एक नई फिल्म और सेंसर के पुराने तरीके / जयप्रकाश चौकसे

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एक नई फिल्म और सेंसर के पुराने तरीके

प्रकाशन तिथि : 24 जनवरी 2011

प्रकाश झा की सहायक रहीं अलंकिृता श्रीवास्तव ने उनके लिए पूरब कोहली और गुल पनाग अभिनीत 'टर्निंग 30' नामक फिल्म बनाई है। जिसमें महानगर के बदलते स्वरूप को प्रस्तुत किया गया है। सेंसर बोर्ड ने कुछ आपत्ति दर्ज की है जो सिर्फ उसके दकियानूसी होने को रेखांकित करता है। उन्हें फूहड़ता पर एतराज नहीं होता परंतु स्वतंत्र विचार रखने वाले पात्रों से सेंसर घबरा जाता है। मुद्दा यह नहीं है कि अलंकिृता ने कैसी फिल्म बनाई है, मुद्दा यह है कि सेंसर अपने दोहरे मानदंड से कब बाज आएगा। मुद्दा यह भी नहीं है कि महानगरीय महिला प्रेम, विवाह और सेक्स के बारे में क्या सोचती है, मुद्दा यह है कि औरत सोचती है और स्वयं को उजागर करना चाहती है। वह अपनी आर्थिक आजादी का विस्तार चाहती है। सभी क्षेत्रों में सेंसर और पारंपरिक समाज सोचने वाली महिला से घबराते हंै।

इस देश में बाल विवाह की आलोचना के नाम पर बाल विवाह को महिमा मंडित करने वाले कार्यक्रम दिखाए जाते हैं परंतु तीस वर्ष तक विवाह नहीं करने वाली महिला के मानस को दिखाने पर रोक लगाना चाहते हैं। समाज का गठन कुछ ऐसा है कि विवाह को जीवन का केंद्र बना दिया गया है। पच्चीस के बाद के कुंआरेपन को अफवाह का विषय बनाया जाता है। इस सोच की जड़ में यह बात है कि बेटी की जवाबदारी से लोग मुक्ति चाहते हैं। मानो विकसित होते ही वह जीवन की वैतरणी पार कर स्वर्ग में स्थान पाएगी। क्या विवाह सचमुच नारी की समस्याओं का अंत है या नई शुरुआत है?

दोहरे मानदंड की हद यह है कि बेटे में जिस साहस को जीवन का अनुभव या बड़े होने की प्रक्रिया का अनिवार्य अंग माना जाता है, उसी साहस को लड़की के लिए कलंक माना जाता है। बेटों के लिए अपराध का रास्ता खोल दिया जाता है और बेटी को मिथ्या अपराध बोध के वजन से दबा दिया जाता है। यह सारी घिनौनी बुनावट इतनी महीन है कि इसके दांव-पेंच समझने में उम्र गुजर जाती है। अलंकिृता श्रीवास्तव ने कैसी फिल्म बनाई है और प्रकाश झा जैसे फिल्मकार ने उसे क्यों बनाया है, यह हम नहीं जानते। परंतु सेंसर बोर्ड नैतिकता का स्वयंभू मालिक बनकर उसे रोके, इसका विरोध आवश्यक है। महानगरीय आधुनिका स्वयं को नए ढंग से खोज रही है और उजागर होना चाहती है। इसका स्वागत है परंतु कई बार ऐसा भी देखा है कि आधुनिकता भी नया मुखौटा है और साहस के नाम पर चौंका देने को भी क्रांति मान लिया जाता है। आधुनिकता तर्क पूर्ण ढंग से सोचना है, सतह के पार देखना है। वह विद्रोह के लिए विद्रोह नहीं है।