एक पहेली / अशोक भाटिया
मेरे देखते-देखते तुम्हारा अपने पति से तलाक हो गया है। अब मेरे पास आना तुम्हारी विवशता हो गई है। मेरे पास तुम कितना अपने लिए आती हो, कितना मेरे लिए - कहा नहीं जा सकता।
तुम्हारे तलाक के दुःख में तुम्हारी मां चल बसी। अब तुम्हारे पिता तुम्हारी दूसरी शादी कर देना चाहते हैं। पर कितनी अपने और कितनी तुम्हारे फायदे के लिए- कहा नहीं जा सकता।
तुमने भी अपने साठ वर्षीय विधुर पिता को शान्त करने के लिए एक स्त्री की तलाश शुरू कर दी। बात बेशक बनी नहीं, पर यह तलाश कितनी पिता के लिए थी, कितनी तुम्हारे अपने लिए - कहा नहीं जा सकता।
घर में पिता के कलशे क्लेश से परेशान होकर तुम मेरे पास आती रही हो। गाहे-बगाहे कहती रही हो कि मैंने तुम्हारे साथ कई रिश्ते निभाए हैं। यह तुमने कितना अपने लिए कहा, कितना मेरे लिए - कहा नहीं जा सकता।
सच यह है कि किसी भी तरह तुम्हारे काम आना मुझे हमेशा अच्छा लगता रहा है। कितना अपने लिए अच्छा लगा, कितना तुम्हारे लिए- कहा नहीं जा सकता।