एक तोते की शवयात्रा प्रतिबंधित / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :23 जनवरी 2018
संजय लीला भंसाली के माता-पिता रंगमंच और सिनेमा से जुड़े हुए थे। पिता ने एक कलाकृति के लिए आर्थिक जोखिम उठाया और असफलता के बाद नैराश्य में डूबकर शराबनोशी करने लगे। उनकी मृत्यु के पश्चात माता लीलावती ने रंगमंच के लिए पात्रों की पोशकें बनाईं और अपनी संतान का पालन-पोषण किया। वे नाटकों में नृत्य संयोजन भी करती थीं। भंसाली परिवार मुंबई के उस क्षेत्र में रहता था, जहां अधिकांश गुजरात से आए हुए लोग रहते थे। अत: भंसाली गुजरात से दूर बसे गुजरात में पले। भारत के सभी प्रांतों के मोहल्ले हैं मुंबई में। भंसाली की विचार प्रक्रिया और अवचेतन में रंगों और ध्वनि का उत्सव रहता है। ज्ञातव्य है कि समृद्धि के एक दौर में भोजनप्रेमी लोग जमकर भोजन करने के बाद अपने मुंह में उंगली डालकर वमन करते थे ताकि उसी समय दोबारा स्वादिष्ट भोजन कर सकें। इस प्रक्रिया को ऑरजी कहते हैं। यह जानवरों द्वारा की गई जुगाली से अलग कार्य है। जानवर भोजन उपलब्ध होने पर जल्दी जल्दी उसे भकोस लेते हैं क्योंकि उन्हें भय रहता है कि जाने अगली बार कब भोजन मिल सकेगा। इसके उपरांत जानवर किए गए भोजन को अपने उदर से अपने मुंह में लाकर इत्मीनान से चबाते हैं। दरअसल जुगाली के समय ही वे अपने भोजन का आनंद प्राप्त करते हैं, ऑरजी इससे अलग समृद्धि का वीभत्स पाखंड है।
ईरान में मेहमान के भोजन करने के पश्चात दस्तरख्वान से सब हटा लिया जाता है और पुन: सारा भोजन दोबारा दस्तरख्वान पर लगाया जाता है। तात्पर्य यह है कि हम अभी चुके नहीं हैं। मेहमान पुन: भोजन कर सकता है। मेहमान उस भोजन को हाथ लगाता है। यह दूसरी बार परोसा भोजन फकीरों को दिया जाता है। इसे झूठन नहीं समझा जाये।
संजय लीला भंसाली की मूल रुचि रंग और ध्वनि की ऑरजी करना है। अत: वे ऐसी कथा चुनते हैं जिनमें जमकर गीत संगीत और भव्य सैट्स लगाए जा सकते हैं। उनकी रचना प्रक्रिया में रंग का कितना महत्व है यह इस बात से समझा जा सकता है कि जब उसने गूंगे बहरे पात्रों की फिल्म बनाई तो उसका नाम रखा 'ब्लैक' गोयाकि ध्वनि नहीं तो रंग भी नहीं। संजय फिल्मकार शांताराम के उस स्वरूप से प्रभावित हैं जो 'झनक झनक पायल बाजे' और 'नवरंग' में दर्शक ने देखी। शांताराम ने विविधता रची है जिसमें 'दुनिया ना माने', 'डॉ. कोटनीश', 'आदमी' से लेकर शाकुंतल फिल्में शामिल हैं। विलक्षण प्रतिभा के धनी शांताराम का सिनेमा बच्चों के खेलने के उस फूंकनी नुमा खिलौने की तरह है जिसे घुमाने पर विविध रंग रचना दिखाई पड़ती है। उनका केलिडियोस्को नुमा सिनेमा है।
अत: संजय लीला भंसाली ने 'बाजीराव मस्तानी' और 'पद्मावत' जैसी फिल्में रचीं। उनके पास न इतिहास बोध और ना ही वे सामाजित सोद्देश्यता का समावेश अपनी फिल्मों में करते हैं। वे इस कदर सिमटे हुए हैं कि गुजराल की लोक-कथाएं और लोक संगीत की सीमाओं से स्वतंत्र ही नहीं होना चाहते। त्रासदी यह है कि वे गुजरात में सिमटे हुए उसे ही अखिल भारत भी मान बैठे हैं। दूरबीन से दूर की चीजें पास की दिखाई देती हैं परन्तु आप दूरबीन के दूसरे हिस्से से देखें तो केवल एक सीमित क्षेत्र ही नजर आता है। एक ही फूंकनी नुमा वस्तु के दो सिरे दो दृष्टिकोण की तरह हैं। अपने रंगों और ध्वनि के संसार में सिमटे हुए भंसाली को अवाम के रोजी-रोटी व मकान की समस्याएं नजर ही नहीं आतीं। जाने क्यों अब तक उन्होंने राजा रवि वर्मा का बायोपिक बनाने की चेष्टा नहीं की है।
सूफी काव्य के रचियता मालिक मोहम्मद जायसी के महाकाव्य 'पद्मावत' को इस फिल्म के विवाद में अकारण ही खींचा जा रहा है। जायसी सिंहल द्वीप नामक काल्पनिक स्थान के राजा रत्नसेन के युद्ध में मारे जाने पर उनकी पत्नियां नागमति व पद्मावती के सती हो जाने का विवरण प्रस्तुत करती है। सूफी काव्य में मनुष्य की आत्मा प्रेमिका है जो अपने प्रेमी ईश्वर से दूरी और विरह को झेल रही है। वह उससे एकात्म होना चाहती है। गौरतलब तो यह भी है कि जायसी का पद्मावत अवधि एवं फारसी में लिखा गया है। कमोबेश अमीर खुसरो की भाषा की तरह है जिन्होंने कई बार एक पंक्ति फारसी में तो दूसरी अवधि में लिखी है। अमीर खुसरो की 'ज़िहाले मस्कीं मकुन बरंजिश बेहाल ए हिजरा, हमारा दिल है या तुम्हारा दिल है' का उपयोग जे.पी. दत्ता ने 'गुलामी' में किया था। ज्ञातव्य है कि जायसी के पद्मावत में रानी नागमति व पद्मावती सती हो जाती है। सती प्रथा जौहर से अलग कुरीति है। जायसी के पद्मावत में एक तोता महत्वपूर्ण पात्र है जो रानी पद्मावती के सौंदर्य का विवरण प्रस्तुत करता है। यह बताना कठिन है कि भंसाली ने तोते का उपयोग किया है या नहीं परन्तु इस समय उनके होश के तोते उड़ गए हैं क्योंकि जाने किसके द्वारा प्रायोजित अनावश्यक विवाद में किसी का पेंका हुआ पत्थर उस तोते को लगा है। इस तोते की शवयात्रा पर भीड़ की आशंका के कारण सरकार ने शवयात्रा प्रतिबंधित कर दी है।