एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 फरवरी 2019
आज राज कपूर के ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर का जन्मदिन है। इस अवसर पर उनकी मौजूदगी में पत्नी बबीता, सुपुत्रियां करिश्मा और करीना तथा दामाद सैफ अली खान के साथ पारिवारिक भोज आयोजित होगा। ज्ञातव्य है कि 1988 में अपने पिता की मृत्यु के पश्चात रणवीर कपूर अपनी मां कृष्णा कपूर के साथ रहने उनके चेंबूर निवास पर चले गए, क्योंकि पति की मृत्यु के बाद कृष्णाजी को सहारे की आवश्यकता थी। उनके भव्य बंगले में आधा दर्जन बड़े साइज के सर्व सुविधा संपन्न शयनकक्ष हैं। बबीता कपूर ने वहां रहना स्वीकार नहीं किया। ज्ञातव्य है कि रणधीर कपूर ने दक्षिण मुंबई के श्रेष्ठि वर्ग के रिहाइशी क्षेत्र की सिल्वर आर्च नामक बहुमंजिला में सबसे ऊपर की मंजिल खरीदी थी। विवाह के पश्चात वे अपनी पत्नी के साथ वहीं रहे और उनकी पुत्रियों का जन्म भी वहीं हुआ। बबीता कपूर ने बांद्रा में रहने का निर्णय लिया, जो उन्हें सुविधाजनक लगा। अपनी सुपुत्रियों को अभिनय क्षेत्र में प्रवेश दिलाने के लिए वे कटिबद्ध थीं। उस समय रणधीर कपूर ने अपना सिल्वर आर्च का फ्लैट बेचा और उससे मिलने वाला सारा धन तीन समान हिस्सों में अपनी पत्नियों और पुत्रियों को दिया। स्वयं अपने लिए उन्होंने कुछ नहीं रखा। एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 'जवानी दिवानी', 'कसमे वादे' और तनुजा के साथ एक सफल फिल्म में अभिनय किया। उनकी अभिनीत 'चाचा-भतीजे' और 'रिक्शावाला' भी सफल रही परंतु उनकी अभिनीत असफल फिल्मों की संख्या बहुत अधिक है। अपने छोटे भाई ऋषि कपूर के समान सफलता उन्हें नहीं मिली। इसी तरह अपने लंबे कॅरिअर में उन्होंने केवल तीन फिल्मों का निर्देशन किया। 'कल आज और कल', 'धरम-करम' तथा 'हीना'। रणधीर कपूर ने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया परंतु उनका स्वभाव ऐसा है कि जीवन की बारात में दूल्हा बनने के बदले उन्होंने नाचने गाने वाला बाराती बनना ही पसंद किया और सफलता शासित समाज के गलत जीवन मूल्य को उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। इस प्रक्रिया में उनसे एक चूक यह हुई है कि उन्होंने स्वयं को तटस्थ बनाए रखा, जबकि तटस्थता एक मिथ है। हर व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण व समस्याओं पर अपना पक्ष रखना चाहिए। आप सही हो या गलत हो परंतु जीवन के पानी में रहते हुए स्वयं को सूखा कैसे रख सकते हैं। कोई व्यक्ति भारतीय जनता पार्टी के साथ है या कांग्रेस के साथ है, समाजवादी है या पूंजीवादी स्पष्ट करना जरूरी है। जीवन के कुरुक्षेत्र में आप पांडव पक्ष के साथ हैं या कौरव पक्ष के साथ हैं। इसे रेखांकित करना आवश्यक है। उन्होंने लहर के साथ बहना पसंद किया, जबकि लोकप्रिय प्रवाह के खिलाफ अपने सत्य के लिए तैरना जरूरी है, भले इस प्रयास में व्यक्ति डूब क्यों न जाए। अपने विचार के प्रति संपूर्ण विश्वास रखते हुए डूबने वाले व्यक्ति की उंगलियां ही इतिहास लिखती हैं। रणधीर कपूर का 'बाकी इतिहास' बनने वाली तटस्थता ही उनकी कमजोरी रही है।
कुछ समय पूर्व ही कपूर परिवार ने आरके स्टूडियो बेचने का निर्णय लिया। रणधीर कपूर को इसका विरोध करना चाहिए था परंतु तटस्थ बने रहने से राज कपूर की कर्मभूमि बेच दी गईं। अगर राज कपूर के तीनों पुत्र फिल्म निर्माण जारी रखते तो ऐसा नहीं होता। अगर उनकी बनाई फिल्में असफल भी होती तो घाटा पूंजी निवेशक को होता। टेक्नोलॉजी ने प्रदर्शन के इतने मंच बना दिए हैं कि लागत निकल ही आती है।
रणधीर कपूर निर्देशित 'धरम-करम' कर्म का गीत है 'एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल'। ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर के रहते ही स्टूडियो बेचने का निर्णय हुआ जो भले ही उन्होंने न लिया हो परंतु इसका विरोध भी नहीं किया। अब वे 'मीठे बोल' बचे रहने से मुतमइन हैं। तटस्थता मुतमइन नामक भरम रचती है। स्टूडियो फैक्ट्री एक्ट के तहत बंद किए जाने संबंधित कार्य होते हैं और इस दौर में दुकान खोलने से अधिक काम दुकान बंद करने के लिए करने होते हैं। इन्हीं सब में वे व्यस्त हैं। तमाम कर्मचारियों को भरपूर मुआवजा दिया जा चुका है। विगत 50 वर्षों से प्रगट सिंह उनका ड्राइवर है। उसने सेवानिवृत्त होने से इनकार किया है। इस तरह की वजेदारी का निर्वाह करने का श्रेय प्रगट सिंह के साथ रणधीर कपूर को भी दिया जाना चाहिए। मालिक और सेवक के रिश्ते दोनों के ही व्यवहार के प्रमाण-पत्र हैं। रणधीर कपूर ने हमेशा अपने मित्रों का साथ दिया है और संकट के समय साथ रहे हैं। विचारणीय यह है कि क्या अच्छा होना ही यथेष्ट है या जीवन में निर्णय लेना महत्वपूर्ण है। एक बार सिनेमा के पहले कवि चार्ली चैप्लिन ने कहा था कि व्यक्ति की हैसियत से अधिकतम को लाभ मिलने पर ही हैसियत की सार्थकता निर्भर करती है। बहरहाल, रणधीर कपूर को जन्मदिन की बधाई और वे अपनी निरीह तटस्थता से मुक्त हो- यही प्रार्थना है।