एक नए इन्फ्लूएंजा का संभावित आगमन / जयप्रकाश चौकसे

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एक नए इन्फ्लूएंजा का संभावित आगमन
प्रकाशन तिथि :03 अप्रैल 2018


हर बस्ती में हम देखते हैं कि सबसे अधिक दुकानें दो वस्तुएं बेच रही हैं- खाने-पीने का सामान और दवाएं बेची जा रही हैं। इनका आपसी रिश्ता यह है कि खान-पान में मिलावट और इन ठियों पर गंदगी के कारण बीमारियां फैल रहीं हैं और दवा की दुकानें भी अच्छा व्यवसाय कर रही हैं। विकास इन्हीं क्षेत्रों में हो रहा है। दोनों क्षेत्रों में मुनाफे का गहरा अंतर है। भोजन व्यवसाय में उत्पादन व्यय पर लगभग सौ प्रतिशत मुनाफा होता है, जबकि दवा व्यवसाय में कम मुनाफा होता है। अरसे पहले इंदौर के सराफा क्षेत्र में दवा की एक दुकान का नाम था 'फोर परसेंट मेडिकल शॉप!' यह गुजरे जमाने की बात है। आज मुनाफे का प्रतिशत बढ़ गया है परंतु खाने के ठियों के प्रतिशत की बराबरी कोई अन्य वैध व्यवसाय नहीं कर सकता। इस 'अध्यात्मिक देश' के लोग बड़े भोजन प्रेमी हैं। नीरद चौधरी का विचार था कि भारत में पुनर्जन्म अवधारणा भी इसलिए है कि हम बार-बार जन्म लेना चाहते हैं ताकि स्वादिष्ट भोजन कर सकें। सादगी नहीं वरन तड़क-भड़क और भोग-विलास हमारी विचार प्रक्रिया में मजबूती से जमे हुए हैं। हमारी प्रार्थनाएं प्रसाद केंद्रित रहती हैं। साबूदाने की खिचड़ी और इसी तरह के अन्य पकवान हमारे उपवास का हिस्सा हैं।

चिंतक जेनेट टोबियास ने एक सूचना दी है कि नए प्रकार का इन्फ्लूएंजा फैलने वाला है। चीन के आकाश में उड़ने वाले परिंदों में इसे देखा गया है परंतु अभी तक मानव इसकी चपेट में नहीं आए हैं। इसका मूल कारण यह है कि हमने अपने वनों को नष्ट कर दिया है। मनुष्य के लालच ने वृक्षों को काट दिया है और हम यह भी भूल गए कि वृक्ष थमे हुए मनुष्य हैं और मनुष्य चलते-फिरते वृक्ष। कुछ दिन पूर्व ही एक तेंदुआ 'भारत के सबसे अधिक स्वच्छ शहर' में घुस आया था और उसने एक मनुष्य पर आक्रमण भी किया था। किसी दौर में एक राजा अपना संदेश अपने प्रतिनिधि द्वारा दूसरे राजा के दरबार में भेजता था। उसी तर्ज पर एक तेंदुआ शहर में आया था और उसका संदेश यह था कि आपने हमारे वनों को वृक्षहीन कर दिया है, इसलिए हम आपके सीमेंट के जंगल में संदेश देने आए हैं। आप चाहें तो इसे चेतावनी समझ लें।

चीन की अर्थव्यवस्था ने एक मध्यमवर्गी को जन्म दिया है, जो अब अपने लिए अधिक सुविधाओं की मांग कर रहा है। असंतोष की इस लहर ने चीन के हुक्मरान को चिंता में डाल दिया है। हुक्मरान का स्वप्न है कि दो दशक बाद चीन विश्व के लिए बड़े फैसले लेने की शक्तिशाली अवस्था में पहुंच जाए। उसकी महत्वाकांक्षा है कि निर्णायक फैसले अमेरिका नहीं वरन चीन को लेने चाहिए। हमारी अर्थव्यवस्था ने भी एक विलासी मध्यम वर्ग को पनपने का अवसर दिया है। उसकी भी इच्छाएं बढ़ रही हैं। जैसे-जैसेे अन्याय व आर्थिक खाई फैलती जाती है, वैसे-वैसे सुविधाओं के लिए इच्छाएं फैलती जाती हैं।

जैनेट टोबियाज ने ही यह बताया है कि 1918 में पूरे विश्व में पचास लाख लोग मरे थे, जिसमें भारत के सत्रह लाख लोग थे। व्याधियों में हम अपने एक-तिहाई लोग खो देते हैं। मामला सड़क दुर्घटना का हो या रोग से मृत्यु का हो भारत के पास विश्व का नेतृत्व है। एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि संसार में सबसे अधिक कैंसर रोगी भारत में हैं और अगले दशक में यह आंकड़ा भयावह हो जाएगा। अगर अन्याय, असमानता और रोग इत्यादि का ओलिंपिक आयोजित हो तो भारत सबसे अधिक स्वर्ण पदक जीत सकता है।

चीन अपने मेहनती मध्यम वर्ग में बढ़ते असंतोष को झटका देने के लिए कई जतन करता है। मसनल, डोकलाम में अपनी सेना भेज देना। वहां का हुक्मरान जानता है कि राष्ट्रवाद के नशे में गाफिल होते ही लोग अपने असंतोष को भूल जाते हैं। वे जहर से जहर मारने में विश्वास रखते हैं। विगत दशकों में चीनी व्यंजन पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गए हैं। हम जब यात्रा करते हैं तो देखते हैं कि जगह-जगह खान-पान के ठियों पर लिखा होता है कि चीनी व्यंजन उपलब्ध हैं। यहां तक कि दस बॉय दस फीट की दुकान भी चीनी व्यंजन बेचने का दावा करती है। क्या इसी तर्ज पर वे अपने आकाश में उड़ते परिंदों को हुक्म देंगे कि अब वे भारतीय आकाश का रुख करें। इस तरह व्याधियों के क्षेत्र में भी एक और डोकलाम हो जाएगा।

भारत में मेडिक्लेम के मामले में सारे नियम ग्राहक विरोधी हैं। हमारे यहां भी आम लोगों के लिए मेडिकल इंशोरेंस की घोषणा हुई है पर घोषणाओं के क्रियान्वयन के लिए साधनों की जुगाड़ नहीं की जातीं। कागजी घोषणाएं हमारी गिजा है और 'हमें तो भूख ने ही बड़े प्यार से पाला है।'

ज्ञातव्य है कि ये सारी जानकारियां टोबियाज के वृत्तचित्र 'द अनसीन एनिमी' (एक अदृश्य शत्रु) में दी गई हैं। संभावित विध्वंस की चेतावनी भी सेल्युलाइड पर दर्ज की गई हैं। शोबिता धर द्वारा जेनेट से लिए साक्षात्कार पर यह लेख आधारित है।