एक ठग के अवचेतन का रहस्य / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 नवम्बर 2018
निर्माता आदित्य चोपड़ा, निर्देशक कृष्णा आचार्य और आमिर खान ने मिलकर 'हिन्दुस्तान के ठग' बनाई है, जिसमें अमिताभ बच्चन की विशेष भूमिका है। 19वीं सदी के पहले चरण में ठगों ने राहगीरों के मन में खौफ पैदा कर दिया था। ठगों के आतंक के कारण लोग यात्रा करने से बचते थे। उस दौर तक भारत में पक्की सड़कों का निर्माण कम ही हुआ था। सुरक्षा की खातिर लोग समूह में यात्रा करते थे। अमेरिका में संगठित अपराध दल अत्यंत सुगठित, सुनियोजित होते हैं। सारा काम विभिन्न विभागों में बांटा जाता है। एक तरह से वे समानांतर सरकार की तरह होते हैं। 19वीं सदी में ठग भी इसी तरह सुनियोजित ढंग से काम करते थे। उनका गुप्तचर विभाग होता था और वित्तमंत्री भी होता था। लूटपाट के बाद सारा धन समान रूप से सब सदस्यों में बांटा जाता था और हर सदस्य अपने शेयर का दस प्रतिशत संगठन को व्यवस्था बनाए रखने के लिए देता था। ठगों में जो सदस्य बीमार होने या अन्य किसी कारण से लूट में शामिल नहीं भी हुआ हो तो भी उसे उसका हक मिलता था। इस तरह ठगों का संविधान गणतंत्र का मुखौटा धारण किए हुए हमारे सामंतवाद से बेहतर था। यह कितनी अजीब बात है कि अच्छाई की ताकतें कभी संगठित नहीं हो पातीं परंतु बुराई संगठित होती है। एक हत्यारा दूसरे के खिलाफ गवाह नहीं बनता।
ठगों की सक्रियता के समय भारत में अंग्रेजों का राज था। दोनों ही लुटेरे थे परंतु सत्तासीन लुटेरे लूट का बड़ा अंश इंग्लैंड भेज देते थे। लंबे समय तक अंग्रेज हाकिमों ने ठगों के अस्तित्व पर ही यकीन नहीं किया परंतु एक व्यक्ति ने उन्हें एक जगह खुदाई करने का परामर्श दिया। उसका दावा था कि वहां अनेक कंकाल मिलेंगे। यह दुष्कर्म ठगों ने किया था। इस तथ्य के उजागर होते ही अंग्रेजों ने ठगों को समाप्त करने के लिए कुछ अफसरों को नियुक्त किया। एक लंबी लड़ाई के बाद अफसरों के दृढ़ संकल्प के कारण यह संभव हो सका। जबलपुर के बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजेन्द्र चंद्रकांत राय ने ठगी के उन्मूलन के अभियान को चलाने वाले विलियम हेनरी स्लीमैन की दो किताबों का अनुवाद किया है। ठगों पर मेडाक्स टेलर के उपन्यास का अनुवाद हाल ही में प्रकाशित हुआ है। राजेन्द्र चंद्रकांत राय ने ही अनुवाद किया है और इसी उपन्यास से प्रेरित है फिल्म 'हिन्दुस्तान के ठग' जिसका प्रदर्शन इसी सप्ताह होने जा रहा है। अमिताभ बच्चन, आमिर खान, कैटरीना कैफ और सना खान अभिनीत फिल्म अत्यंत भव्य पैमाने पर बनाई गई है। आदित्य चोपड़ा और आमिर खान अपने काम को मुस्तैदी से करने के लिए जाने जाते हैं। गौरतलब है कि 2001 में प्रदर्शित 'लगान' से आज तक आमिर खान को शत-प्रतिशत सफलता मिली है। दरअसल, 'लगान' से ही आमिर खान का कायाकल्प हुआ है और परिवर्तन की इस प्रक्रिया के कैटेलेटिक एजेंट फिल्मकार आशुतोष गोवारिकर रहे हैं।
यह सर्वविदित है कि किसी भी साहित्यिक कृति से प्रेरित फिल्म में कुछ फेरबदल किए जाते हैं। एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर परिवर्तन अवश्यंभावी है, क्योंकि हर माध्यम की अपनी भाषा, अपने मुहावरे और अपना व्याकरण भी होता है। भाषा का अक्षर फिल्म माध्यम का बिम्ब कहलाता है। उपन्यास में पार्श्व संगीत नहीं होता परंतु सिनेमा माध्यम में पार्श्व संगीत प्रभाव को धार प्रदान करता है।
फिल्म की कुछ झलकियां टेलीविजन पर दिखाई जा रही है। ठग जमीनी लुटेरे थे परंतु समुद्री लुटेरे भी हुए हैं और इस विषय पर गुरुदत्त दशकों पूर्व 'बाज' नामक फिल्म बना चुके हैं, जिसका ठगी से कोई संबंध नहीं था। यह संभव है कि आदित्य चोपड़ा एवं अमीर खान पर इस फिल्म को बनाते समय अंग्रेजी भाषा में बनी 'पायरेट्स ऑफ कैरिबयन' का प्रभाव रहा हो। एसएस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली' का प्रभाव फिल्मों के साथ ही टेलीविजन पर भी पड़ा है। इसे हम तिवारी के 'पोरस' में स्पष्ट देख सकते हैं। संयोग देखिए कि इस फिल्म की प्रेरणा देने वाले उपन्यास का नाम है 'ठग अमीर अली की दास्तान'। उपन्यास का ताना-बाना कुछ इस तरह है कि एक नादान बच्चे का अपने साथियों से झगड़ा हो रहा है। वह साथियों से पिट रहा है। एक व्यक्ति उसे बचाता है और उसका उसके परिवार से मेलजोल होने लगता है। परिवार राजस्थान से इंदौर की यात्रा पर जा रहा है और यह व्यक्ति भी उनका सहयात्री बन जाता है। दरअसल, यह तथाकथित हमदर्द, हमसफर ठगों का गुप्तचर है और एक सुनसान जगह लूटपाट होती है और सारे यात्री कत्ल कर दिए जाते हैं। दूर फेंका हुआ बच्चा बेहोश होते-होते अपने मां-बाप का कत्ल होते हुए देखता है। बहरहाल, वही ठग इस बच्चे का लालन-पालन करता है और युवा होने पर उसे भी ठग बना देता है। वह मुस्तैदी से काम करते हुए दल का विश्वास जीत लेता है। यही पात्र अंग्रेज अफसर से मिलता है और ठगी उन्मूलन में उनकी सहायता करते हुए अपने माता-पिता की हत्या का बदला लेता है। उसने अपने इस उद्देश्य को कभी जाहिर नहीं होने दिया और गोपनीयता बनाए रखने के लिए अपने मन में कभी इसे दोहराया नहीं ताकि नींद के समय वह कुछ बड़बड़ा न दे। अपने अवचेतन की एक गुफा में उसने इस राज को छिपाए रखा। यह सब कितना कठिन रहा होगा। बेचारा आम आदमी तो हर व्यवस्था द्वारा ठगा गया है।