एक थी चिड़िया / गिजुभाई बधेका / काशीनाथ त्रिवेदी

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एक थी चिड़िया। एक बार वह राजा के महल में गई। वहां उसे एक गुड्डा मिला। राजा का गुड्डा लेकर वह कहने लगी—

राज के महल से मुझे गुड्डा मिला।

राजा के महल से मुझे गुड्डा मिला।

राजा ने सुना, तो उसे गुस्सा आ गया। वह बोला, "इससे गुड्डा छीन लो।"

जब गुड्डा छिन गया, तो चिड़िया कहने लगी:

राजा को भूख लगी, मेरा गुड्डा छीन लिया।

राजा को भूख लगी, मेरा गुड्डा छीन लिया।

राज ने सोचा—‘हम तो लोभी साबित हुए!’

वह बोला, "चिड़िया को गुड्डा वापस दे दो।"

गुड्डा वापस दे दिया, तो चिड़िया कहने लगी:

राजा मुझसे डर गया।

गुड्डा मुझको दे दिया।


राजा मुझसे डर गया।

गुड्डा मुझको दे दिया।

राजा को इतना गुस्सा आ गया कि उसने चिड़िया को मार डाला और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। फिर राजा ने कहा, "इन टुकड़ों पर हलदी, नमक और मिर्च डाल दो, मैं इन्हें खा जाऊंगा।"


चिड़िया ने सुना। वह बोली:

आज तो मैं लाल-पीली बनी,

मैं लाल-पीली बनी।

आज तो मैं लाल-पीली बनी,

मैं लाल-पीली बनी।

राजा बोला, "अरे, अभी तो यह चिड़िया जी रही है। इसे छौको और तलो, जिससे इसका बोलना बन्द हो।" चिड़िया को तेल में छौका गया। चिड़िया फ़िर बोली:

आज तो मैं छननन बनी,

मैं छननन बनी।

आज तो मैं छननन बनी,

मैं छननन बनी।

राता को बहुत गुस्सा आया, और गुस्से-ही-गुस्से में वह चिड़िया को खाने लगा। तभी राजा के गले में जाते-जाते चिड़िया बोली:

आज तो मैं तंग गली में पहुंची,

मैं तंग गली में पहुंची।

आज तो मैं तंग गली में पहुंची,

मैं तंग गली में पहुंची।

राजा ने कहा, "अब इसे पेट में जाने दो, फिर देखें यह कैसे बोलेगी?"

चिड़िया पेट में पहुंच गई। पर वह तो वहां से भी बोले बिना न रही।

आज तो मैं राजमहल में पहुंची,

मैं, राजमहल में पहुंची।

आज तो मैं राजमहल में पहुंची,

मै राजमहल में पहुंची।

राजा गुस्से से लाल-पीला हो गया। उसने सिपाहियों को अपने चारों ओर खड़ा किया और उनसे कहा, "जब यह चिड़िया बाहर निकले, तो उसे काट डालना।" राजा बैठ गया। नंगी तलवारों के साथ सिपाही राजा को घेरकर खड़े हो गए।

इसी बीच चिड़िया निकली और राजा की पीठ पर जा बैठी। जैसे सिपाही चिड़िया को तलवार से मारने दौड़े, चिड़िया फुर्र से उड़ गई। तलवार राजा की पीठ पर पड़ी और पीठ कट गई।


चिड़िया पेड़ पर जा बैठी और बैठी-बैठी बोलने लगी:

मुझको तो कुछ नहीं हुआ,

पर राजा की पीठ कट गई।

मुझको तो कुछ नहीं हुआ,

पर राजा की पीठ कट गई।