एक दिन पति का / मनोहर चमोली 'मनु'
जग्गू आज बहुत खुश था। उसके चेहरे पर तेज था। ये पहला अवसर था,जब सबने उसे चहकते हुए देखा। नहीं तो वो सुबह ही अपना राग अलापता था। उसके चेहरे में हताशा, निराशा, मायूसी, मातम और दुख के बादल छाये रहते थे। सुबह से लेकर शाम तक वो हर किसी की टेबल पर जाता। अपना रोना रोता। सब उसे झूठी तसल्ली देते। उसके साथ अपना ठाइम पास करते और शाम होते ही अपने घरों को लौट जाते।
एक मैं ही था,जो उसे दो टूक शब्दों में खरी-खोटी सुना देता था। जग्गू चिकना घड़ा था। मेरी बातें तो सुनता मगर उन पर अमल न करता। उसकी बातों में उसकी बीवी ही शामिल रहती थी। अपनी और अपनी बीवी की अंतरंग बातें भी वो मुझे बड़ी सरलता और सहजता से साझा करता।
मैं उसे एक ही बात कहता, ‘बच्चू। मैंने कहा था न कि सोच समझ कर शादी करना। अब शादी कर ही ली है तो भुगत या समझौता कर।’ वो भी हमेशा यही जवाब देता, ‘अभी तू कुँवारा है न। इसलिए ज्यादा फड़फड़ा रहा है। तेरा बोलने का समय है। मेरा भी समय आएगा, जब मैं बोलूंगा और तू सुनेगा।’
मैं सोचता कि दुनिया के पति हुआ करें, जैसा जग्गू है। मैं तो अपनी राह ही चलूंगा। बीवी की एक न मानूंगा। जो मेरा मन करेगा, वो ही करूंगा। कौन रोकेगा मुझे।
शादी के बाद पता चला कि कमोबेश सभी जग्गू की तरह हो जाते हैं। अन्तर सिपर्फ इतना होता है कि सब जग्गू की तरह अपनी हालत को सार्वजनिक नहीं करते।
जग्गू को खुश देखकर मेरा माथा ठनका। सब खुश थे कि चलो जग्गू आज खुश तो है। पर मैं सोच रहा था कि जग्गू खुश क्यों है। कोई शादी के बाद खुश कैसे रह सकता है। ये सवाल मुझे बार-बार परेशान कर रहा था। मुझसे रहा न गया। मैंने जग्गू से खुश होने का कारण पूछा।
जग्गू बोला, ‘यार मेरी बीवी सुधर गई है। पिछले दो-तीन दिनों से वो बड़ा मीठा बोल रही है। मेरा बड़ा ख्याल रख रही है। आजकल लग रहा है कि मैं भी एक पति हूं।’
मैंने तपाक से पूछ लिया,‘यार। भाभी को कुछ मंगाना होगा न। तभी वो तेरे से मीठा बोल रही है।’
जग्गू बोला,‘पहले मैं भी यही सोच रहा था। मगर उसकी कोई पफरमाईश ही नहीं है। अव्वल तो वो मुझसे कुछ मंगाती ही नहीं। वो तो कहती है कि मुझे ध्निया खरीदने की भी तमीज़ नहीं है।’
‘अरे उसे मायके जाना होगा या किसी रिश्तेदार में कोई शादी होगी।’ मैंने कहा।
‘ऐसी मेरी किस्मत कहां। वो सात जनम के लिए मायके चली जाती तो मैं तुम्हें शहद के घड़े से नहला देता। रही बात रिश्तेदारी में शादी की। तो उसे किसी की शादी में जाने से मैं तो क्या उसका बाप भी नहीं रोक सकता। खैर मुझे इससे क्या। मुझे तो आम खाने से मतलब है,न कि पेड़ गिनने से।’ जग्गू बोला। यह कहकर वह हमेशा की तरह औरों की टेबल में जा-जाकर अपनी खुशी का इज़हार करने लगा।
मेरे तो कलेजे में साँप लौटने लगे। मेरा किसी काम में मन ही नहीं लगा। बॉस की भी डांट खानी पड़ी। लंच में भी कुछ खाने का मन नहीं किया। मैं लगातार एक ही बात सोच रहा था। आखिर बात क्या है कि जग्गू खुश है। उसकी बीवी तो अपनी नाक में मक्खी भी नहीं बैठने देती। जग्गू के हर काम में नुक्स निकालती है। बीवी की अनुमति के बिना जग्गू एक पाई भी खर्च नहीं कर सकता। यही नहीं अगर ऑफ़िस में कभी जग्गू ने एक प्याली चाय किसी को पिला दी, और उसकी बीवी को पता चला तो समझो चार दिन तक जग्गू को घर में चाय नहीं मिलती। मजाल है कि जबसे जग्गू की शादी हुई है, तब से उसने एक रूमाल भी अपनी इच्छा से खरीदा हो।
शाम के पाँच कब बज गए,पता ही नहीं चला। मैं अभी भी जग्गू के बारे में सोच रहा था। तभी जग्गू आया और मेरी टेबिल में झुक गया। कहने लगा, ‘जॉनी। घर नहीं जाना? मैं तो चला। मेरी बीवी ने सुबह मेरी कमीज़ के बटन लगाते हुए कहा था कि आज ज़रा जल्दी आ जाना। ओ.के.। बॉय।’ यहकह कर जग्गू चला गया।
मैं भी अपना सामान समेटने लगा। भारी मन से मैं ऑफ़िस से बाहर आया। मैंने घर जाने के लिए बस पकड़ी। बस में बहुत भीड़ थी। खड़े-खड़े ध्क्का खाते हुए मैं अपने घर के दरवाजे पर पंहुचा। मैं अभी भी जग्गू के खुश होने का कारण खोज रहा था। मैंने ऑफ़िस में ही तय कर लिया था कि अपनी बीवी से पूछुंगा कि जग्गू खुश क्यों है।
मैंने दरवाजा खटखटाया। मेरी बीवी ने दरवाजा खोला। शाम के छह ही बजे थे। वो सजी-ध्जी मेरे सामने खड़ी थी। होंठों पे लिपिस्टिक्, गालों में सफेद पाउडर, माथे पे गोल-बड़ी बिंदी, कानों में सोने के कुण्डल, गले में सोने का हार, चमचमाता मंगलसूत्रा और दोनों हाथों में खनकती हुई सतरंगी चूड़िया। सूर्ख लाल गोटेदार साड़ी की चमक सीधे मेरी आँखों में चुभ रही थी। छत्तीस तरह के श्रंगारों में मुझे बमुश्किल मेरी बीवी दिखाई दी।
मैं चौंका तो था ही। पता नहीं मुंह से ये क्यों निकला, ‘मायके जा रही हो क्या?’
‘आज के दिन कोई अपने मायके जाता है क्या।’ मेरी बीवी मुस्करा रही थी। उसके इस वाक्य में इतनी मिठास भरी थी कि शायद बेशकीमती शहद भी शरमा जाए।
‘आज के दिन? आज ऐसा क्या है?’ मैंने पूछा।
बीवी ने मेरे कॉलरों को ठीक करते हुए कहा, ‘आज करवाचैथ है। चलो जल्दी से नहा लो। देखो मैंने आज सुबह से एक बूंद पानी भी नहीं पिया।’
मैं खिलखिलाकर हँस पड़ा। इतना हँसा कि मेरी बीवी घबरा गई। वो दौड़कर पफोन पर झपटी। उसने किसी डॉक्टर को फोन घुमाया। पलक झपकते ही डॉक्टर आ गया। मैं तब भी हँस ही रहा था। बड़ी मुश्किल से मैंने अपने पर काबू पाया।
डॉक्टर समझदार था। उसने मुझसे पूछा,‘सब ठीक तो है न? क्या बात क्या तुम्हारा बॉस मर गया? क्या कोई लॉटरी लगी है। ’ मैंने डॉक्टर साहब को जग्गू वाला किस्सा सुनाया और ये भी बताया कि आज करवाचैथ है। डाक्टर साहब झट से उठे। कहने लगे, ‘अरे बाप रे। मैं तो भूल ही गया। मेरी बीवी मेरा इन्तजार कर रही होगी।’ यह कहकर डॉक्टर साहब बिना फीस लिए ही चल दिए।
मेरी बीवी जग्गू को जानती थी। वो चुप रही। मैंने भी राहत की सांस ली। आखिर मैंने कारण जान जो लिया था। मैं मन ही मन प्रसन्न था कि बस आज के दिन तक ही जग्गू खुश रहेगा। कल आफ़िस आते हुए उसका लटकता हुआ चेहरा सबको दिखेगा।
बेचारा जग्गू मेरी तरह भी नहीं समझ पाया कि आज करवाचैथ है। आज तो किसी की पत्नी भी कड़वा नहीं बोलेगी। पति की सलामती की दुआ करेगी। पूजा करेगी। पैर छुएगी। ताकि कल से पति पत्नी की सलामती में लगा रहे। पत्नी के कड़वे बोल सुनने को तत्पर रहे। पर ये भी क्या कम है कि साल में दो-चार दिन पति का आदर-सत्कार होता है। उसका ख्याल रखा जाता है। धन्य है वो जिसने ये करवाचैथ का व्रत रखा है। जिसने भी ये व्रत रखा होगा, कमाल की खोपड़ी वाला होगा। उसे पता था कि साल में एक अवसर ही ऐसा दिया जाए, जिसमें पुरुषों को पति होने का अहसास हो। बेचारे पतियों से ज्यादा खुशी भी तो बर्दाश्त नहीं होती। यही कारण है कि साल में यह करवाचैथ एक ही बार आता है।