एक दरवाजा जो हमेशा खुला रहता है / जयप्रकाश चौकसे

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एक दरवाजा जो हमेशा खुला रहता है
प्रकाशन तिथि :09 सितम्बर 2016


मुंबई के पेडर रोड पर जसलोक अस्पताल से महज कुछ गज की दूरी पर एक ऐतिहासिक इमारत है 'प्रभु कुंज' जिसके दूसरे माले पर दो फ्लैट हैं। एक में लता मंगेशकर रहती हैं और दूसरे में आशा भोंसले रहती हैं। लता मंगेशकर के फ्लैट में उन्होंने छोटा-सा मंदिर बनाया है, जिसमें हमेशा एक तानपुरा रखा होता है। लता मंगेशकर यहीं बैठकर रोज रियाज़ करती हैं। एक ही व्यवसाय में रहने वाले दो निकटतम रिश्तेदारों के बीच प्रतिद्वंद्विता की भावना होती है और दीनानाथ मंगेशकर की इन दोनों पुत्रियों में भी प्रतिस्पर्द्धा रही है परंतु दोनों से कमतर प्रतिभाशाली ऊषा किसी दौड़ में शामिल नहीं हैं। इसी फ्लैट के सामने उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर रहते हैं, जिनके पड़ोसी रहे हैं कल्याणजी भाई और आनंदजी भाई। इस स्थान से थोड़ी दूर वार्डन रोड पर पार्श्व गायक मुकेश रहा करते थे और अब उनका बेटा नितिन मुकेश रहता है गोयाकि फिल्म संगीत के महारथी दक्षिण मुंबई के श्रेष्ठि वर्ग क्षेत्र में रहते रहे हैं। मुख्य सड़क मरीन ड्राइव पर संगीतकार जयकिशन रहते थे तथा शंकरजी का मकान कुछ दूरी पर था। जयकिशन वाली इमारत के पड़ोस वाली इमारत में महान गायिका-नायिका सुरैया रहती थीं। जयकिशन के निवास के निकट ही गैलार्ड रेस्तरां था जहां जयकिशन प्राय: अपने मित्रों के साथ खाते-पीते थे और जयकिशन की असमय मृत्यु के बाद लंबे समय तक उनकी मेज पर 'रिजर्व्ड फॉर जयकिशन' तख्ती लगी रहती थी।

सलीम खान का कहना है कि हर व्यक्ति के कॅरिअर में अच्छा-बुरा वक्त आता है परंतु शंकर-जयकिशन इक्कीस वर्ष तक शिखर सिंहासन पर विराजे। उन्हें राज कपूर ने 1949 में 'बरसात' में अवसर दिया था और 1970 में 'मेरा नाम जोकर' का संगीत सृजन भी उन्होंने किया। उसी समय उनकी शम्मी कपूर अभिनीत 'अंदाज' प्रदर्शित हुई, जिसमें अतिथि कलाकार राजेश खन्ना पर जयकिशन का गीत 'जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना' का फिल्मांकन हुआ था। जब जयकिशन की शवयात्रा जा रही थी तब एक दुकान पर यही गीत बज रहा था।

मात्र इकतालीस की उम्र में जयकिशन चले गए। लता मंगेशकर ने अपने पिता दीनानाथ की मृत्यु के बाद अपने परिवार के खस्ता आर्थिक हालात के दौर में मीलों पैदल यात्राएं कीं और फिल्म में छोटी भूमिका का निर्वाह भी किया। पार्श्वगायन में वह दौर नूरजहां का था, जो देश विभाजन के पश्चात पाकिस्तान चली गई थीं। अशोक कुमार द्वारा निर्मित 'महल' में 'आएगा आने वाला' गीत से लता को सफलता मिली। अपने प्रारंभिक दौर में लता की गायिकी पर नूरजहां का गहरा प्रभाव था, जिससे उन्हें मुक्त होने का आग्रह राज कपूर ने किया। उन्हीं की 'बरसात' के गीतों की लोकप्रियता ने लता के कॅरिअर को खास मकाम दिया। राज कपूर की संगीत टीम में शंकर जयकिशन, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, मुकेश और लता मंगेशकर इतने एक-दूसरे से जुड़े थे कि जब मुकेश का एकल गीत बन रहा होता तब भी लता मंगेशकर वहां उपस्थित रहती थीं। वह विलक्षण टीम भावना का दौर था। इस टीम के मेरूदंड राज कपूर स्वयं गाते भी थे और संगीत का उन्हें ज्ञान भी था। जब उनके पिता पृथ्वीराज सितारा थे, तब बालक राज कपूर संगीतकार आरसी बोराल के कक्ष में तबले पर हाथ आजमाते थे और बोराल के कहने पर ही पृथ्वीराज ने अपने पुत्र को शास्त्रीय संगीत सीखने एक गुरु के पास भेजा था, जहां मुकेशजी भी सीखने आते थे। इस तरह राज कपूर और मुकेश गुरुभाई थे और यह रिश्ता ताउम्र निभाया गया।

लता मंगेशकर मुकेशजी को राखी बांधती थीं। लताजी की टीम में मुकेशजी अमेरिका गए थे और वहां दिल के दौरे में उनकी मृत्यु हुई। जब मुंबई एयरपोर्ट पर राज कपूर अपने गुरुभाई का शव लेने पहुंचे तब उन्होंने कहा कि उनका मित्र पैसेंजर की तरह गया और असबाब की तरह लौट रहा है परंतु इसके एक दशक बाद ही राज कपूर पैसेंजर की तरह दिल्ली गए थे और असबाब की तरह लौटे थे। गुरु भाइयों के जीवन-मृत्यु में कुछ साम्य था मानो वे 'एक दिल के दो अरमान' थे। खून के रिश्तों से भव्यतर होते हैं दिल और सुर के रिश्ते। सुर की डोर तो पृथ्वी से आकाश तक जाती है।

बहरहाल, लता और आशा में घोर प्रतिद्वंद्विता रही परंतु उनके घरों के बीच दरवाजा रहा। शशि कपूर की 'उत्सव' में दोनों बहनों का गीत, 'मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को' दोनों बहनों ने एक साथ नहीं गाया, दोनों अलग-अलग समय पर आकर अपने अंश गाकर गईं परंतु सुर का बहनापा इस गीत में कमाल का ध्वनित होता है। उनके अापसी संबंधों में भले ही तनाव रहा हो परंतु ऐसा लगता है कि लता की घाटी में आशा प्रतिध्वनि की तरह सुनाई पड़ती हैं।