एक दरवेश और सराय की कहानी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 जुलाई 2013
सलमान खान और शाहरुख खान के एक-दूसरे से गले मिलने के अगले दिन सलीम खान साहब से एक पत्रकार ने पूछा कि आपके सामने आपके पुत्र सलमान ने पहल की और शाहरुख खान से पुन: मित्रता की, इस विषय पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है? सलीम साहब ने निहायत ही संजीदगी से पत्रकार से कहा, 'उत्तराखंड में भीषण बाढ़, बिहार में जहरीला खाना खाने से अनेक बच्चों की मृत्यु और फिर गोवा से भी कुछ ऐसे ही समाचार आए। कश्मीर विवाद, मुल्क में भारी राजनीतिक मोर्चाबंदी, टमाटर के भाव बढऩा, महंगाई और भ्रष्टाचार इत्यादि से दुखी देश में दो सितारों के इस मिलन से बड़ी राहत आई है। लेकिन क्या खाने की वस्तुएं सस्ती हो गईं हैं, बच्चों का कुपोषण बंद हो गया है, राजनीति में स्थिरता आ गई है या पूरी दुनिया में अमन-चैन स्थापित हो गया है? सख्त अफसोस की बात है कि दो सितारों के मिलने को मीडिया राष्ट्रीय महत्व दे रहा है। हमारे मुल्क में इतने गंभीर मसले हैं और क्या सचमुच मैं यह मान लूं कि मीडिया में सोचने-समझने वाले लोगों की इतनी कमी है कि एक मामूली बात को इस तरह उछाला जा रहा है। मुझे सिर्फ इस बात की खुशी है कि मेरे बेटे ने यह पहल की।'
सलीम साहब ने सही फरमाया कि आजकल अत्यंत मामूली बातों को महत्व दिया जा रहा है और राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े गहरे मामलों को अनदेखा किया जा रहा है। शाहरुख खान और सलमान खान लोकप्रिय सितारे हैं। उनमें गहरी प्रतिद्वंद्विता है और यह भी कोई नई बात नहीं है। हर कालखंड में सितारों में प्रतिस्पद्र्धा रही है, परंतु वे हमेशा एक-दूसरे के प्रति सामाजिक व्यवहार में विनम्र रहे हैं और उन्होंने अपनी प्रतिद्वंद्विता को अपना निजी मामला बनाए रखा तथा सार्वजनिक मंच पर दोस्ताना सलूक किया है। इस मामले में राज कपूर और दिलीप कुमार आदर्श रहे हैं। आज अभिनय क्षेत्र में विपुल धन है, इसलिए प्रतिद्वंद्विता भी गहरी है। दो सितारे कभी मित्र नहीं हो सकते, परंतु उन्हें दोस्ताने का दिखावा अवश्य करना चाहिए।
दरअसल, सितारों का अहंकार बहुत विराट होता है और उनके इर्द-गिर्द जमा लोग इस आग को हवा देते हैं, क्योंकि मनसबदारी में वे अपना स्थान सुरक्षित रखना चाहते हैं। कुछ पत्रकार कल्पना कर लेते हैं और कुछ दरबारी भी खबरी बन जाते हैं। उसका मजेदार पक्ष यह है कि 'मौका-ए-वारदात' पर मौजूद रहने का दावा करने वाले वहां कभी होते ही नहीं। इसी तरह की बातों ने फिल्म उद्योग को दो खेमों में बंटा हुआ कुछ इस तरह से प्रस्तुत किया, मानो दो पड़ोसी मुल्कों की शत्रुता हो। शाहरुख खान की अंतरंग मित्र प्रियंका चोपड़ा के सलमान खान के घर देर रात तक देखे जाने को बहुत तूल दिया गया, परंतु न सलमान खान की किसी फिल्म में वह ली गईं, न शाहरुख खान से उनके रिश्ते में कड़वाहट आई। इस उद्योग के तमाम रिश्ते और समीकरण हर शुक्रवार को बॉक्स ऑफिस परिणाम से बदल जाते हैं, परंतु ऐसा भी नहीं है, सारे रिश्ते वैसे ही हैं। कुछ चुनिंदा रिश्ते स्थायी हैं। हर उद्योग और हर क्षेत्र में अच्छे-बुरे लोग समान रूप से रहते हैं। औद्योगिक घरानों में गहरी प्रतिद्वंद्विता रहती है, वहां भी शिखर पर जाने या बने रहने का संघर्ष चलता रहता है। राजनीतिक क्षेत्र के वैमनस्य का जिक्र करना तो बेकार है। सभी क्षेत्रों में हमेशा बिचौलिए रहे हैं। जेपी दत्ता की फिल्म 'बंटवारा' के एक दृश्य में एक युवा पूछता है कि रियासतों का जमाना आजादी के बाद लद जाएगा, तब बिचौलियों का क्या होगा? अनुभवी बिचौलिया कहता है कि हर युग में बिचौलिए रहे हैं, स्वतंत्र भारत में भी रहेंगे। सच तो यह है कि स्वतंत्र भारत तो बिचौलियों का स्वर्णकाल सिद्ध हुआ।
सलीम साहब से उस रात शाहरुख खान ने यह कहा कि सलमान के पास तो मार्गदर्शन के लिए आप मौजूद हैं, जबकि वह तो अपने माता-पिता को बहुत पहले खो चुका है। उसने उनसे कहा कि वह अपने बच्चों को सलीम साहब से मिलाने लाएगा। इस तरह उस दिन घरेलू बातें होती रहीं और मीडिया के लिए यह निराशाजनक होता है। शाहरुख खान का माता-पिता को खोने का दर्द और अपने बच्चों की चिंता उसे सिताराई लौह कवच से बाहर आने का अवसर देते हैं। सितारे ही क्या, आम आदमी भी अपने लिए एक लोकप्रिय छवि गढ़ता है और परिवार की फिक्र ही उसे भी छवि से बाहर आने का अवसर देती है। छवियों से मुक्ति और स्वयं का जाननाअत्यंत कठिन है। जब कबीर 'घूंघट के पट खोल तोहे पिया मिलेंगे', लिखते हैं तो उसका अर्थ स्पष्ट है कि ईश्वर घूंघट में नहीं रहता, वह तो सत्य है, जिसे आवरण की आवश्यकता नहीं, परंतु मनुष्य अनेक घूंघटों से अपने को छुपाए रहता है। अहंकार का घूंघट, धन-दौलत का घूंघट, सामाजिक हैसियत का घूंघट इत्यादि। इनसे मुक्ति मिले तो पिया अर्थात सत्य के दर्शन हों। सितारे और आम आदमी सभी अपनी छवियों में कैद हैं और मध्यम वर्ग के आवरण अत्यंत मजबूत हैं।
अगर सलमान खान और शाहरुख खान सितारे नहीं होते तो भी उनमें मित्रता संभव नहीं थी, परंतु उनका रिश्ता यूं उछाला नहीं जाता। अगर दोनों ही किसी भी अन्य क्षेत्र में सफल या असफल होते तो भी वे मित्र नहीं होते, क्योंकि मित्रता के लिए रुचियों की कुछ समानता के अतिरिक्त उस सहिष्णु धरातल की आवश्यकता होती है, जो मतभेद होने पर सम्मान करना सिखाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पाने के लिए वह दूसरे को पहले देनी पड़ती है। सलमान खान दिल से सोचता है और अपनी ही धुन में रमा रहता है। शाहरुख खान दिमाग की सुनता है, ऐसा नहीं कि उसके पास दिल नहीं, परंतु उसकी प्राथमिकता तर्क है। विचार प्रक्रिया के ये दो अंदाज अच्छा या बुरा आदमी होना तय नहीं करते, ये सिर्फ नजरिये हैं। नजर को नजरिया मत समझें। सलमान खान हातिमताई की तरह सात सवालों के जवाब खोज रहे हैं, शाहरुख के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं है। सलमान खान एक दरवेश हैं तो शाहरुख खान सराय - स्थिर और ठोस। दरवेश और सराय की मित्रता एक रात की होती है, दरवेश हमेशा मुसाफिर होता है, चंचल और बेचैन।