एक चुनाव दो गीत, धरती का संगीत / जयप्रकाश चौकसे

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एक चुनाव दो गीत, धरती का संगीत
प्रकाशन तिथि :10 नवम्बर 2015


अंग्रेजी कवि जॉन मिल्टन मध्य आयु में दृष्टिहीन हो गए थे। उनकी 'पैराडाइज लॉस्ट' उस समय लिखी गई जब उनकी आंखों को रोग नहीं लगा था और 'पैराडाइज रिगैन्ड' उन्होंने लिखवाई जब नेत्रों से ज्योति जा चुकी थी परंतु पहले ग्रंथ के लिखने के बाद उन्होंने एक जनवादी राजनीतिक दल के लिए हजारों लेख लिखे और आंखों पर अधिक दबाव के कारण ज्योति चली गई। सारांश यह है कि अनेक साहित्यकारों ने राजनीतिक दलों के लिए लिखा है। एक स्वस्थ राजनीतिक दृष्टिकोण के अभाव में महान रचना लिखना कठिन है। हमारे महान मुंशी प्रेमचंद के हृदय में समाज के हाशिये पर पड़े साधनहीन वर्ग के लिए दर्द था परंतु वे कम्युनिस्ट दल के सदस्य नहीं थे। जिन लोगों के हृदय में दलित, दमित साधनहीन लोगों के लिए दर्द होता है, उनके मार्क्स नहीं पढ़ने से कोई अंतर नहीं पड़ता। दुनिया के अधिकतम बुद्धिजीवियों और सृजनशील लोग हमेशा गरीब के दर्द से जुड़े होते हैं, इसलिए उन्हें लेफ्टिस्ट माना जाता है, जबकि राइट विंग ने कभी महान साहित्यकार नहीं दिए।

बिहार के चुनाव का थीम सांग राजशेखर ने लिखा और संगीत इंदौर की स्नेहा खानवलकर ने दिया है। ज्ञातव्य है कि राजशेखर ने 'तनु वेड्स मनु' तथा 'रांझणा' के लिए गीत लिखे हैं। उनके गीत 'खाकर अफीम रंगरेज, पूछे रंग का कारोबार क्या है,' पर पहले इस कॉलम में लिखा जा चुका है? राजशेखर बिहार में जन्मे सरल, प्रतिभाशाली युवा हैं और उन्हें अनेक फिल्मों के लिए अवसर मिल रहे हैं। हम राजशेखर की तुलना बिहार के ही शैलेंद्र से इसलिए नहीं कर सकते कि शैलेंद्र को राज कपूर, विमल राय, अमिया चक्रवर्ती, विजय आनंद और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे फिल्मकार मिले जो अब कैसे मिल सकते हैं परंतु उन्हें पहला अवसर देेने वाले आनंद राय प्रतिभाशाली हैं। आजकल आनंद राय एक बौने केंद्रीय पात्र को लेकर शाहरुख खान के साथ फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं। गीत है- 'फिर से एक बार हो, बिहार में बहार हो, फिर से एक बार हो, नीतीश कुमार हो…भूमि का सपूत भूमि बचाएगा, अपना एक वादा तो निभाएगा, खेत-खलिहान बोले, हंसता किसान बोले, गेहूं, मकई धान बोले, गरदा सब उड़ जाए, ठोस दाना घर आए। पछुआ पूरब की चले जो बहार हो, बिहार में बहार हो, जात-पांत और जुमलों के झांसे में नहीं आएंगे, बात पर जो कायम हो, नीतीश को जिताए वो, गांव-गांव तक रास्ता, अब गली-गली में उजियारा, डर नहीं महौल में कउनो, दूर हुआ सब अंधियारा, दिल से एक बार बोलो, सच की जय बोलो…'

राज शेखर के इस गीत का कितना योगदान है, यह तो बताना कठिन है परंतु चुनाव के पहले से चुनाव के नतीजे तक यह गीत बिहार के सारे शहर, गांव और गली में गूंजा है। राजशेखर किस कदर मिट्‌टी से जुड़े हैं, ये उनके शब्द चयन से ही मालूम हो जाता है। राजशेखर ने कुछ वर्ष पूर्व एक प्रयोगात्मक फिल्म 'ऊंगा' के लिए गीत लिखा था, जिसका हर शब्द लयबद्ध है और आभास होता है कि कवि ने धरती पर कान रखकर उसकी आवाज को सुना है। इस फिल्म की कथा ओड़िशा के पर्वत 'नियमगिरी' को पूंजीवादियों द्वारा तोड़ने और जनजातियों द्वारा उसके विरोध की कथा थी। यह फिल्म अनेक अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में दिखाई गई है।

कथा के पात्र जनजाति के हैं, जो उड़िया भी बोलते हैं और जनभाषा कूवी भी बोलते हैं। अत: इस थीम गीत में आंचलिक शब्द हैं परंतु उनमें छिपे धरती के संगीत को सुनिए? गीत- 'तरम तरम तर तरा, चर्खी बोले फरफरा फरफरा, धरती पेनू फलो फूलो नियम राजा (पर्वत) भालोही भालो, डोंगर पैनू भोलो भोलो, तापुर टुपुर त्रम, आदीवासलय, मेमू मूल वासलम' अर्थात जनजातियां धरती की मालिक हैं और उन्हें खदेड़कर विकास के नाम पर पर्वत श्रीहीन किए जा रहे हैं, नदियां प्रदूषित की जा रही हैं।

दरअसल, आज सबसे अधिक खतरा पृथ्वी को है, जिसका साठ प्रतिशत खनिज यह तथाकथित विकास खा गया है। जब तक शैलेंद्र-साहिर की परम्परा के राजशेखर सक्रिय है तब तक निराश होने की आवश्यकता नहीं है।