एक धार्मिक व्यक्ति की कहानी / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
मंटू मास्टर पूरे इलाके में एक धार्मिक व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। स्कूल से आकर, साढ़े चार से पांच बजे तक वे आश्रम में पहुँच जाते हैं। बाबा के चरणों में माथा सटाकर चरणों को आहिस्ते-आहिस्ते दबाते रहते हैं ताकि बाबा जग जाएँ। जब बाबा उठकर संध्या आरती के लिए तैयार होने जाते हैं, तो वह भी उठकर पेड़-पौधों को पटाने लगते हैं। दो घंटों तक संध्या-आरती और नाम-जप में संलिप्त रहते हैं। साधु संतों को भोजन कराकर पत्तल उठाते हैं और रात दस बजे घर आते हैं।
एक दिन उन्होंने बाबा से कहा, "बाबा, एक निवेदन है। बाबा, मेरे पिताजी मरणासन्न है। एक बार आप कृपा कर उन्हें दर्शन दे दीजिए ताकि उनको स्वर्ग की प्राप्ति हो जाय।
बाबा ने आंगिक भाषा में सम्मति जताई।
आज बाबा दो-चार चेलों के साथ मंटू मास्टर के घर पहुँच गए। कोठरी के दरवाज़े पर, बरामदे में कई गाय-बैल बंधे थे। पूरा बरामदा गोबर से लथपथ था। साहस करके बाबा ने देहरी पार की। चारों तरफ़ कफ और खखार... बीच में टूटी खटिया... मैले-कुचैले कंबल के चिथड़े का बिछौना... उसपर एक महकता बूढ़ा शरीर ! इस वीभत्स परिदृश्य ने एक मौन-चीत्कार के साथ बाबा को बाहर धकेला। वे छटपटाकर आंगन में आ गये।
मंटू मास्टर मोटरसाइकिल खड़ा कर रहे थे। बाबा को आया देखकर गदगद हो गए। माथा सटाकर प्रणाम किया। तभी बाबा डांटते हुए बोले, "तुमने अपने बाप की क्या हालत बना रखी है?" मंटू ने हाथ जोड़कर जवाब दिया, "बाबा, आप ग़लत समय पधारे हैं। अभी मेरे भाई की बारी है। वह महामूर्ख, शठ और पापी है। मेरी बारी में आकर देखिए, मैं पिताजी को कैसे रखता हूँ !"
बाबा निर्वाक हो गए। वे केवल ताकने लगे, उस धार्मिक व्यक्ति के मुंह की तरफ।