एक दो तीन चार / अशोक भाटिया
एक: पिता-सा
तुम्हारी दूसरी शादी हो चुकी है। उससे पहले मैंने तुम्हें आखरी बार विदा किया था। मेरी कार में बैठी-बैठी तुम खूब रोई, फिर कहा था–बड़े अच्छे-से विदा कर रहे हो।
इससे पहले तुमने दुल्हन रूप में सजने के लिए मुझसे बीस हजार रूपये मांगे थे। उससे भी पहले तुमने मुझसे सेंडिल, मेकअप वगैरा का सामान भी खरीदवाया था। अब वह सब मेरी आँखों के सामने घूम रहा है। तब तुमने यह भी कहा था–मेरे पिता हैं, लेकिन यह सब तुमने ही खरीदवाए हैं। "
दो: माँ-सा
जब मैं पहले-पहल तुम्हारे पास आई थी, तो मेरा दूसरा रिश्ता हो चुका था। मैंने तुम्हें शादी पर बुलाया था और अपने दूसरे पति और सास को लेकर अपना डर भी जताया था। मेरी माँ इस दुनिया में नहीं है। पर तुमने समझाया था कि नए घर में किसी भी सूरत में पति के पाँव नहीं छूने। पति-पत्नी का बराबर का रिश्ता होता है। नाम से बुलाने में उसे बराबरी का एहसास होता रहता है। ' मुझे इसका फायदा भी हुआ। तुमने यह भी समझाया था कि पति को कभी सेक्स करने से नहीं रोकना।
हालांकि दूसरी शादी में भी मुझे कोई उम्मीद नहीं दिखती थी। पर तुमने समझाया कि अपना फ़र्ज़ पूरा करती रहो। पौधा नई जगह लगने में कई बार वक्त लेता है। मेरी माँ मुझे ऐसे ही समझाया करती थी।
तीन: प्रेमी-सा
प्रेमी उवाच: तुम्हें घूमने का बड़ा शौक है। कभी भी लॉन्ग ड्राइव पर जाने को तैयार रहती हो। आज मैंने पहली बार इसकी हामी भरी है। तुम सातवें आसमान पर पहुँच गई हो। मुझे कहा है—अच्छे कपडे पहनकर आना...मेरी फ्रेंड कहती थी कि ये तो तुम्हारे पति से भी स्मार्ट हैं। ' उस दिन हम खूब घूमे और जी-भर मस्ती की। विदा होते हुए तुमने कहा था—तुम्हारे साथ टाइम स्पेंड करके बड़ा अच्छा लगता है। ये दोस्ती के दिन हमेशा याद रहेंगे।
जब हम सारी हदें पार कर चुके तो एक दिन तुमने कहा था–मुझसे शादी कर लो। ' —यह पॉसिबल नहीं।' —क्यों पॉसिबल नहीं? लोग दो-दो किए फिरते हैं। जिस दफ्तर में मैं हूँ, वहाँ मैक्सिमम के बाहर लव-अफेयर्स हैं। '
फिर एक दिन...घूमते-घूमते तुमने कहा—पिछले जनम में तुमने धोखा किया, इसीलिए इस जनम में बड़े हो। अब अगले जनम में गड़बड़ नहीं करनी। '
(2) प्रेमिका उवाच: कल आपने मेरी छह मिस्ड कॉल का जवाब नहीं दिया। जैसे आपको टेंशन होती, है, ऐसे ही मुझे भी होती है।
आपने 'सॉरी' कहा था। फिर मुझे खूब घुमाया। खिलाया। एक ही गिलास में एक ही जगह से दोनों ने पानी पिया। तभी मुझे लगा था कि मेरा पति तुम जैसा होना चाहिए।
चार: पति-सा
उस दिन आनंद के चरम क्षणों में तुमने मेरे दोनों हाथ थाम लिए थे। मेरे भावों की नदी बह निकली थी। फिर तुमने कहा था कि मेरे हाथ खुरदरे हैं। सोच रहा हूँ, कोल्ड क्रीम ले आऊँ। 'मैंने कहा था-आपको प्यार हो गया है।' दरअसल मुझे दोस्ती की ठंडक सिर्फ तुमने दी। यह भी सच है कि इतनी बारीकी से मुझे न किसीने देखा, न देख पाएगा...
...एक रात मिलन के क्षणों से ठीक पहले मैंने कहा था–गार्नियर की नाईट क्रीम लेके आप आओगे। 'तुमने कहा था–ऐसे तो मेरी बीवी भी नहीं कहती।' मैंने कहा था-मैं दूसरी हूँ न, पहली से अलग। '
एक बार तुमने पूछा था कि तुम मेरे दूसरे पति हो या तीसरे? 'मैंने मुस्कराकर कहा था—तीसरे के पास अभी जाना है।' दरअसल मेरे पहले, दूसरे, तीसरे तुम ही हो।
मेरे सारे रिश्ते तुममें ही घुल-मिल गए हैं। कोई एक रिश्ता मुश्किल से निभा पाता है, तुमने चारों रिश्ते खूबी से निभाए हैं। इतनी बारीकी से मुझे न कोई समझा, न समझ पाएगा। ' -0-