एक पेंटिंग की दास्तां / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
एक पेंटिंग की दास्तां
प्रकाशन तिथि : 26 जून 2019


आजकल चित्रकारी कला क्षेत्र के कॉफी के प्याले में तूफान आया है। मुद्दा है पोलैंड में जन्मे चित्रकार फेलिक्स टोपोलस्की द्वारा 1946 में बनाई गई एक पेंटिंग जिसमें महात्मा गांधी का रक्तरंजित शरीर और धुआं उगलती रिवाॅल्वर है। हत्यारे के बीच नजर आती है। हत्यारे प्राय: अपना चेहरा और पहचान छुपाने में सफल होते हैं। यह चित्र राष्ट्रपति भवन के कला संग्रहालय में संजोकर रखा गया है। महात्मा गांधी की हत्या के 2 वर्ष पूर्व बनाया गया ये चित्र एक घटना का पूर्वाभास कहा जा सकता है। सच तो यह है कि महात्मा गांधी की हत्या का एक प्रयास सन 1946 में भी किया गया था। जब वे मुंबई से पुणे कार द्वारा जा रहे थे। पुलिस ने प्रयास विफल कर दिया और दोषी पकड़ा गया परंतु महात्मा गांधी ने पुलिस से निवेदन किया कि वे उसे छोड़ दें। गांधी के आदर्श में दंड नहीं वरन् दया शिखर मूल्य है। क्या यह संभव है कि चित्रकार ने इसी असफल प्रयास से प्रेरित होकर चित्र बनाया और उसे भविष्य देख लेने की दिव्य क्षमता नहीं बनाया जाए। हम हर चीज को गरिमा मंडित करते हैं। हमने अपने इतिहास को भी रोमांटिसाइज किया हुआ है। इस कलाकृति के कुछ और संस्करण अन्य कलाकारों ने बनाए हैं और इस महान क्षेत्र में इसे नकल नहीं कहा जाता वरन् आदरांजलि माना जाता है। साहित्य में उद्धहरण कहा जाता है। अपने काव्य में अपने पूर्वज की एक पंक्ति को शामिल करके भी आदर ही दिया जाता है। संस्कृत में परंपरा से प्रेरित व्यक्ति अपने निजी योगदान से अपनी परंपरा को समृद्ध करता है। इसी तरह की एक और कृति में हत्या करने के बाद हत्यारे की रिवॉल्वर का मुंह आवाम की ओर है और सच तो यही है कि जिस दिन गांधी जी की हत्या हुई उस दिन हर व्यक्ति के भीतर कुछ मर सा गया है या रक्तरंजित हुआ जिसका रिसाव आज तक हो रहा है। महान व्यक्ति के रक्त की बूंदे धरती के जिस क्षेत्र में गिरती हैं वहां गुलाब खिलखिलाते हैं।

ज्ञातव्य है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1950 में अपनी लंदन यात्रा के समय पेंटिंग खरीदी थी और राष्ट्रपति भवन संग्रहालय को भेंट कर दी थी। आज के माहौल में इस पेंटिंग को इसलिए भी खारिज किया जा सकता है कि उसे नेहरू ने प्राप्त किया था। नेहरू काल में बने भाखड़ा नांगल के कारण समृद्ध हुए लोग उस बांध को प्राचीन में रचा हुआ मानते हैं। भिलाई इस्पात कारखाने के स्टील से बने घरों की दीवारों पर नेहरू की लगी हुई तस्वीर अब हटा ली गई है। इतना ही नहीं 'गोडसे' का शहादत दिवस भी मनाया जाता है। क्या एटॉमिक एनर्जी संस्थान की स्थापना के कारण जहां कहीं भी आणविक शस्त्र बन रहे हैं उसके लिए भी नेहरू को दोषी माना जा सकता है?

बहरहाल महात्मा गांधी के बारे में महान साहित्यकार सिमोन डी बेवॉयर लिखती हैं कि अपनी मृत्यु के पूर्व ही महात्मा गांधी को काउंटर क्लोजर का एहसास हो गया था। काउंटर क्लोजर का अर्थ यह है कि एक महान व्यक्ति अपने ही जीवन काल में उस आदर्श को ध्वस्त होता देखता है जिसके लिए उसने सारा जीवन संघर्ष किया और संघर्ष की सफलता के चरण में वह मन ही मन जानता है कि उसका आदर्श ध्वस्त हो चुका है और सफलता खोखली है। भारत के स्वतंत्र होने के समय विभाजन की हकीकत गांधी आदर्श का खंडहर माना जा सकता है। इसका यह अर्थ भी है कि नाथूराम गोडसे ने एक मरे हुए व्यक्ति को ही दोबारा मारा है और उर्मिला मातोंडकर और अनुपम खेर अभिनीत फिल्म 'मैंने महात्मा गांधी को नहीं मारा' एक बार दोबारा देखने लायक फिल्म है। मनुष्य अवचेतन में किसी भी समुद्र से अधिक लहरें चलती हैं और उसकी गहराई भी हर समुद्र से अधिक गहरी है। यह वर्ष महात्मा गांधी के जन्म का 150 वां वर्ष है और सरकार भी कुछ अदायगी करेगी परंतु हर आम आदमी के लिए भी यह आत्मावलोकन करने का अवसर है। गौरतलब है कि आज हिंसा का दौर चल रहा है। किसी भी व्यक्ति को मात्र संदेह के आधार पर सरेआम पीटा जाता है और अस्पताल पहुंचने तक वह मर जाता है। महात्मा महावीर और महात्मा बुद्ध ने अहिंसा के आदर्श को जीवन आधार बनाने के प्रयास किए। हमारा इतिहास रक्तरंजित है और हिंसा से भरा हुआ है। सम्राट अशोक ने भी पुत्र आदर्श अपनाने के पूर्व अपने भाइयों की हत्या की थी। महात्मा गांधी ने महावीर और बुद्ध के आदर्श को ही पुनः खोजा और यह उनकी डिस्कवरी ऑफ इंडिया है। करंसी पर गांधी जी की तस्वीर है और करंसी का अवमूल्यन हो रहा है।