे और सस्ते कैसेट भी उपलब्ध कराए। उन दिनों एचएमवी के कैसेट पचास रु. में मिलते थे। गुलशन अपने कैसेट दस रु. में बेचते थे। उन्हीं दिनों अनुराधा पौडवाल द्वारा गाए भजनों के हजारों कैसेट खूब बिके। गुलशन की सफलता से प्रेरित 'वीनस' और 'टिप्स' बाजार में आई और कुछ वर्षों तक गुलशन की आंधी के सामने टिकी रही परंतु दुकान बंद होने तक उनके पास इतनी फिल्मों के संगीत अधिकार थे कि आज वर्षों बाद भी वार्षिक कमाई बीस करोड़ से कम नहीं है। इससे गुलशन की कमाई और एचएमवी की असीमित आय का अनुमान लगा सकते हैं। गुलशन का उदय धूमकेतु की तरह हुआ परंतु 1997 में उनकी नृशंस हत्या कर दी गई। इस हत्या के लिए संगठित अपराध को दोष दिया गया परंतु यह भी कहा गया कि संगीतकार 'नदीम' ने उनकी हत्या की 'सुपारी' दी थी, जिसका अर्थ है कि अपराध जगत को उन्हें मारने का ठेका दिया गया था। अपराध जगत की शब्दावली विचित्र है, जैसे सुपारी, इलायची, लंगड़ा, टकला इत्यादि। इस 'सुपारी' देने का शक नदीम के साथ 'टिप्स' के मालिक पर भी था और उन्हें गिरफ्तार किया गया परंतु सघन पूछताछ में वे निरअपराध पाए गए। उन दिनों नदीम लंदन में थे और उन्हें भारत लाने के प्रयास असफल हो गए। मुंबई हाईकोर्ट ने 2002 में नदीम को निर्दोष पाया परंतु वे भारत नहीं आए और विगत वर्षों में लंदन और दुबई उनका कार्यक्षेत्र है। संगीतकार अब खुशबू बेचने का व्यवसाय कर रहा है। उनकी पत्नी उनके साथ है परंतु वृद्ध मां-बाप भारत में ही हैं और उनके पार्टनर श्रवण भी भारत में ही हैं।

उनके मन में स्वदेश आने की तड़प है परंतु उनका कहना है कि गुलशन की हत्या के बाद वाले दिनों में उनकी मां ने कहा था कि वह भारत न आए, क्योंकि यहां उसे फंसा दिया जाएगा। वे मां से दिए गए वचन से बंधे हैं। यह बात आधारहीन भले ही हो परंतु कुछ लोगों का दृढ़विश्वास है कि भारत में कुछ लोगों को कभी न्याय नहीं मिलता। भारत की जेलों में शक के आधार पर अनगिनत युवा कैद हैं और वर्षों बाद भी उनकी चार्जशीट दाखिल नहीं हुई। वहीं 42 हत्याओं के दोषी पच्चीस वर्ष के मुकदमे के बाद सरकारी लोग निर्दोष पाए गए। आश्चर्य की बात यह है कि सारे आरोपी नौकरी में बहाल रहे और अदालत द्वारा िनर्दोष पाए जाए पर उन्हें पेंशन, ग्रेचुइटी अनेक लाभ दिए गए। उन 42 लोगों के साथ ही दो लोगों को और गोली मारी गई थी, वे किसी तरह बच गए और उन्होंने अपराधियों की शिनाख्त भी की परंतु जाने किस पतली कानूनी गली से वे छूट गए। दूसरी ओर आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न कुछ लोगों के मुकदमों को अनिश्चित काल तक 'लंबाने' के संकेत 'ऊपर' से आए हैं।

बहरहाल, ऐसी धारणाओं का विद्यमान होना अन्याय आधारित देश की छवि गढ़ता है। यह सब बेबुनियाद है तो उसे साबित करके व्यापक रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए। हमारी अनेक संस्थाएं अपनी विश्वसनीयता और साख खो चुी हैं। इस घटना का आरंभ इस तरह हुआ कि गुलशन ने नदीम-श्रवण नामक विराट किंवदंती को रचा था। वे उनके गॉडफादर थे। नदीम का गैरफिल्मी अलबम असफल हुआ और उन्होंने गुलशन पर आरोप लगाए कि उन्होंने यथेष्ट प्रचार नहीं किया। गौरतलब है कि क्या यह यथेष्ठ कारण है अपने गॉडफादर की सुपारी देने का? इससे भी बड़ा सवाल है कि सरकारी दल लंदन की अदालत में यथेष्ट प्रमाण क्यों नहीं दे पाया?