एक तिनका इक्यावन आँखें / सुरेश कुमार मिश्रा
मैं घर की छत पर हवा खाने के लिए मुंडेर पर खड़ा था। मंद-मंद हवा का आनंद ले रहा था। अचानक ज़ोर की हवा चली और एक तिनका आँखों में आ गिरा। चूँकि मैं कवि हरिऔध तो हूँ नहीं कि आँखों में गिरने वाले तिनके पर आशुकविता लिख दूँ। वैसे भी मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ नहीं था। न ही एक दिन मुंडेरे पर खड़ा था। वह तो मैं हर दिन मुंडेर पर चला आता हूँ। हाँ इतना अवश्य था कि अचानक ही सही, तिनका गिरा तो था मेरी आँख में। आँखे मींचते-मींचते नीचे उतरा। कमरे में पहुँचते ही पत्नी ने चुटकी लेते हुए कहा–'क्या हुआ ले लिया मज़ा खुली हवा का?' मैं कुछ कहता इससे पहले ही फिर बोल उठी–'अरे यह क्या हुआ? किस पर आँख उठा आए जो आपकी आँखें लाल हो गयी हैं?' मैंने पूरी घटना बता दी। पत्नी घटना पर विश्वास करने के बजाय तंज कसते हुए कहने लगी–'ऐसी कौनसी आफत आन पड़ी जो छत पर चले गए। न जाने किसके लिए आँखें बिछाने जाते हैं? आप कितनी भी आँखें टेढ़ी कर लें मेरे सिवाय आपको आँखों में बिठाने वाला नहीं मिलेगा।'
पत्नी को समझाते हुए कहा-' जिस दिन से मेरी आँखें तुमसे लड़कर चार हुई हैं, भला मैंने कभी किसी के बारे में सोचा है? तुम तो मेरी आँखों का प्यार हो। मेरी आँखों का तारा हो। तुम मुझ पर इतना आँख रखती हो कि मुझे कभी किसी चीज़ की कमी ही नहीं होती। भला मैं तुम्हारी आँखों में धूल डालने वाला काम क्यों करूँगा? जब से तुमसे शादी हुई तब से लेकर आज तक हमने एक-दूसरे पर कभी आँखें लाल नहीं की हैं। यही होता है सच्चा प्यार। सच्चा प्यार करने वाले कभी एक-दूसरे की आँखों में नहीं खटकते। कभी एक-दूसरे पर आँखें नीली-पीली नहीं करते। वे एक-दूसरे की आँखों में बस जाते हैं। तुम तो मेरी आँखों का पानी हो। मेरी आँखों का चैन हो। तुम्हीं बताओं क्या मैंने कभी तुमसे आँखें चुराई हैं? तुम्हारे प्रति कभी आँखों में चर्बी आने दी है? ... बात पूरी हुई थी कि नहीं पत्नी बीच में टपक पड़ी। वह बोली–मैं तुम्हारी आँखों के सभी इशारे समझती हूँ। अब रहने भी दो। बस भी करो। ठीक से मेरी आँखों में झाँककर बात करने की हिम्मत तो है नहीं और चले हैं आँख सेंकने। मैं सब जानती हूँ। चलिए डॉक्टर के पास चलते हैं और आपकी आँखों का इलाज़ कराते हैं।
डॉक्टर से मिलने निकले ही थे कि अचानक रास्ते में मेरा पड़ोसी मिल गया। वह मुझे आँखें फाड़-फाड़कर देख रहा था। वह थोड़ा कपटी क़िस्म का इंसान था। इसलिए उससे लाख आँखें फेरने की कोशिश की लेकिन उसकी आँखों में पड़ ही गया। रास्ता टोकते हुए उसने कहा-'जब भी तुम्हें बुलाने की कोशिश करता हूँ आँखों से ओझल हो जाते हो। हमसे कोई गलती-वलती हो गयी क्या? हमें तो तुम अपनी आँखों का कांटा समझते हो। भाई, हम भी तुम्हारे शुभचिंतक हैं। भला हमें आँखों से दूर करने पर क्या मिलेगा? हम तुम्हारे लिए आँखें बिछाए रहते हैं और एक तुम हो कि हमसे आँखें चुराकर पतली गली नाप लेते हो। मैं तुम्हारी आँखों की किरकिरी थोडी न हूँ।' पड़ोसी की बात बीच में ही काटते हुए बोला 'भला मेरी आँखें फूट गयी हैं जो तुम्हारी आँखों में खटकूँगा? वह तो उस दिन ज़रा जल्दी में था इसलिए नौ-दो ग्यारह हो गया। अब तुम्हीं बताओ क्या कभी मैने तुमसे आँखें चढ़ाकर बात की है? नहीं न!'
मुझे आँख में धूल झोंकने की कला नहीं आती है। इसलिए पड़ोसी से जैसे-तैसे छुटकारा पाया और पत्नी के साथ डॉक्टर के पास पहुँचा। डॉक्टर के पास पहले से ही रोगियों की भीड़ थी। बैठने की जगह न होने के कारण खड़े-खड़े पैरों में दर्द होने लगा। आँखें भारी हो रही थीं। बहुत देर के बाद मेरी बारी आयी। इससे पहले की डॉक्टर मेरी आँखों का इलाज़ करते वह मुझे आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगे। अपने चश्मे को हिलाते-डुलाते मुझ पर बम फोड़ते हुए बोले-'आप वहीं तो नहीं जो परसों एक लड़की की मरहम पट्टी करने के लिए आए थे?' उनका इतना कहना ही था कि पत्नी मेरी ओर आँखें लाल-पीली करती हुई घूरने लगी। वह शुक्र मनाइए कि तभी कंपाउंडर ने आकर मुझे बचा लिया। कंपाउंडर ने डॉक्टर को बताया कि यह वह नहीं कोई और हैं। डॉक्टर ने माफ़ी माँगी। पत्नी की आँखें खुल गयीं। काफ़ी देर तक देखने के बाद डॉक्टर ने बताया कि मुझे आँख आ गयी है। उन्होंने कुछ दवाई लिखकर दी और हमें आँखों से ओझल किया।
घर लौटते समय मैंने पत्नी से कहा-'अगर आज कंपाउंडर ने डॉक्टर की गलतफहमी दूर न की होती तो मैं तुम्हारी आँखों में ज़िन्दगी भर खटकता रहता।' इस पर पत्नी ने मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा-'जहाँ सच्चा प्यार होता है वहाँ ऐसी छोटी-मोटी गलतफहमी मायने नहीं रखती। आप तो मेरी आँखों की रोशनी हैं। मेरी आँखों में जब भी झांकिए आप ही नज़र आएँगे। मेरी फड़कती आँखों के शगून हैं।'
इतना सुनना था कि मेरी आँखें भर आयीं।