एक था टाईगर / जयप्रकाश चौकसे

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एक था टाईगर
प्रकाशन तिथि : 19 नवम्बर 2012


बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद मुंबई के सभी अखबारों में उन पर लेख प्रकाशित हुए हैं, उनमें 'मुंबई मिरर' की संपादक मीनल बघेल ने सर्वश्रेष्ठ लेख लिखा है। इसमें हर तरह के अतिरेक से बचा गया है और अनावश्यक रूप से प्रशंसा के पुल भी नहीं बांधे गए हैं। इस लेख में बालासाहेब के व्यक्तित्व और शक्ति का तटस्थ आकलन प्रस्तुत किया गया है। उनकी गरिमा को हानि पहुंचाए बिना ही उनकी त्रुटियों को प्रस्तुत करते हुए तमाम छिलके उतारकर मनुष्य को खोजने का प्रयास किया गया है। इस लेख में बालासाहेब की व्यक्तिगत रुचियों और पसंद-नापसंद को प्रस्तुत किया गया है। बालासाहेब हमेशा ही विवादास्पद रहे हैं और इस लेख में विवादों के परे उनके असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया गया है। इस तरह के संपादकीय आज विरल हैं। मीनल बघेल के अंग्रेजी लेख का हिंदी में अनुवाद नहीं किया जा सकता, जबकि वह स्वयं सृजनात्मक अनुवाद में अत्यंत कुशल हैं।

ये कितनी अजीब बात है कि बालासाहेब ठाकरे के तमाम विरोधी उनके व्यक्तिगत मित्र रहे हैं और नीतियों या नीति के अभाव के आलोचक भी व्यक्ति के रूप में बालासाहेब के प्रशंसक रहे हैं। स्पष्ट है कि राजनीतिक मंच के परे बालासाहेब ठाकरे अच्छे मेहमाननवाज और सहृदय व्यक्ति रहे तथा उनकी बातों में सहज हास्य-व्यंग्य लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता था। एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में दहाडऩे वाला शेर अपनी मांद में अहिंसक, प्रेमल व्यक्ति के रूप में उभरकर सामने आता था। उनसे चर्चा करते समय उनके राजनेता स्वरूप के पीछे छिपा कार्टूनिस्ट साफ दिखाई देता था। भारत के महानतम कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण का वे बहुत आदर करते थे और अपनी मृत्यु के कुछ दिन पूर्व ही पुणे में बसे आरके लक्ष्मण से उन्होंने फोन पर बात की थी। यहां यह गौरतलब है कि हर मनुष्य का व्यवहार और आचरण घर में एक प्रेमल, सहृदय व्यक्ति की तरह होता है। सड़क पर उसका व्यवहार बदल जाता है और अगर संसद में पहुंच जाए तो वह अलग ही व्यक्ति के रूप में दिखाई देता है। उसका व्यवहार सिनेमाघर में उतना ही संवेदनशील होता है, जितना अपने घर में। सड़क और संसद तथा राजनीतिक दलों की बैठक में कोई और ही व्यक्ति आपके सामने आता है। जिस दिन मनुष्य सारी पृथ्वी को अपना घर मान लेगा, उस दिन विश्व में शांति स्थापित होगी। हर व्यक्ति दूसरों को दिखाने के लिए अपनी एक छवि गढ़ता है और उस छवि को न्यायसंगत ठहराते-ठहराते स्वयं की असलियत को भूल जाता है और छवि ही मनुष्य हो जाती है। गोयाकि परछाई मनुष्य बन जाती है और मनुष्य परछाई बन जाता है। ये भूमिकाओं की अदला-बदली ही सामाजिक जीवन में खाइयां बनाती है, जहां से नफरत और हिंसा का जन्म होता है।

बालासाहेब ठाकरे ने एक दौर में दिलीप कुमार के मुसलमान होने के कारण उनके खिलाफ जहर उगला, परंतु स्वयं दिलीप कुमार को अपने घर बुलाया और दोनों ने दोस्तों की तरह बैठकर शराब पी और गप लड़ाईं। इसी तरह बोफोर्स बवाल के समय अमिताभ बच्चन की फिल्मों के प्रदर्शन पर बालासाहेब ने रोक लगाई, परंतु घर में दोनों दोस्ताना निभाते रहे। बालासाहेब के पास बला की वाकपटुता थी और हाजिरजवाबी में उनका जवाब नहीं था। जब उनके विरोधी कम्युनिस्ट डांगे ने उनसे कहा कि बालासाहेब बिना किसी संविधान और सिद्धांत के आप शिवसेना चला रहे हैं, तब बालासाहेब ने कहा कि आपकी संविधान और सिद्धांतवादी कम्युनिस्ट पार्टी को उन्होंने मुंबई में परास्त कर दिया है और जड़ों से उखाड़ दिया है। बालासाहेब ठाकरे को हमेशा फिल्मों से गहरा लगाव रहा है और शांताराम के राजकमल स्टूडियो में उनके लिए नई फिल्मों के शो आयोजित किए जाते थे। यह बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि बालासाहेब ने अपने जवानी के दिनों में इंदौर के हरिकृष्ण प्रेमी की फिल्म निर्माण कंपनी में एक सहयोगी की तरह कुछ समय काम किया है। फिल्म जगत के दिलीप कुमार, राज कपूर, अमिताभ बच्चन और सलीम खान उनके व्यक्तिगत मित्र रहे तथा उन्होंने अपने मित्रों के साथ जमकर शराबनोशी की और दावतों में शिरकत की। वे एकमात्र नेता थे, जिन्होंने कभी अपने पीने-पिलाने की बात छुपाई नहीं। उनकी ये दबंगता भी उनकी लोकप्रियता को बढ़ाती थी। वे जीवन में किसी प्रकार के ढोंग को पसंद नहीं करते थे। एक तरफ उन्होंने हिंदुत्व का समर्थन किया तो दूसरी तरफ मांसाहार और शराब पीने की बात कभी छुपाई नहीं।

बालासाहेब ठाकरे ने स्वयं को एक टाइगर की तरह प्रस्तुत किया। ज्ञातव्य है कि अलग-अलग देशों और जलवायु में टाइगर की किस्में बदलती हैं। टाइगरों में प्राय: क्षेत्रीयता होती है। जंगल की टाइगर प्रजाति में भी क्षेत्रीयता होती है, परंतु कुछ बातें कभी नहीं बदलतीं। मसलन जंगल के अन्य जानवरों की तरह टागर झुंड में नहीं चलता, क्योंकि उसे कोई भय नहीं है। टाइगर शिकार करके अपना पेट भरने के बाद शिकार को अन्य जानवरों के लिए छोड़ देता है। बालासाहेब ठाकरे ने भी हमेशा यही किया है। अपने दल के सदस्यों की भूख का ख्याल रखा है। टाइगर प्राय: तीन लंबी छलांग में शिकार तक पहुंचता है और उसकी दबोच से बच जाने वाले जानवर या इंसान का पीछा नहीं करता। बालासाहेब ने भी कभी अपने विरोधी का पीछा नहीं किया और दबोच में आए हुए को छोड़ा नहीं। टाइगर भयहीन प्राणी है, परंतु उसका भय उसकी ताकत बढ़ाता है। बालासाहेब भी एक निडर व्यक्ति थे और उनका बड़बोलापन भी उनकी शक्ति का एक हिस्सा था। एक बार बालासाहेब ने कहा था कि टाइगर के शरीर की पूरी वैज्ञानिक जांच करके देखना चाहिए कि उसकी गति और शक्ति का राज क्या है। टाइगर के पोस्टमार्टम से कुछ पता नहीं चल सकता, क्योंकि शक्ति और गति शरीर में ही नहीं, मन-मस्तिष्क में भी होती है।